४९. ज्यूधर्मियों की रोमनों के खिलाफ़ बग़ावत

मॅथॅटियस ने सेल्युसिड साम्राज्य के साथ शुरू की हुई, ज्यूधर्मियों पर लगाये गये धार्मिक निर्बन्धों के खिलाफ़ की लड़ाई को उसके इसवीसनपूर्व ३७ में रोमन शासकों ने हेरॉड को बतौर ‘ज्युडिआ का राजा’ मान्यता दी। अगले ३३ साल यानी इसवीसनपूर्व ४ में हुई हेरॉड की मृत्यु तक उसकी यह सत्ता अबाधित रही। इस प्रान्त का कब्ज़ा हालाँकि रोमन राज्य के पास थी, मग़र फिर भी उन्होंने हेरॉड के प्रशासन में कुछ ख़ास दख़लअँदाज़ी नहीं की।

लेकिन होली टेंपल का विस्तार एवं सुशोभीकरण ये ज्यूधर्मियों के लिए आनन्ददायी काम हालाँकि हेरॉड ने किये, वे महज़ ज्यूधर्मियों को खुश करने के लिए थे। लेकिन बाकी सभी मामलों में ज्यूधर्मियों को ग़ुस्सा आ जाये ऐसा ही उसका आचरण था।

वह जन्म से ज्यूधर्मीय न होने के कारण, बतौर ‘राजा’ ज्यूधर्मीय उसका मन से स्वीकार कभी भी नहीं करेंगे यह हेरॉड जानता था। इस कारण, उसने हॅस्मॉनियन घराने की एक युवा राजकन्या को छोड़कर बाक़ी बचे सभी को मौत के घाट उतार दिया, ताकि ज्युडिया की राजगद्दी पर का उसका दावा मज़बूत हो सकें। इस राजकन्या से शादी बनाकर, कम से कम इस रिश्ते के माध्यम से तो ज्यूधर्मियों के साथ संबंध जोड़ने का उसका प्रयास था। लेकिन उसकी यह योजना पूर्ण रूप से अंजाम तक नहीं जा सकी।

हेरॉड बहुत ही ज़ुलमी एवं शक्की मिजाज़ का था। ज्यूधर्मियों पर उसने कहर ढाना तो उसने शुरू किया ही; साथ ही, अति-शक्की स्वभाव के कारण, सभी लोग मेरे खिलाफ़ कुछ न कुछ साज़िश कर रहे हैं, ऐसा उसे हमेशा शक़ होता था और यह उसके मन में होनेवाले शक़ की सुई जिसकी ओर निर्देश करती थी, उसे ख़त्म करने के लिए हेरॉड कुछ भी क़सर बाकी नहीं छोड़ता था। उसके खिलाफ़ साज़िश की जा रही है, ऐसा उसके एक बेटे ने अपने दो भाइयों के बारे में (हेरॉड के अन्य बेटों में से दो बेटों के बारे में) उसे बताने पर, शक़ की बिनाह पर उसने अपने उन दो बेटों को भी मार दिया था।

इसी कारण जब उसे येशू ख्रिस्त के जन्म के बारे में पता चला, तब भी उसने – ‘यह बालक आगे चलकर मेरी सत्ता के लिए ख़तरा बन सकता है’ ऐसी सोच रखकर – बेथलेहेम और आसपास के इला़के के, दो साल से छोटी उम्र के सभी ज्यूधर्मीय बालकों को मार देने का हुक़्म दिया था। इस कथित घटना की सत्यता-असत्यता के बारे में हालाँकि अभ्यासकों में एकमत नहीं है, हेरॉड ज्यूधर्मियों के साथ ज़ुल्म से ही पेश आया था, यह बात लगभग सभी अभ्यासक मानते हैं।

ज्युलियस सीझर ने शुरू किये राजकीय एवं सामाजिक सुधार कार्यक्रम पर नाराज़ होनेवाले उसके विरोधकों ने उसका, इसवीसनपूर्व ४४ में भरे दरबार में ही खून किया।

जब हेरॉड की मृत्यु की घड़ी समीप आयी, तब भी उसने अपनी क्रूरता नहीं छोड़ी थी। अपनी मृत्यु से ज्यूधर्मीय खुशी न मनायें, वे दुख के माहौल में ही रहें, इसके लिए उसने एक विचित्र हुक़्म घोषित किया। ‘ज्यूधर्मियों में से कई महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों को पकड़कर, मेरी मृत्यु के दिन ही उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाये; ताकि मेरी मौत के दिन ज्यूधर्मीय खुशियाँ न मना सकेंगे, ऐसा फ़र्मान उसने जारी किया। सौभाग्यवश्, उसके इस हुक़्म की तामिली नहीं हुई और हेरॉड की मृत्यु होने पर उन सबको रिहा किया गया।

लेकिन इस दौरान रोमन संघराज्य में कई गतिविधियाँ तेज़ी से हो रही थीं। पोम्पेई आदि विरोधकों को हटाकर इसवीसनपूर्व ४६ तक रोमन संघराज्य का सर्वेसर्वा बन चुके ज्युलियस सीझर ने शुरू किये राजकीय एवं सामाजिक सुधार कार्यक्रम पर उसके विरोधक नाराज़ थे और उसे रास्ते से हटाने का मौक़ा ही वे ढूँढ़ रहे थे। वह मौका उन्हें इसवीसनपूर्व ४४ में मिला। सीझर के दरबार में ही होनेवाले उसके विरोधकों द्वारा उसका इसवीसनपूर्व ४४ में भरे दरबार में ही खून हो गया था। लेकिन बाद के सत्तासंघर्ष में उसका पुत्र ऑक्टावियन (सम्राट ऑगस्टस) अपने विरोधकों को मात देकर राजगद्दी पर बैठ गया था।

सम्राट ऑगस्टस के कार्यकाल में हुआ रोमन साम्राज्य का विस्तार

यहाँ इसवीसनपूर्व २७ में रोमन संघराज्य (रोमन रिपब्लिक) ख़त्म होकर, रोमन साम्राज्य (रोमन एम्पायर) का कालखंड शुरू हो चुका था।
हेरॉड के पश्‍चात् इसवीसनपूर्व ४ में ज्युडिया की राजगद्दी पर बैठे उसे बेटे ने नौ साल शासन किया। ज़ुलमी प्रशासन के मामले में वह हेरॉड के ही नक़्शेकदम पर चला। इसी के ज़ुल्मी कार्यकाल में ज्युडिया के ज्यूधर्मियों ने अगले सहस्राब्द (‘मिलेनियम’) में (यानी ‘इसवीसनपूर्व’ से ‘इसवीसन’ में) कदम रखा।

आख़िरकार रोमन सम्राट ऑगस्टस ने इसवीसन ६ में एक अध्यादेश द्वारा ज्युडिया की राजेशाही को बरखास्त कर, ज्युडिया प्रांत, समारिया तथा इडुमिया के साथ ठेंठ रोमन साम्राज्य को जोड़ दिया और वहाँ पर अपना राज्याधिकारी नियुक्त किया।

ज्युलियस सीझर जब रोमन संघराज्य का सर्वेसर्वा बना था, तब उसने ज्यूधर्म को बाक़ायदा मान्यता देकर, ज्यूधर्मियों को अपने संपूर्ण साम्राज्य में कहीं भी उनके पारंपरिक धार्मिक कृत्यों का तथा धर्मतत्त्वों का पालन करने की सहूलियत दे रखी थी। जिस कारण, ज्यू धर्म यह संपूर्ण रोमन साम्राज्य में ‘मान्यताप्राप्त धर्म’ (‘रिलिजिओ लिसिटा’) बना था। उसी परंपरा को सीझर के बाद रोमन सम्राट बने उसके बेटे ने – ऑगस्टस ने भी बरक़रार रखा।

ज्यूधर्मियों पर भारी कर थोंपने हेतु उनकी प्राथमिक जानकारी दर्ज़ करने के लिए इसवीसन ६ में रोमन राज्याधिकारियों से उनकी जनगणना का कार्यक्रम शुरू हुआ।

ज्युडिया प्रांत रोमन साम्राज्य में जोड़ लेने के बाद, ऑगस्टस द्वारा पास ही के सिरियन प्रांत पर नियुक्त किये गये राज्याधिकारी ने – क्विरियस ने इसवीसन ६ से ही – अब रोमन साम्राज्य के नागरिक बन चुके ज्यूधर्मियों की जनगणना (‘सेन्सस’) का उपक्रम शुरू किया। ज्यूधर्मियों पर प्रचंड करनिर्धारण करने हेतु मूलभूत जानकारी इकट्ठा करने के लिए यह उपक्रम शुरू किया गया था।

इस ज़ुल्मी कदम के खिलाफ़ ज्यूधर्मियों ने बग़ावत की। गोलन पहाड़ी के पास ही के ‘गॅमला’ प्रदेश का ‘ज्युडास’ नामक वीर ज्यूधर्मीय (‘ज्युडास ऑफ गॅमला’, ‘ज्युडास ऑफ गॅलिली’) इस बग़ावत का नेतृत्व कर रहा था। रोमनों द्वारा अन्याय्य करनिर्धारण हेतु की जानेवाली इस जनगणना में रजिस्टर न करने के लिए उसने ज्यूधर्मियों को प्रवृत्त किया।

यह बग़ावत यानी केवळ शुरुआत थी। अगले तक़रीबन डेढ़सौ साल ज्यूधर्मियों ने रोमन साम्राज्य के खिलाफ़ लगातार संघर्ष किया।

उनमें से पहला बड़ा युद्ध इसवीसन ६६ से इसवीसन ७३ इस दौरान लड़ा गया। उस समय तक विद्रोहियों का नेतृत्व गॅमला के ज्युडास से अगली पीढ़ी के हाथ में चला गया था। विद्रोहियों ने (ख़ासकर ज्यूधर्मियों के फरिसी एवं सदूकी इन गुटों ने) एक अनौपचारिक सरकार की भी स्थापना की थी। ‘ईश्‍वर ही इस्रायल के एकमात्र शास्ता हैं और इसलिए ज्यूधर्मियों को चाहिए कि वे रोम को कुछ भी टॅक्स न दें’ इस तत्त्व का प्रसार इन गुटों के नेता ज्यूधर्मियों में करते थे।

तहे दिल से ज्यूधर्मतत्त्वों का पालन करनेवाले निष्ठावान ज्यूधर्मियों में इस तत्त्व का तेज़ी से प्रसार होने लगा और ‘ग्रेट ज्युइश रिव्होल्ट’ के नाम से विख्यात हुए इस युद्ध की शुरुआत हुई।(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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