क्रान्तिगाथा-७१

असहकार आंदोलन के समय भारतीय गाँधीजी की कार्यपद्धति से परिचित हो गये।

आख़िर निश्‍चित रूप से क्या स्वरूप था इस असहकार आंदोलन का?

सरकारी नौकरियों पर बहिष्कार (बॉयकॉट) करना, संक्षेप में सरकारी नौकरी करनेवाले उस नौकरी को त्याग देंगें और यदि सरकारी नौकरी मिल भी रही हो तो उसका स्वीकार न करना।

वकील और जज कोर्ट का कामकाज़ करने नहीं जायेंगे। सारांश कोर्ट के कामकाज का भी पूरी तरह बहिष्कार करना। इसी आंदोलन के दौरान कई नामचीन वकिलों ने अपनी वक़ालत छोड़कर स्वतन्त्रतासंग्राम में हिस्सा लिया।

छात्र स्कूल नहीं जायेंगे, क्योंकि उन स्कूलों को अँग्रेज़ों के द्वारा चलाया जा रहा था और उन स्कूलों में दी जानेवाली शिक्षा यह अँग्रेज़ों की शिक्षा पद्धति थी।

अँग्रेज़ सरकार के द्वारा आयोजित किये गये समारोहों में उपस्थित तक न रहना।

अँग्रेज़ों की भारत में स्थित सेना, जिसके बलबूते पर अँग्रेज़ सब भारतीयों पर अपनी हुकूमत चला रहे थे। उस सेना में रहनेवाले उच्चपदस्थ अधिकारी अँग्रेज़ थे, लेकिन काफी संख्या में सैनिक तो भारतीय ही थे। सारांश भारत में स्थित अँग्रेज़ों की सेना यह भारतीयों के बलबूते पर ही खड़ी थी। इसलिए यह तय किया गया की अँग्रेज़ सरकार से असहकार के दौरान अँग्रेज़ों की सेना में भारतीय भरती नहीं होंगे।

ब्रिटन में बना और भारत में बेचा जा रहा कोई भी माल भारतीय नहीं खरीदेंगे। सारांश विदेशी माल को बहिष्कृत (बॉयकॉट) करना और स्वदेशी का ही पुरस्कार करना

और सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि कुछ भारतीयों को अँग्रेज़ों के द्वारा कुछ उपाधियाँ या पद दिये गये थे, इस आंदोलन के एक हिस्से के रूप में यह तय किया गया कि वे भारतीय उन्हें अँग्रेज़ों द्वारा प्रदान किये गये पदों को या उपाधियों को त्याग देंगे यानी अँग्रेज़ों को लौटा देंगे।

इन सब बातों का अर्थ यही था कि अब भारतीय लोग अँग्रेज़ सरकार के किसी भी कामकाज में शामिल नहीं होंगे और यदि अब तक वे उनके कामकाज में शामिल थे, तो अब वे उसे पूरी तरह त्याग देंगे।

इस तरह की भूमिका भारत भर के भारतीयों के द्वारा लिये जाने के बाद अँग्रेज़ों की सरकार चलेगी कैसे, उनकी तिजोरी भरेगी कैसे और उनकी हुकूमत का अंकुश भारत पर रहेगा कैसे?

असहकार आन्दोलन की शुरुआत होने के बाद पहले ही महीने में हजारों छात्रों ने विदेशी स्कूल-कॉलेजों में पढ़ना छोड़ दिया और भारतीय शिक्षा संस्थाओं में दाख़िला ले लिया यानी कि भारतीयों द्वारा स्थापित शिक्षा संस्थाओं में उन्होंने दाख़िला लिया। भारतभर में लगभग ८०० नयी राष्ट्रीय शिक्षा संस्थाओं की स्थापना की गयी।

बंगाल में छात्रों के द्वारा विदेशी शिक्षा संस्थाओं के किये गये बहिष्कार का स्वरूप अधिक व्यापक था। पंजाब में भी विदेशी शिक्षा संस्थाओं पर किये जानेवाले बहिष्कार ने व्यापक रूप धारण कर लिया था।

उत्तर प्रदेश, असम, उड़ीसा, मुंबई, बिहार, मद्रास में भी इस आंदोलन ने व्यापक स्वरूप धारण कर लिया था।

कई नामचीन भारतीय वकीलों ने अपनी वक़ालत त्यागकर स्वतन्त्रता संग्राम में कार्य करने के लिए स्वयं को पूरी तरह झोंक दिया।

स्वदेशी का पुरस्कार और विदेशी माल का बहिष्कार करने के कारण भारत में विदेशी कपड़े की माँग तो घट ही गयी, साथ ही यह भी देखा गया कि उन कपड़ों की बिक्री भी बहुत बड़े प्रमाण में घट गयी। इसी समय गाँधीजी ने खादी और चरखे का पुरस्कार किया।

इस असहकार आंदोलन की एक और ख़ासियत यह थी कि इसमें महिलाएँ भी बड़ी संख्या में सम्मिलित हुई थीं। भारत के विभिन्न इलाक़ों में महिलाएँ जोश के साथ इस आन्दोलन में हिस्सा ले रही थीं। विदेशी कपड़े की दुकानों के सामने धरना देना, खादी के वस्त्रों का पुरस्कार करना इस प्रकार के विभिन्न कार्य इस आंदोलन में शामिल हुई महिलाओं के द्वारा किये जा रहे थे।

इस आंदोलन से भारतीयों को कुछ फ़ायदे भी हुए। स्वदेशी की माँग के कारण मुख्य रूप से भारत के गृह उद्योगों एवं लघु उद्योगों में पुनः ऊर्जितावस्था आ गयी।

साथ ही न्यायपंचायतों की स्थापना होने लगी। भारतीयों के द्वारा भारतीयों के लिए संचालित की जानेवालीं शिक्षा संस्थाओं की स्थापना होने लगी।

सारांश, इस असहकार आंदोलन के कारण भारतीयों का स्वदेशी से और स्वदेश से संपर्क और भी गहरा हो गया।

और चौरी चौरा की वह घटना घटित होने तक भारत भर में भारतीयों ने अँग्रेज़ सरकार के खिलाफ़ असहकार आंदोलन छेड़ दिया था।

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