क्रान्तिगाथा-७२

अँग्रेज़ों द्वारा उनके शासनकाल में भारत में विभिन्न प्रांत यानी प्रोव्हिन्स का निर्माण किया गया था। उस समय के युनायटेड़ प्रोव्हिन्स में रहनेवाला चौरी चौरा यह एक गाँव था। भारतभर में असहकार आंदोलन की ज्वाला भड़क उठी थी और पूरे भारत में लोग यथासंभव अँग्रेज़ों से असहकार कर रहे थे।

१९२२ का फरवरी का महीना था। असहकार आंदोलन के ही एक अंग के रूप में विदेशी कपड़े बेचनेवाले दुकानों के सामने धरना दिया जाता था। ४ फरवरी को चौरी चौरा में लगभग दो-तीन हज़ार लोग इकठ्ठा हुए और उन्होंने वहाँ की एक दुकान के सामने धरना देना शुरू किया।

उस मोरचे की अगुआई करनेवाले उनके एक प्रमुख को पुलीस ने तुरन्त ही गिरफ़्तार कर लिया। गिरफ़्तार किये गये प्रमुख को फ़ौरन रिहा करने की माँग करते हुए अँग्रेज़ों का विरोध कर रहे उपस्थित आंदोलकों ने पुलीस स्टेशन का रूख किया।

पुलीस स्टेशन के सामने इकठ्ठा होकर वे मोरचे की अगुआई करनेवाले प्रमुख की रिहाई करने की माँग के साथ साथ अँग्रेज़ सरकार का निषेध भी कर रहे थे। वे अँग्रेज़ सरकार के खिलाफ़ ज़ोर ज़ोर से नारें लगा रहे थे। इस जनसमुदाय को तितरबितर करने के लिए शस्त्रों से लैस पुलीस तैनात किये गये थे।

पुलीस ने उस जनसमुदाय को तितरबितर करने के लिए सब से पहले बंदूकें दाग दीं। कहा जाता है कि बंदूकें हवा में चलायी गयीं। इससे लोग ड़रकर विरोध करना छोड़कर वापस लौट जायेंगे ऐसा वहाँ का अँग्रेज़ अफ़सर सोच रहा था। लेकिन खूँख़ार अँग्रेज़ों की बंदूकों की गोलियों से भारतीय डरते नहीं यह शायद अँग्रेज़ों की समझ में नहीं आया था।

पुलीस की इस हरकत से वह जनसमूह डरकर तितरबितर होने के बजाय क्रुद्ध हो गया और उन्होंने अँग्रेज़ों के द्वारा चलायी गयीं गोलियों का जवाब पत्थरों से दिया।

अब हालात बेक़ाबू होने के आसार नज़र आने लगे। इतने सारे लोगों का यह समूह अँग्रेज़ों की गोलियों की परवाह नहीं कर रहा है, यह समझ में आ जाते ही उस पुलीस स्टेशन के सब इन्पेक्टर ने ठेंठ उस जनसमूह पर गोलियाँ बरसाने का हुक़्म दे दिया।

इसमें अँग्रेज़ सरकार का निषेध करनेवाले कुछ भारतीय शहीद हो गये, तो कुछ घायल हो गये। इसके बाद क्या हुआ, इस बारे में कई मतमतान्तर हैं।

पुलीस के पास की गोलियाँ ख़त्म हो जाने के कारण पुलीस ने गोलीबारी करना बंद कर दिया ऐसा भी कुछ रिपोर्टस् में कहा गया है, वहीं अन्य रिपोर्टस् में यह भी कहा गया है कि लोगों का वह समूह पीछे न हटते हुए आवेश से भर गया और पुलीस की गोलियों का जवाब लोगों का ग़ुस्सा ही दे रहा था।

पीछे हटने के बजाय लोग अब सीधे सीधे पुलीस चौकी की तरफ़ आगे बढ़ने लगे और उनके क्रोध ने हक़ीक़त में ही आग की लपटों का रूप धारण कर लिया। यकायक पुलीस चौकी आग की लपटों में घिर गयी ऐसा दृश्य दिखायी देने लगा।

कहा जाता है कि उस समय पुलीस चौकी में कुछ पुलीसकर्मी उपस्थित थे। आग की लपटों ने उस पुलीस चौकी को निगल लिया। बताया जाता है कि इस वजह से पुलीस चौकी में उस समय रहनेवाले पुलीसकर्मी अपनी जान गँवा बैठे।

इस घटना के खिलाफ अँग्रेज़ सरकार के द्वारा फ़ौरन कदम उठाये गये। चौरी चौरा और उसके आसपास के इला़के में मार्शल लॉ लगाया गया। संक्षेप में, चौरी चौरा और उसके आसपास के इला़के का कब्ज़ा अब अँग्रेज़ी सेना को दिया गया।

फिर एक बार अँग्रेज़ों ने गिरफ़्तारियाँ करना शुरू कर दिया और कई जगह छापे मारकर हज़ारों को पकड़ लिया।

लेकिन इस घटना से गाँधीजी बहुत ही व्यथित हो गये। क्योंकि उनकी दृष्टि से अँग्रेज़ सरकार के खिलाफ छेड़े गये इस असहकार आंदोलन में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं थी। चौरी चौरा में हुई इस घटना में हुई हिंसा के कारण गाँधीजी व्यथित हो गये। उन्होंने इस घटना के बाद पाँच दिन का अनशन भी किया।

अहिंसा व्रत का स्वीकार करनेवाले गाँधीजी द्वारा यह असहकार आंदोलन स्थगित करने का निश्‍चित किया गया और आखिरकार अँग्रेज़ सरकार के खिलाफ़ शुरू किये गये इस असहकार आंदोलन को अर्थात् नॉन को-ऑपरेटीव्ह मूव्हमेंट को स्थगित कर दिया गया।

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