जम्मू भाग-३

तावी नदी का साथ जिसे मिला है ऐसे इस जम्मू शहर ने आज तक के अपने सफ़र में कई घटनाएँ देखी हैं। जिनके नाम से इस शहर को ‘जम्मू’ यह नाम मिला, उन राजा ‘जम्बुलोचन’ के ‘बाहुलोचन’ नाम के भाई ने जब इस ज़मीन पर ‘बाहु’ नामक क़िले का निर्माण करने नींव का पत्थर रखा होगा, वह दिन भी इस शहर ने अपनी यादों में शायद संजोकर रखा होगा।

यह जम्मू शहर पुराने समय से मन्दिरों एवं क़िलों का या राजमहलों का शहर इस रूप में जाना जाता है। इस शहर की इस अनोखी पहचान को जानने के लिए आइए निकलते हैं, सैर पर।

तावी नदी के तट पर खड़े रहते ही दूर कुछ ऊँचाई पर एक क़िला हमें दिखायी देता है। जी हाँ, यह वही क़िला है, जिसका ज़िक्र हम शुरू से करते आ रहे हैं। यह है वह ‘बाहु क़िला’, जिसका निर्माण ‘राजा बाहुलोचन’ ने किया था। इसका निर्माण कब किया गया इसके बारे में कहा जाता है कि राजा बाहुलोचनने लगभग ३००० साल पहले इसका निर्माण किया और इसके निर्माणकर्ता के नामसे ही इसका नाम ‘बाहु क़िला’ हो गया।

बाहुलोचन राजाद्वारा बनाया गया यह क़िला व़क़्त के विभिन्न पड़ावों में से आगे गुज़रता रहा यानि जम्मू पर राज करनेवाले विभिन्न शासकों ने इसमें कुछ और बनवाया होगा या इसकी रचना में कुछ परिवर्तन किये होंगे।

संक्षेप में, राजा बाहुलोचन ने अतीत में बनाया क़िला और आज जो हमें दिखायी देता है वह क़िला रचना की दृष्टि से अलग हो सकता है, मग़र तब भी उसका नाम निर्माण से लेकर अब तक वही रहा है।

चलिए, तो इतना परिचय होने के बाद अब क़िले में दाख़िल होते हैं। आज जिसे हम देखते हैं उस क़िले को बनाया, उन्नीसवीं सदी में जम्मू पर राज करनेवाले गुलाबसिंग नाम के राजा ने और उनके बेटे ने अपने शासनकाल में यहाँ के कुछ रचनाओं का पुननिर्माण किया।

आलिशान, विशाल और बेहद ख़ूबसुरत इन शब्दों में इस क़िले का वर्णन किया जा सकता है। क़िले पर से हमें तावी नदी दिखायी देती है और क़िले के पीछे घना हरा जंगल भी है। संक्षेप में कहना हो, तो क़िले का परिसर बहुत ही सुन्दर हैं।

अब क़िला कहते ही हमारी आँखों के सामने उसकी चहारदीवारी आ जाती है ओर यहाँ पर भी वह है। क़िले को सुरक्षित रखनेवाली, मिट्टी के पाषाणों से बनी चहारदीवारी बिल्कुल दूर से भी साफ़ दिखायी देती है।

अब जिसमें से हम क़िले में दाख़िल हुए, वह क़िले का प्रवेशद्वार इतना विशाल है कि उसमें से हाथी भी बड़ी आसानी से भीतर आ सकता है। दुश्मन से क़िले को सुरक्षित रखने एवं आसपास के इला़के पर नज़र रखने के लिए क़िले में आठ बुर्ज़ भी बनाये गये हैं।

क़िले में दाख़िल होते ही कुछ ही दूरी पर एक तालाब दिखायी देता है। इसमें उतरने के लिए सीढियाँ भी बनायी गयी हैं। क़िले की विभिन्न इमारतों और वास्तुओं की रचना राजमहल की तरह की गयी है और प्रशासकीय कामों के लिए इस्तेमाल किये जानेवाले दालान भी यहाँ दिखायी देते हैं। साथ ही शस्त्र-अस्त्रों का भण्डार भी यहाँ पर है और एक तहख़ाने जैसी रचना भी दिखायी देती है, जिसका इस्तेमाल कैदखाने के रूप में किया जाता था। अब राजा-महाराजाओं के ज़माने में गाड़ियों का इस्तेमाल तो नहीं किया जाता था। तब लोग घोड़ों पर से आया जाया करते थे, इसलिए क़िले में घोड़ों को बाँधने की जगह भी है।

हज़ारों वर्ष पूर्व जिसकी नींव रखी गयी वह क़िला आज उसके निर्माण समय के जैसी स्थिती में तो नहीं है, लेकिन विद्यमान रचनाओंद्वारा हम कुछ अनुमान तो अवश्य कर सकते हैं। फिलहाल इस क़िले में कोई नहीं रहता, वह तो एक दर्शनीय स्थल बन चुका है।

इस क़िले की ख़ासियत है, यहाँ का ‘कालिमाता’ का मन्दिर, जो भाविकों की श्रद्धा का स्थान है। सफ़ेद रंग के संगेमर्मर से बना यह मन्दिर आठवीं या नौवीं सदी में बनाया गया। लेकिन आज के मन्दिर को देखने के बाद ऐसा लगता है कि विद्यमान मन्दिर को कुछ दशक पूर्वही बनाया होगा। हो सकता है कि मूल मन्दिर को आठवीं या नौंवी सदी में बनाया गया होगा। स्थानियों में यह मन्दिर ‘बावेवाली माता का मन्दिर’ इस नाम से मशहूर है।

क़िले की पार्श्‍वभूमी में बसे जंगल में से यहाँ एक ख़ूबसूरत बग़ीचा भी बनाया गया है, जो ‘बाग-ए-बाहु’ इस नाम से जाना जाता है। इसकी रचना मुग़ल गार्डन की तरह की गयी है। आसपास फैली हुई हरियाली, हरे भरे पेड़, डोलनेवाले फूलों की फुलवारियाँ, मधुर धुन सुनाते हुए बहनेवाली नहरें और ऊपर नीले आसमान की छत इस तरह का नज़ारा हमें यहाँ पर दिखायी देता है।

अरे, कहीं हम इन नज़ारों में तो खो नहीं गये? तो चलिए, बाहु क़िले से अलविदा कहकर, जिसे मन्दिरों का शहर कहा जाता है उस जम्मू शहर के केन्द्रवर्ती इला़के की ओर चलते हैं।

जम्मू में कई मन्दिर रहने के कारण इसे मन्दिरों का शहर कहा जाता है। इनमें से कुछ मन्दिर बहुत छोटे हैं और जम्मू के आसपास के छोटेछोटे गाँवों में बसे हैं। वहीं वैष्णोदेवी, अमरनाथ जैसे मन्दिर केवल देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी मशहूर हैं।

अध्ययनकर्ताओं की राय में बनावट के अनुसार मन्दिरों का वर्गीकरण, ‘शिखर पद्धति से बनाये गये मन्दिर’ और ‘पहाड़ी शैली में बनाये गये मन्दिर’ इस तरह दो विभागों में किया जाता है।

शिखर पद्धति के मन्दिरों में आराध्य देवता का गर्भगृह यह मन्दिर का प्रमुख भाग रहता है और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह रहती है कि मन्दिर पर शिखर बनाया हुआ रहता है। साथ ही मंडप, परिक्रमा मार्ग आदि रचनाएँ रहती है। इस पद्धति का बेहतरीन उदाहरण है वह मन्दिर, जहाँ हम जा रहे हैं।

पहाड़ी शैली के मन्दिरों की ख़ासियत यह रहती है कि इनका निर्माण प्रमुख रूप से लकड़ियोंसे किया जाता है ओर उन पर ऩक़्क़ाशीकाम भी किया गया होता है। इन मन्दिरों की छत पर, खम्भों पर इतना बेहतरीन ऩक़्क़ाशीकाम किया गया होता है कि देखनेवाले उन कारीगरों की महारत को मन ही मन सलाम करते हैं। इस तरह के मन्दिरों के गर्भगृह के चारों तरफ़ बरामदे दिखायी देते हैं, जो परिक्रमा मार्ग रहते हैं।

देखिए, बातें करते करते हम जम्मू के केन्द्रवर्ती इला़के में दाख़िल हो भी गये और मन्दिर के शिखर भी दिखायी देने लगे है।

रघुनाथ मन्दिर’! जम्मू का मशहूर मन्दिर। इसमें प्रमुख आराध्य के साथ साथ कुल सात मन्दिर हैं और हर एक मन्दिर का अपना स्वतन्त्र शिखर भी है।

यह रघुनाथ मन्दिर, जिसमें कुल सात देवताओं के मन्दिर हैं, वह इस इला़के का सबसे बड़ा मन्दिरसमूह माना जाता है।

यहाँ के आराध्य हैं ‘भगवान श्रीराम’, जिन्हें ‘रघुनाथजी’ कहा जाता है। वे इस इला़के के डोगराओं के प्रमुख आराध्य देवता हैं।

सन १८३५ से लेकर १८६० तक के कालखंड में इसका निर्माण किया गया। सन १८३५ में जब जम्मू पर गुलाबसिंग का राज था, तब इसका निर्माणकार्य शुरु हुआ और सन १८६० में उन्हीं के बेटे के शासनकाल में वह पूरा हो गया।

मन्दिर में आराध्य के साथ अन्य देवताएँ एवं शिवलिंग भी है। अन्य देवताओं की विशाल मूर्तियाँ यहाँ पर है और लाखों की तादात में ‘शालिग्राम’ भी हैं।

प्रमुख मन्दिर के भीतरी हिस्से को सोने के वर्ख़ से सजाया गया है, ऐसा भी कहते हैं।

इस मन्दिर में हम चित्रकारों की कला भी देख सकते हैं। श्रीराम के जीवन चरित्र की यानि कि रामायण की कुछ प्रमुख घटनाओं के चित्र रामलीला के रूप में और श्रीकृष्णचरित्र के प्रसंग कृष्णलीला के रूप में साकार किये गये हैं।

इस मन्दिर की ख़ासियत है, यहाँ की लायब्ररी, जहाँ कई दुर्लभ संस्कृत हस्तलिखितों को संग्रहित किया गया है। रघुनाथजी के मन्दिर में श्रीराम के दर्शन तो हमने कर लिये। अब आगे कहाँ जाना है, यह हम तय करेंगे, थोड़ासा विश्राम करने के बाद।

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