जम्मू भाग-१

श्रावण महिने में संपूर्ण सृष्टि में एक नवचेतना ही आ जाती है। समूची सृष्टि हरे रंग का लिबास पहनकर सज जाती है। श्रावण मास में भारतभर में विभिन्न प्रकार के व्रत किये जाते हैं, कन्याकुमारी से लेकर हिमालय तक। भारतीयों की दृष्टि से हिमालय हमेशा ही पवित्र एवं पूजनीय रहा है। पवित्रता का स्रोत रहनेवाले शिवजी का यह आवासस्थल है और इसीलिए हिमालय निवासी शिवजी से श्रावण में मिलने हज़ारों श्रद्धालु पर्वतों, घाटियों को पार कर यहाँ आते हैं।

अब हम जहाँ जा रहे हैं, वह ‘जम्मू’ शहर भी पर्वतों की गोद में बसा है। दर असल आज के युग में जम्मू जाना यातायात के साधनों की उपलब्धता के कारण बहुतही आसान बन गया है। रेल, बस, हवाई जहाज़ इन तीन प्रमुख मार्गोंसे यह शहर भारत के मुख्य शहरों के साथ जुड़ा हुआ है।

हम हमेशा जम्मू-कश्मीर ऐसा उल्लेख करते हैं। जम्मू यह जम्मू-कश्मीर राज्य की सर्दियों के मौसम की राजधानी है, वहीं ‘श्रीनगर’ यह जम्मू-कश्मीर की गर्मियों के मौसम की राजधानी है। संक्षेप में, इस राज्य के प्रशासकीय कार्य सर्दियों में जम्मू में से किये जाते हैं। इससे हम यह समझ सकते हैं कि सर्दियों में जम्मू का तपमान श्रीनगर से अधिक रहता है।

जम्मू जाते हुए सफ़र में कुदरती सुन्दरता के अनोखे नज़ारे देखने मिलते हैं। जम्मू में दाखिल होते ही पहाड़ी श्रृंखलाएँ हमारा मन मोह लेती हैं।
कभी पर्वतों के माथे पर दूर से बर्फ़ दिखायी देती है, तो कभी वे बादलों से घिरे हुए दिखायी देते हैं।

तो ऐसे इस जम्मू शहर में हम दाखिल हो चुके हैं। चलिए, तो फिर इस शहर की और इसके विभिन्न पहलुओं की जानकारी प्राप्त करते हैं।

इस जम्मू शहर का एक और भी नाम है, वह है ‘दुग्गर’। दर असल इस शहर का यह नाम इतना प्रचलित तो नहीं है। जम्मू शहर धार्मिक दृष्टि से भी एक महत्त्वपूर्ण शहर माना जाता है।

इस शहर को हमेशा से साथ रहा है, ‘तावी’ नाम की नदी का। तावी नदी जम्मू शहर से इस क़दर जुड़ी है कि जम्मू जानेवाली एक रेल का नाम ‘जम्मू तावी एक्सप्रेस’ रखा गया है। जम्मू शहर में से बहनेवाली ‘तावी’ नदी यह चिनाब नदी की एक शाखा हैं। यह ‘तावी’ नदी भी पुराने समय से बहुत ही पवित्र मानी जाती है।

तावी के सान्निध्य में बसे इस जम्मू शहर की स्थापना के बारे में कई मतमतान्तर है और कुछ किस्से कहानियाँ भी हैं।

कुछ लोगों की राय में ‘जम्मू’ शब्द का सम्बन्ध ठेंठ ‘जम्बुद्वीप’ के साथ है। अब ‘जम्बुद्वीप’ इस नाम से आप सोच रहे होंगे कि चारों ओर से सागर से घिरी हुई ज़मीन को ‘द्वीप’ कहते हैं और जम्मू की भौगोलिक स्थिती को देखें तो ना तो यहाँ सागर का अस्तित्व है और ना ही कोई द्वीप यहाँ दिखायी देता है। लेकिन कुछ अध्ययनकर्ताओं की राय में किसी समय यानि कई हज़ार साल पहले इन पर्वतों की तलहटी में सागर अस्तित्व में था।

‘जम्मू’ इस शब्द के उद्गम को कुछ अन्वेषणकर्ता ठेंठ ‘जाम्बुवन्त’ से जोड़ते हैं। रामायण के ‘जाम्बुवन्तजी’ से हमारी मुलाक़ात महाभारत में भी होती है। इन्हीं जाम्बुवन्तजी ने इस इला़के की ‘पीर खो’ नामक गुफ़ा में तपस्या की थी और इस तरह जाम्बुवन्तजी से जुड़ा यह स्थान आगे चलकर ‘जम्मू’ इस नाम से मशहूर हो गया। वहीं कुछ अध्ययनकर्ताओं की राय में किसी ‘राजा जम्बुलोचन’ के नाम से इस स्थान का नाम ‘जम्मू’ पड़ गया।

इस ‘जम्मू’ का ही एक नाम है – ‘दुग्गर’। अब इस ‘दुग्गर’ नाम के बारे में। जम्मू और उसके आसपास के इला़के में रहनेवाले लोग ‘डोगरा’/‘डोग्रा’ इस नाम से जाने जाते हैं। इस ‘डोगरा’ शब्द का संबंध ‘दुग्गर’ के साथ है। अध्ययनकर्ताओं की राय में ‘सुरइनसर’ और ‘मनसर’ इन दो झीलों के बीच के इला़के में रहनेवालों को ‘द्विगर्त’ प्रदेश के लोग कहा जाता है। ये ‘द्विगर्त’ वासी जहाँ रहते थे, उस प्रदेश को ‘द्विगर्त’ कहा जाता था और इस ‘द्विगर्त’ शब्द का अपभ्रंश होकर ‘दुग्गर’ यह नाम बन गया। साथ ही ‘द्विगर्त’का एक अपभ्रंश ‘दुग्रा’ भी हो गया। आगे चलकर द्विगर्त प्रदेश को ‘दुग्गर’ कहा जाने लगा और वहाँ के निवासियों को ‘दुग्रा’ या ‘डोग्रा’/डोगरा।

वहीं कुछ खोजकर्ता, ‘दुग्गर’ इस शब्द का संबंध ‘डुंगर’ यानि पर्वत या पहाड के साथ है, ऐसा कहते हैं। उनकी राय में डुंगर में यानि पर्वतों में या उसके सान्निध्य में रहनेवाले लोगों को ‘डोगरा’/‘डोग्रा’ कहा जाता था और उनके इला़के को ‘दुग्गर’।

तो यह थी इस शहर के नाम की कहानी और वह भी एक नहीं, बल्कि दो नामों की।

‘जम्मू’ शहर के नाम एवं स्थापना के बारे में एक अनोखी कहानी बतायी जाती है। किसी समय ‘तावी’ नदी के तट पर एक बहुत घना जंगल था। इस जंगल में तरह तरह के जानवर रहते थे और इसी वजह से यह शिकार करने का एक अच्छा स्थल था। किसी ज़माने में एक ‘जम्बुलोचन’ नाम के राजा यहाँ शिकार करने आये थे। शिकार करने के लिए वे एक पेड़ की आड़ में छिपकर जानवरों के आने का इंतजार करही रहे थे कि सामने स्थित जलस्रोत में उन्होंने एक अनोखा नज़ारा देखा। उन्होंने यह देखा कि एक बकरी और सिंह दोनों भी एक ही समय वहाँ पानी पी रहे थे। सिंह जैसा शिकारी और उसका शिकार रहनेवाली बकरी एक साथ पानी पी रहे हैं, यह देखकर राजा जम्बुलोचन के मन में यह विचार आ गया कि यह स्थल बहुतही शान्तिपूर्ण रहना चाहिए। इस भूमि को ज़रुर कोई इस तरह का वरदान प्राप्त हुआ होगा यह सोचकर राजा ने यहाँ पर एक नगरी बसाने का फ़ैसला किया। यह घटना इसवीसन पूर्व चौदहवीं सदी की है ऐसा कहते हैं। इस नगर के संस्थापक रहनेवाले राजा ‘जम्बुलोचन’ के नाम से इसका नाम ‘जम्बुनगर’ हो गया, जो आगे चलकर ‘जम्मू’ इस नाम से जाना जाने लगा।

जम्मू के निवासी ‘डोगरा’ या ‘डोग्रा’ इस नाम से जाने जाते हैं। उनकी भाषा को ‘डोगरी’ या ‘डोग्री’ कहते हैं।

जम्मू पर राज करनेवाले राजाओं का इतिहास ठेंठ रामायणकालसे जुड़ा हुआ है। इन राजाओं के वंश की शुरुआत, ‘श्रीराम’ का जन्म जिस कुल में हुआ उस ‘इक्ष्वाकु’ वंश से होती है ऐसा कहा जाता है। इसीलिए ‘श्रीराम’ इन राजाओं के कुलदेवता हैं यह भी कहते हैं।

इस ‘इक्ष्वाकु’ कुल के किसी ‘अग्निगर्भ’ नाम के एक वंशज थे। कांगड़ा के राजा ने अग्निगर्भ को अपने राज्य का कुछ हिस्सा और अपनी बेटी भी दी थी। लेकिन उतने प्रदेश पर राज करने में सन्तोष न मानते हुए उन्होंने रावी नदी के उस पार के इला़के को जीतकर अपनी सीमा को बढाया।

अग्निगर्भ के ‘बयश्रव’ नाम के बेटे ने अपने राज्य की सीमा को और भी बढाया। ‘बयश्रव’ की पत्नी की यानि कि उनकी रानी की मृत्यु युवा उम्र में ही हो गयी। बयश्रव ने उसकी याद में एक नगरी का निर्माण किया। उस नगरी का अस्तित्व आज भी दिखायी देता है और साथ ही उसकी समाधि भी।

‘बयश्रव’ के राज्यविस्तार एवं ख्याति को उसके परपोते ‘बाहुलोचन’ ने बढाया। बयश्रव के बाद बाहुलोचन ने राजगद्दी सँभाली और वह शासन करने लगा।

एक जंग में ‘बाहुलोचन’ के मारे जाने के बाद उसके छोटे भाई ‘जम्बुलोचन’ ने राजगद्दी सँभाली। ये ही हैं वे ऊपर वर्णित किये गये ‘राजा जम्बुलोचन’, जिन्होंने शिकार करते समय सिंह और बकरी को एक साथ देखकर इस जगह ‘जम्मू’ नगरी की स्थापना की।

जम्बुलोचन के भाई ‘बाहुलोचन’ ने तावी नदी के तट पर एक क़िला बनवाया था। वह क़िला उन्हींके नाम से ‘बाहु क़िला’ इस नाम से पहचाना जाता है। आज भी जम्मू शहर में ‘बाहु क़िला’ मौजूद है।

अभी अभी तो हमने जम्मू शहर के अतीत में झाँकना शुरू किया है। अब भी काफ़ी सफ़र करना बाक़ी है। बड़े इतमिनान से हम अगला सफ़र करेंगे।

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