रॉय जे. प्लंकेट (१९१०-१९९४ )

Roy_plunkett‘टेफ्लॉन’ नाम पढ़ने पर तुरंत ही कुछ अर्थबोध नहीं होगा। परन्तु हम जब खरीदकर लाये हुए किचन के नये तवों पर अथवा बरतनों के बॉक्स पर नजर डालते हैं तब तुरन्त ही यह याद आ जाता है। हम ने दुकानदार के पास से विशेष नये, अत्याधुनिक यंत्र अथवा कोटिंग किए गए बरतन खरीदे होंगे तो उस पर एक विशेष रूप में लिखा गया होता है- ‘टेफ्लॉन कोटेड’। जी हाँ,  रॉय प्लंकेट द्वारा खोजा गया यह अनोखा रसायन है ‘टेफ्लॉन’।

मजेदार बात तो यह है कि रसायन क्षेत्र में एक क्रांतिकारी शोध के रूप में जाने-पहचाने जाने वाले ‘टेफ्लॉन’ का शोध एक प्रकार की दुर्घटना से ही हुआ है ऐसा कहना भी कोई गलत नहीं होगा। अमेरिका के ओहियो प्रांत के कार्लीझ में एक कृषक के घर छब्बीस जून, १९१० के दिन रॉय का जन्म हुआ था।

एक कृषक के घर जन्म लेने के बावजूद रॉय को बचपन से ही रसायनों में विशेष दिलचस्पी होने के कारण घरवालों ने उन्हें शिक्षा हासिल करने हेतु प्रोत्साहित किया। इसी के बल पर रॉय ने १९३२  में मँचेस्टर कॉलेज से रसायनशास्त्र की उपाधि प्राप्त की। इसके साथ-साथ ओहियो विश्‍वविद्यालय से सेंद्रिय रसायनशास्त्र (ऑर्गेनिक केमिस्ट्री) विषय में डॉक्टरेट की डिग्री भी प्राप्त कर ली।

आगे चलकर पॉलिमर के संशोधन हेतु नोबेल पारितोषिक प्राप्त पॉल फ्लोरी ये रॉय के खास मित्र थे। मँचेस्टर कॉलेज एवं ओहियो विश्‍वविद्यालयीन शिक्षा इन दोनों ने एक साथ ही पूरी की। इसके पश्‍चात् इन दोनों को ही न्यू जर्सी के ड्यूपाँट कंपनी की ओर से रसायन विभाग में एक संशोधक के रूप में कार्यरत होने का प्रस्ताव आया। पॉल एवं रॉय इन दोनों ने इस प्रस्ताव का स्वीकार कर लिया और उन्होंने ड्यूपाँट के जॅकसन लॅब में संशोधन कार्य आरंभ कर दिया।

यद्यपि उन दोनों ने कंपनी में एक साथ ही कार्य आरंभ किया तथापि उन दोनों के संशोधन का क्षेत्र भिन्न होने के कारण उन दोनों ने भिन्न-भिन्न विषयों पर अपने संशोधन कार्य का आरंभ किया। प्रयोगशाला में रॉय को दिया गया पहला काम था ‘शीतकरण’ (रेफ्रिजरेशन ) इस प्रक्रिया में ‘सीएफसी’ (कोलिफ्ल्युरो कार्बन) वायु का अध्ययन करना। आरंभिक समय में शीतकरण प्रक्रिया में सल्फर डायऑक्साईड एवं अमोनिया वायु का उपयोग किया जाता था। मात्र १९३० के दशक में ‘सीएफसी’ का उपयोग नये सिरे से किया जाने लगा था। इससे संबंधित प्रयोग ड्यूपाँट कंपनी में चल रहा था।

teflonदो वर्षों तक निरंतर इससे संबंधित संशोधन कार्य चलता ही रहा। मात्र उस दिन कुछ विशेष घटना घटी। ६ अप्रैल १९३८  के दिन रॉय ने अपने सहकारी जॅक रिबॉक की सहायता से ४५ क्लो टेट्राफ्लुरोएथिलीन (टीएफई) वायु को ठंडे तापमान में एक छोटे सिलिंडर्स में भरकर रखा। कुछ दिनों पश्‍चात् प्रत्यक्ष परिक्षण हेतु तब उस सिलिंडर को खोला तब उसमें से किसी भी प्रकार का वायु बाहर नहीं निकला।

सिलिंडर तो भरा था, पर फिर  भी उसमें से वायु बाहर कैसे नहीं निकला यही प्रश्‍न उन दोनों के ही मन में निर्माण हुआ। उन दोनों ने मिलकर उस सिलिंडर को काटने का फैसला  किया। उसे काटने पर उन्होंने देखा कि उस सिलिंडर के एक कोने में कुछ प्रमाण में सफ़ेद रंग का चूर्ण तैयार हो गया था। उस क्षण रॉय ने अपना सारा काम परे रखकर सारा ध्यान उस चूर्ण पर केन्द्रित करने का निश्‍चय किया। यही था वह ‘टेफ्लॉन’ का प्रथम आविष्कार, परन्तु उस समय उसका इस प्रकार से नामकरण नहीं हुआ था।

इसके कुछ ही दिनों पश्‍चात् रॉय ने उस नये चूर्ण का परीक्षण किया। इस परीक्षण के पश्‍चात् उन्हें उसमें कुछ आश्‍चर्यजनक गुणधर्म दिखाई दिए। वे गुणधर्म इस तरह थे- यह ऐसा नया रासायनिक पदार्थ है, जिस पर अ‍ॅसिड का कोई भी असर नहीं हो रहा था, जंग लगना अथवा घिस जाना इस प्रकार की क्रियाओं का भी उस पर कोई असर नहीं हो रहा था। संक्षेप में देखा जाय तो वह पदार्थ निष्क्रिय था।

कालांतर में रॉय प्लंकेट ने इसका ‘टेफ्लॉन’ इस प्रकार से नामकरण किया। नामकरण हो जाने पर भी व्यावसायिक क्षेत्र में इस नये रासायनिक पदार्थ का आगमन कुछ समय बाद ही अर्थात १९४८ में हुआ। इसका अर्थ यह नहीं है कि इतने लम्बे अंतर में इसका कोई उपयोग नहीं हुआ। अमेरिका के संरक्षण विभाग ने ‘टेफ्लॉन’ का उपयोग अपने अणुबॉम्ब प्रकल्प के लिए किया। इसके पश्‍चात् ड्यूपाँट कंपनी ने ‘टेफ्लॉन’ का काफी बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरु कर दिया।

‘टेफ्लॉन’ के शोध के पश्‍चात् रॉय प्लंकेट अमेरिका के एक प्रमुख रासायनिक विशेतज्ञ के रूप में पहचाने जाने लगे। आरंभ में केवल वायर्स एवं अन्य चीज़ों के कोटिंग के लिए उपयोग में लाये जाने वाले ‘टेफ्लॉन’ का उपयोग १९६० के दशक तक बिलकुल रसोईघर में उपयोग में लाये जाने वाले बरतनों आदि के लिए भी किया जाने लगा। इसके पश्‍चात् ‘टेफ्लॉन’ सही मायने में घर-घर तक पहुँचने में सफल साबित हुआ। रॉय प्लंकेट ने १९७५ तक ड्यूपाँट में ही काम किया। उन्होंने कंपनी में काम करते समय उस पर किए गए संशोधन कार्य का लाभ केवल कंपनी को ही नहीं बल्कि संपूर्ण उद्योगजगत को बहुत बड़े पैमाने पर हुआ। रॉय द्वारा १९३८  में किए गए उनके इस संशोधन कार्य का सुवर्णमहोत्सव कंपनी ने १९८८ में बड़े ही धूमधाम से मनाया। इतना ही नहीं बल्कि रॉय प्लंकेट के सम्मान में एक विशेष ‘प्लंकेट मेडल’ का भी आरंभ किया गया।

आधुनिक युग में अवकाश में जानेवाले सेटेलाईट से लेकर सामान्य घरों में उपयोग में लाये जाने वाले बरतनों तक सभी स्थानों पर उपयुक्त साबित होने वाले ‘टेफ्लॉन’ के जनक रॉय प्लंकेट इनका निधन १२ मई १९९४  में हो गया।

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