‘सुरक्षित एलिव्हेटर’ – एलिशा ग्रेव्हज् ओटिस (१८११-१८६१)

एक ऊँची इमारत में नयी लिफ्ट लगाने के प्रयोग चल रहे थे। ताकतवर लोहे की डोर से बँधी हुई लिफ्ट उतने ही ताकतवर लोहे की काँटों की सहायता से ज़मीन पर स्थिर की गई है। यह प्रयोग करनेवाले प्रमुख ने अपने कर्मचारी को ऊपरी मंज़िल पर जाने के पश्‍चात् लिफ्ट के डोर को काँट देने को कहा।

डोर के काँटे जाते ही……. अब लिफ्ट नीचे ढह जायेगी…..  इसीलिए इस माजरे को देखनेवाले लोग भी अपनी-अपनी साँसे रोके भीड़ किए खड़े देख रहे थे। लेकिन लिफ्ट किसी भी प्रकार की दुर्घटना न होते हुए सही सलामत अपने स्थान पर आकर स्थिर हो गई। यह प्रयोग था ‘एलिव्हेटर ब्रेक्स’ का। इस प्रयोग के जनक थे- ‘एलिशा ग्रेव्हज् ओटिस’।

आज के दौर के समान स्वयंचलित लिफ्ट का उपयोग शुरू होने से पहले लोगों के द्वारा ऊँचाई पर से ऊपर-नीचे करने के लिए जानवरों का उपयोग किया जाता था। लेकिन इसकी अन्तर्गत सुरक्षितता की दृष्टि से का़फी खतरें मोल लेने पड़ते थे। कुछ काल पश्‍चात् आधुनिक मशीन की सहायता से लिफ्ट कार्यरत हो गई। मगर फिर भी इस लिफ्ट के संबंध में सुरक्षितता का मुद्दा विचाराधीन नहीं था। लिफ्ट के उपयोग में अथवा अचानक यंत्रणा में यदि कोई बाधा आ जाने के कारण लिफ्ट यदि नीचे की ओर ढह जाती थी तो इससे अंदर उपस्थित लोगों की मृत्यु हो जाती थी। इस प्रकार के अपघात को टालने के लिए ओटिस ने ‘एलिव्हेटर ब्रेक्स’ की खोज़ की।

एलिशा ग्रेव्हज्इसके पश्‍चात् दुनिया भर की ऊँची इमारतों में लिफ्ट यह अनिवार्य हिस्सा बन गया। इस दरमियान एलिव्हेटर ब्रेक्स का संशोधन करनेवाले स्वयं ओटिस को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि उनकी इस संकल्पना के कारण दुनिया भर में बेहिसाब क्रांति आ जायेगी। बचपन से ही नये प्रयोग करनेवाला उनका स्वभाव लोगों की सुरक्षा एवं नये-नये प्रयोग इनमें निरंतर क्रियाशील था। इसी के आधार पर उनका यह प्रयोग यशस्वी रूप में पूरा हुआ था। इससे पूर्व मेकॅनिक्स क्षेत्र में निपुणता प्राप्त ओटिस ने ओ. टिंगले अ‍ॅण्ड कंपनी में काम करते हुए रेल्वे सेफ्टी ब्रेक्स की खोज करके वहाँ पर भी विशेष कअर्य किया था।

अमरिका के हेलिफॅक्स नामक स्थान पर जन्म लेनेवाले ओटिस यह अपने माता-पिता के छठे एवं सबसे छोटी संतान थे। शिक्षा पूर्ण करने के पश्‍चात् ओटिस ने व्यवसाय करने की कोशिश तो की थी; लेकिन इस क्षेत्र में उन्हें सफलता नहीं मिल सकी। इसके पश्‍चात् रेल्वे सेफ्टी ब्रेक्स की खोज करनेवाले ओटिस १८५२ में न्यूयॉर्कवासी बन गए। यहाँ के मेझ अ‍ॅण्ड बर्न्स कंपनी में काम करते हुए लिफ्ट के कारण होनेवाली दुर्घटनाओं को अपघातों को टालने हेतु सुरक्षात्मक उपाय करने का काम कंपनी के मालिक ने ओटिस पर सौंप दिया और वहीं से एलिव्हेटर ब्रेक्स की संकल्पना को चालना मिली।

कंपनी के भारी उपकरणों को ऊपरी मंजिलों तक पहुँचाने के लिए एक सुरक्षित लिफ्ट की ज़रूरत  कंपनी के मालिक को महसूस हो रही थी। इस प्रकार के लिफ्ट के अभाव में कंपनी का काम रुका हुआ था। एक ऐसा यंत्र जो ऊपर जाने के बाद किसी भी परिस्थिति में नीचे न गिरने पाए, इसी मुद्दे पर आकर सभी की गाड़ी थम जाती थी। लेकिन ओटिस ने इस समस्या का समाधान ढूँढ़ निकाला। कठिन एवं मजबूत स्टील बॅगन स्प्रींग से लिफ्ट को जोड़ दिया जाना चाहिए, साथ ही लिफ्ट में एक मजबूत स्टील का काँटा लगा देना चाहिए, जिससे होगा यह कि लिफ्ट की स्टिल वाली शृंखला यदि टूट भी जाती है, तब भी उन काँटों पर संपूर्ण लिफ्ट का भार उठाया जा सकता है और लिफ्ट को गिरने से बचाया जा सकता है।

इस संशोधन का फायदा उठाते हुए आज अनेक प्रकार कीं, आधुनिक यांत्रिक ज्ञान की सहायता से चलनेवालीं लिफ्ट्स बनाई जा रहीं हैं। मग़र फिर भी ओटिस का संशोधन आज भी अतुलनीय है।

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