कोची भाग-१

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दुनिया में भारतवर्ष की अपनी कुछ विशेषताएँ हैं। उनमें से एक है, मसालें, जिनमें काली मिर्च, लौंग, दालचिनी, तेजपात आदि का समावेश होता है। हमारे प्रतिदिन के भोजन में इनमें से किसी न किसी पदार्थ का इस्तेमाल हम मसाले के रूप में करते ही हैं। पुराने समय से भारतीय इनका उपयोग कर रहे हैं। मसालों की बात चलते ही याद आ जाता है, केरल। केरल! भारत का दक्षिणी राज्य। सागर का साथ, साल के कईं महीनों में रहनेवाला बारिश का मौसम, हरियाली और उपजाऊ मिट्टी। इस मिट्टी मैं ही कई मसालों का उत्पाद होता है। इन मसालों को यहाँ से भारत भर में तो भेजा जाता ही है, साथ ही दुनिया के कईं देशों में भी निर्यात किया जाता है।

पुराने ज़माने में जब यातायात के साधन काफ़ी कम थे, तब मसालों का यह व्यापार जलमार्ग यानि कि समुद्री मार्ग से होता था। केरल के कुछ बंदरगाह प्राचीन समय से मसालों के व्यापार के लिए मशहूर हैं। उनमें से ही एक है, कोची!
‘कोची’ यह नाम शायद आपको अनसुना सा लग सकता है; लेकिन ‘कोचीन’ यह नाम तो आपने अवश्य सुना होगा। दर असल पहले का ‘कोचीन’ ही आज ‘कोची’ इस नाम से जाना जाता है।

१४वी सदी से यह मसालों के व्यापार के केन्द्र के रूप में सुविख्यात था। हुआ यूँ कि इसवीसन १३४१ में यानि कि १४वी सदी के पूर्वार्ध में पेरियार नदी में बहुत बड़ी बाढ़ आयी थी। इस बाढ़ के कारण कोडुंगल्लुर नाम का एक बहुत बड़ा बंदरगाह पूरी तरह ध्वस्त हो गया। इस घटना के बाद कोचीन में प्राकृतिक रूप से एक बंदरगाह का निर्माण हुआऔर कोचीन व्यापार-उद्योग क्षेत्र में विकसित हुआ। अब कोचीन की आबादी बढ़ने लगी और आगे चलकर इसी प्रगति से कोचीन और आज के कोची का विस्तार होता रहा।

आगे चलकर यातायात के कईं नये गतिमान साधन विकसित होते रहे, व्यापारक्षेत्र भी विस्तारित होता रहा, लेकिन कोची का स्थान बरक़रार रहा।

कोची यह एक छोटा सा कसबा आज एक बड़ा शहर बन गया है। पुराने ज़माने के कईं सैलानियों तथा व्यापारियों ने कोची का उल्लेख अपने स़ङ्गरनामे में किया है। किसीने इसे कोचीन कहा है, किसीने कोचीम तो किसीने कोसीम भी कहा है।

नाम में क्या रखा है, ऐसा हम कई बार सुनते है। लेकिन जब इतिहास की बात चलती है तो हर एक स्थान के नाम के पीछे कुछ न कुछ अर्थ अवश्य रहता है।

कोचीन अथवा कोची इनका मूल शब्द है- ‘कोच्चु’ यानि कि छोटा सा (थोड़ा सा)। ‘कोचीन’ अथवा ‘कोची’ का अर्थ है – छोटा सा प्रदेश।

किसी ज़माने में यह कोची ‘बालपुरी’ इस नाम से जाना जाता था। बाल का अर्थ है छोटा और इसी अर्थ में आगे चलकर इस बालपुरी का रूपान्तरण कोचीन हो गया। इस बालपुरी नाम के बारे में एक कथा प्रचलित है। विश्रवण की कन्या ने भूमि प्राप्त करने के उद्देश्य से परशुरामजी से प्रार्थना की। उसकी प्रार्थना के अनुसार परशुरामजी ने उसे एक छोटा भूप्रदेश दे दिया। छोटे आकार के कारण इस भूप्रदेश को ‘बालपुरी’ कहा जाने लगा। समय के साथ साथ बाल-छोटा-कोच्चु इस तरह स़ङ्गर करते हुए वह नाम कोची बन गया। यहाँ पर बंदरगाह का निर्माण होने से पहले शायद इसे इसके छोटे आकार के कारण यह नाम मिला होगा। बंदरगाह के निर्माण के बाद यह एक बहुत बड़ा शहर बन गया।

कोची इस नाम की एक और उपपत्ति बतायी जाती है। कोची का नाम पुराने समय में था – ‘गोश्री’। गोश्री यानि कि गौओं के ऐश्‍वर्य से समृद्ध रहनेवाला प्रदेश। समय के साथ साथ गोश्री से कोची बन गया।

एक राय यह भी है कि यहाँ की नदी का नाम ही इस प्रदेश को दिया गया। कुछ लोगों का कहना है कि पुराने समय में कोई एक यात्री यहाँ पर आया था और वह जिस प्रदेश से आया था, उसका नाम इस प्रदेश को दिया गया।

उपपत्ति चाहे जो भी हो, लेकिन कई सदियों से यह प्रदेश कोचीन इस नाम से ही जाना जाता है। निकोलो-दा-कोन्ताय, फ्रा पाओलिन और मा हुआन इन्होंने अपने सफ़रनामों के ज़रिये कोची का नाम दुनिया के कोने कोने तक पहुँचाया। ‘मा हुआन’ यह १५वीं सदी में यहाँ पर आया था, ऐसा माना जाता है। ‘निकोलो-दा-कोन्ताय’ यह इटली से आया हुआ सैलानी था।

कोचीन बंदरगाह के निर्माण के बाद ग्रीस, रोम, अरबस्तान और चीन के साथ यहाँ से व्यापार किया जाता था। शायद वहाँ के व्यापारी भी यहाँ आते होंगे।

व्यापार इस अहम बात के कारण ही विदेशियों ने कोचीन अथवा कोची पर अपनी हुकूमत स्थापित करने की कोशिशें की। कोचीन पर पुर्तग़ाली, डच और अँग्रेज़ शासन कर चुके हैं।

दर असल पुर्तग़ाली, डच और अँग्रेज़ यहाँ पर व्यापार करने आये और उन्होंने यहाँ पर अपनी जड़ें मज़बूत कर ली और हुकूमत करने लगे। व्यापार यह उनका धन कमाने का साधन था और सत्ताप्राप्ति यह उनका मूल उद्देश्य था।

दर असल कोचीन यह एक रियासत के रूप में भी मशहूर था। १२वीं सदी से कोचीन पर राजाओं की हुकूमत शुरू हुई। कुलशेखर नामक राजवंश जब विभक्त हुआ, तब उस राज्यविभाजन प्रक्रिया में कोचीन रियासत का उदय हुआ ऐसा कहा जाता है।

पुर्तग़ालियों द्वारा लिखित दस्तावेज़ों से उस समय के कोचीन की जानकारी प्राप्त होती है।

पुर्तग़ाली, डच और अँग्रेज़ इनमें से कोचीन में पहले कदम रखनेवाले थे, पुर्तग़ाली। १६वीं सदी के प्रारंभ में ‘अ‍ॅडमिरल पेड्रो अल्वारिस काब्राल’ नाम का कोई पुर्तग़ाली कोची के बंदरगाह में आया था। यहाँ के राजा ने अतिथिधर्म के अनुसार उसका स्वागत किया। राजा की इस विदेशी के साथ काफ़ी अच्छी दोस्ती भी हुई। उस समय कालिकत यह भी केरल का एक काफ़ी मशहूर बंदरगाह था और उसपर झामोरिन की हुकूमत थी।

कोचीन के राजा को काब्राल नामक इस पुर्तग़ाली ने कालिकत के झामोरिन के खिलाफ़ चल रहे संघर्ष में सहायता करने का आश्‍वासन दिया। उसके बदले में कोचीन में एक फॅक्टरी का निर्माण करने की अनुमति उसने राजा से प्राप्त की। इस मित्रतापूर्ण अ‍ॅग्रीमेंट के बाद जब झामोरिन के साथ आमने सामने लड़ने का समय आया तब उसकी बहुत बड़ी सेना को देखकर यह अ‍ॅडमिरल पीछे हट गया। उसके स्थान पर ‘जो-दा-नोव्ह’ नामक दूसरे कप्तान को पुर्तग़ाल से भेजा गया। लेकिन उसकी भी हालत वैसी ही हुई।

फिर कोचीन भेजा गया, ‘वास्को-द-गामा’ को। वास्को-द-गामा के बारे में तो हम सब स्कूल के समय से ही जानते हैं। वास्को-द-गामा और कोचीन इनका रिश्ता इतना गहरा है कि वास्को-द-गामा ने आख़िरी साँस ली, वह इस कोची में ही। ख़ैर! हम बात कर रहे थे, वास्को-द-गामा के कोची पधारने की। वास्को-द-गामा के कोची आ जाने से स्थिति में कोई फ़र्क़ नहीं हुआ, बल्कि दो राज्यों के बीच का संघर्ष और भी तेज़ हो गया। १५०३ में इन दो राज्यों में प्रत्यक्ष युद्ध शुरू हुआ। बाद में कई कारणों से यह युद्ध रुक तो गया; लेकिन युद्ध के परिणाम तो दोनों राज्यों को भुगतने पड़े। इसी दौरान पुर्तग़ाल से अल्बुकर्क कोचीन आ गया। दर असल वह कोची के राजा की मदद करने ही आया था।

कालिकत और कोचीन इनके बीच के संघर्ष में पुर्तग़ालियों ने कोची के राजा की जो सहायता की थी, उसके बदले में उन्हें कोची में एक फॅक्टरी का निर्माण करने की अनुमति कोची के राजा से मिली थी। वह फॅक्टरी बन भी गयी। लेकिन इन दो राजाओं के बीच के चल रहे दीर्घकालीन संघर्ष को देखकर इस ङ्गॅक्टरी की सुरक्षा के लिए वहाँ पर एक क़िले का निर्माण करना पुर्तग़ालियों को ज़रूरी लगने लगा। फिर कोची के राजा से अनुमति प्राप्त करके उन्होंने कोची की ज़मीन पर एक क़िले का निर्माण भी किया और क़िले का निर्माण करने की आड़ में उन्होंने यहाँ पर अपनी सेना भी इकट्ठा की।

कोची की भूमि पर व्यापारी के रूप में कदम रखनेवाले और आगे चलकर अपनी जड़ें मज़बूत करनेवाले पुर्तग़ालियों का और कोची का क्या हुआ, यह हम अगले लेख में देखेंगे।

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