जम्मू भाग-८

दिल को रिझानेवाली मस्त हवाओं में और खुले आसमान के नीचे विश्राम करने के बाद ७ किलोमीटर्स की दूरी तय करने की थकान तो जैसे गायब ही हो गयी। चलिए, तो पहले ‘अधकावरी’ के दर्शन करके फिर उत्साह के साथ आगे बढेंगे।

‘अधकावरी’ या ‘गर्भ जून’ यह एक प्राकृतिक गुफा है। यहीं पर देवीमाताने नौ महिनों तक तपस्या की थी, ऐसा कहा जाता है। इस गुफा का प्रवेशमार्ग एवं निर्गमन मार्ग बहुत ही संकरा है। दर्शनार्थी इस गुफा में प्रवेश करके इस स्थल के दर्शन करते हैं।

राह में बाणगंगा के बाद आता है, ‘चरणपादुका’ यह स्थल। यहीं पर पल भर के लिए ठहरकर देवी माँ ने वह दुष्ट उसका पीछा कर रहा है या नहीं, यह देखा था।

‘माता वैष्णोदेवी’ का निवास रहनेवाले इस त्रिकुटा पर्वत पर हमेशा दर्शनार्थियों की आवाजाही लगी रहती है। दिन-रात दर्शनार्थी माता के दर्शन करने यहाँ आते रहते हैं। साल भर में लगभग ८० लाख दर्शनार्थी यहाँ आते हैं।

अधकावरी के बाद अब हमें शेष ७ किलोमीटर्स की दूरी तय करनी है। अधकावरी से लगभग २-२.५ किलोमीटर की दूरी पर बसा है, ‘संजी छत’ यह स्थल। यह स्थान आरंभ बिंदू से ९-९.५ किलोमीटर की दूरी पर है। यहीं पर हेलिपॅड बनाया गया है, जहाँ हवाई मार्ग से आनेवाले दर्शनार्थी उतरते हैं।

इस संपूर्ण मार्ग में यानि कि तलहटी से लेकर ठेंठ मुख्य मन्दिर तक कई जगह केवल कुछ देर तक विश्राम करने की ही नहीं, बल्कि ठहरने की भी व्यवस्था है।

‘संजी छत’ के करीब आते ही दर्शनार्थियों का मन देवी माँ का दर्शन करने की उत्कटता से भर जाता है और माँ के दर्शन की इच्छा से उनके पैर भी जल्दी जल्दी उठने लगते है। संजी छत को पार करने के बाद अब हम अधिक ऊँचाई पर आ गये हैं। चढते सयम यही आसपास के इलाके में दूर दूर तक देखा जाये, तो बड़ा ही ख़ुबसूरत नज़ारा देखने मिलता है और खुला आसमान हमारे काफ़ी क़रीब आ गया है ऐसा भी प्रतीत होता है।

बस अब कुछ ही देर में हम मन्दिर में पहॅुंचनेवाले हैं।

‘माता वैष्णोदेवी’ का मुख्य मन्दिर एक प्राकृतिक गुफा में है, यह तो हम जानते ही हैं। मन्दिर के आसपास के इला़के में यानि कि ‘भवन’ में प्रवेश करते ही माता के जयघोष के नारें हमें सुनायी देते हैं। देखिए बतों बातों में मन्दिर का प्रवेशद्वार आ भी गया। यहाँ हर एक को क़तार में से ही आगे बढना होता है। गुफा के स्वरूप को ध्यान में रखकर एक साथ बड़ी संख्या में दर्शनार्थियों को भीतर छोड़ा नहीं जाता और इसीलिए यहाँ पर जल्दबाजीं करना ठीक भी नहीं है।

पाँच हज़ार फीट से अधिक ऊँचाई पर रहनेवाली इस प्राकृतिक गुफा की लंबाई लगभग ९८ फीट है ऐसा कहा जाता है। गुफा में प्रवेश करते ही सामने दर्शन होते हैं, तीन पिण्डियों के स्वरूप में विराजमान रहनेवाली ‘माता वैष्णोदेवी’ के। माता के दर्शन होते ही दर्शनार्थियों के चेहरे पर अपने श्रमों की सफलता होने का सन्तोष साफ़ साफ़ दिखायी देता है। देवी के मुख्य स्थान से, एक प्राकृतिक जलस्त्रोत में से निरन्तर ‘जलधारा’ बहती रहती है, जिसे ‘चरणगंगा’ कहा जाता है। माता वैष्णोदेवी के प्रमुख स्थान के आसपास रहनेवाले पत्थरों को विभिन्न देवताओं का स्वरूप माना जाता है।

माता का जयघोष करते हुए उनके दर्शन करके बाहर निकलनेवालें दर्शनार्थी पुनः नये जोश के साथ, सन्तोषपूर्वक वापसी की यात्रा शुरू करते हैं। अब फिर १४ किलोमीटर्स की दूरी तय करके तलहटी तक आना होता है।

चलिए, तो अब हम भी माता वैष्णोदेवी के दर्शन करके वापस लौटते हैं। लेकिन ज़रा रुकिए, मुख्य मन्दिर से कुछ ही दूरी पर स्थित भैरोनाथजी के मन्दिर में जाकर जब तक दर्शन नहीं करते, तब तक यह यात्रा पूरी नहीं होती, ऐसी मान्यता है।

कुछ लेख पूर्व ही हमने ज़िक्र किया था कि हमें दो स्थलों के दर्शन करने हैं। उनमें से त्रिकुटा पर्वत पर स्थित ‘माता वैष्णोदेवी’ के मन्दिर की यात्रा तो हमने कर ली और अब वापसी की यात्रा भी शुरू हो गयी। अब जिस दूसरे स्थल के दर्शन करने हमें जाना है, वहाँ अब जाना मुश्किल है, क्योंकि साल में चन्द कुछ ही दिनों में यानि कि श्रावण (सावन) महीने में यात्री वहाँ जाते हैं।

‘अमरनाथ’ नाम के पर्वत पर स्थित एक बड़ी गुफा में श्रावण मास में बर्फ़ का एक शिवलिंग बनता है, ऐसा कहते हैं। इसीलिए श्रावण महिने में भाविक वहाँ की यात्रा करते हैं।

अत एव फिलहाल तो हम वहाँ नहीं जा सकेंगे, लेकिन जम्मू की वापसी यात्रा में हम इस स्थल के बारे में जानकारी तो अवश्य प्राप्त कर सकते हैं।

श्रावण महीने की पूर्णिमा को यह शिवलिंग पूर्ण आकार धारण कर लेता है, ऐसा कहा जाता है। अमरनाथ की गुफा की ऊँचाई है, लगभग साढे बारह हज़ार फीट और इसीलिए वहाँ तक जाने का रास्ता भी आसान नहीं है। लेकिन इसके बावजूद भी हर साल लाखों की संख्या में यात्री इस यात्रा को करते हैं, ऐसा कहा जाता है।

दर असल इस यात्रा में यात्रियों को कुदरत के विभिन्न नज़ारे देखने मिलते है। क्योंकि इस राह में नदियाँ, झरनें, बर्फ़, देवदार के पेड़ों के घने जंगल, छोटी बडी पहाड़ियाँ और पर्वतश्रृंखलाओं में से कुछ पहाड़ियाँ बर्फ़ से ढँकीं हुईं तो कुछ प्राकृतिक रूप में सामने आनेवालीं इन सब से हमारी मुलाक़ात होती है। इस राह का सफ़र आसान तो नहीं है, साथ ही कुदरत की मरज़ी पर भी यहाँ के हालात निर्भर करते हैं।

गत कुछ सालों से इस यात्रा पर प्रदेशीय मानवनिर्मित आपत्तियोंका साया मंड़रा रहा है और इसी वजह से हिंसा और ख़ूनख़राबे का सामना भी कभी कभी यहाँ आनेवालों को करना पड़ा है।

बदलते वक़्त के साथ साथ कुदरत का चक्र भी बदल रहा है और ऋतुचक्र की विपरितात का असर यहाँ पर बननेवाले शिवलिंग पर भी देखा गया है।

हर साल लगभग ४ लाख यात्री यहाँ आते हैं, ऐसा कहा जाता है। जुलाई-अगस्त के दौरान ४५ दिनों की अवधि में यह यात्रा की जाती है, यह भी कहते हैं।

इस स्थल के साथ जुड़ी हुईं पौराणिक कथाओं के अनुसार यहीं पर शिवजी ने पार्वतीजी से ‘उत्पत्ति और लय’ का रहस्य कहा था। इस वैश्‍विक रहस्य को बताने के लिए शिवजी ने इस एकान्त स्थल को चुना था, लेकिन उनके आसन के नीच रहनेवाले अंडों में जीवित कबूतरों ने उस रहस्य को सुन लिया और अंडों में से बाहर निकले हुए वे दो कबूतर इस कथा को सुनने के कारण अमर बन गये।

किसी चरवाहे को एक दिन अचानक ही इस स्थल का पता चला और तब से लेकर आज तक यात्री यहाँ आ रहे हैं।

जम्मू या श्रीनगर से आप यहाँ आ सकते हैं।

यहाँ आने का पहला मार्ग है – जम्मू/श्रीनगर-पहलगाम-अमरनाथ गुफा और दूसरा मार्ग है – जम्मू/श्रीनगर-बालताल-अमरनाथ गुफा। जम्मू से पहलगाम की दूरी है, लगभग ३१५ किलोमीटर्स, तो जम्मू से बालताल की दूरी है, लगभग ४०० किलोमीटर्स।

पहले मार्ग को चुननेवाले जम्मू से पहलगाम तक सड़क से जा सकते हैं। कुदरती सुन्दरता से भरपूर रहनेवाले पहलगाम से छोटी गाड़ी में से चंदनवाड़ी तक जाना पड़ता है। चन्दनवाड़ी से पिस्सु टॉप इस ऊँचाईवाले स्थान तक पहुँचने के बाद अगला सफ़र पैदल या घोड़े पर बैठकर कर सकते हैं। पिस्सु टॉप के बाद यात्रा का अगला पड़ाव रहता है, ख़ूबसूरत शेषनाग यह स्थल। शेष के फन की तरह यहाँ की पहाड़ियों की रचना है और गहरे नीले आसमान के नीचे बर्फ़ जितने ठंड़े जल का ‘शेषनाग’ सरोवर भी यहाँ है।

शेषनाग के बाद का पड़ाव है, ‘पंचतरणी’। इस सफ़र में १४ हज़ार फीट की ऊँचाईवाले महागुणा पास को पार करना पड़ता है और उसके बाद उतरकर पंचतरणी जाना पड़ता है। पंचतरणी में पाँच नदियाँ बहती हैं। पंचतरणी से बस ६ किलोमीटर्स की दूरी पर अमरनाथ गुफा है। इस यात्रा के पड़ावों के स्थलों में यात्रियों के ठहरने की तथा खानपान की व्यवस्था की जाती है।

यह सफ़र तो कुदरती सुन्दरता का दिल को रिझानेवाला यादगार मंज़र है।

दुसरे मार्ग से यात्री जम्मू/श्रीनगर से सड़क द्वारा बालताल तक आते हैं और वहाँ से १४ किलोमीटर्स तक का सफ़र पैदल या घोडे पर सवार होकर करके अमरनाथ गुफा तक पहुँचते हैं। इस सफ़र में भी कुदरत के अनोखे नज़ारे आप को देखने मिलते हैं, लेकिन यह रास्ता पहले मार्ग से ज़्यादा मुश्किल माना जाता है।

देखिए, बातों बातों में हम जम्मू पहुँच भी गये। चलिए, अब जम्मू से अलविदा कहकर नये सफ़र पर निकलने का वक़्त भी आ चुका है, तो जम्मू की ख़ूबसूरत यादों को मन में समेटकर आगे बढते हैं।

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