देश की पहली ‘इंटिग्रेटेड़ रक्षा संपर्क यंत्रणा’ राष्ट्रार्पण

नयी दिल्ली, दि. ३० (वृत्तसंस्था) – गुरुवार को रक्षामंत्री मनोहर पर्रीकर के हाथों, देश की पहली इंटिग्रेटेड़ रक्षा संपर्क यंत्रणा राष्ट्रार्पण कर दी गयी। इससे भारतीय रक्षा बलों की संपर्क यंत्रणा अधिक ही मज़बूत हुई होकर युद्ध एवं संघर्षकाल के दौरान रक्षा बलों को एकदूसरे के ठेंठ संपर्क में रहकर, शीघ्रगति से निर्णय लेना संभव होनेवाला है। ‘रक्षाबलों में आपसी समन्वय एवं संपर्क बनाये रखनेवाली यंत्रणा के लिए यह महत्त्वपूर्ण पड़ाव साबित होगा’ ऐसा कहते हुए रक्षामंत्री मनोहर पर्रीकर ने इसका स्वागत किया है।

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भारत की थलसेना, वायुसेना, नौसेना तथा अन्य विशेष बलों में संपर्क एवं सहयोग बढ़ाने की दृष्टि से ‘डिफ़ेन्स कम्युनिकेशन नेटवर्क’ (डीसीएन) बहुत ही महत्त्वपूर्ण साबित होगा। आनेवाले समय में सभी रक्षाबलों में आपसी समन्वय रहने के लिए ‘डीसीएन’ की भूमिका बहुत ही अहम रहेगी। लड़ाख से लेकर ईशान्य भारत तक और ईशान्य भारत से लेकर भारतीय द्वीपों की सीमाओं तक ‘डीसीएन’ का नेटवर्क रहेगा।

सभी रक्षाबलों को अपना खुद का कमांड है, संपर्कयंत्रणा है, साथ ही गुप्तचरयंत्रणा भी है। लेकिन इन सब बलों में समन्वय मज़बूत करने के लिए पहली ही बार स्वतंत्र संपर्क यंत्रणा का निर्माण किया गया है। इससे तीनों रक्षाबल ठेंठ जानकारी का आदानप्रदान कर सकते हैं। वैसे ही, संघर्षकाल के दौरान ठेंठ संपर्क में रहकर शीघ्रगति से निर्णय ले सकते हैं।

रक्षाबलों में समन्वय को बढाने की दृष्टि से सरकार प्रयास कर रही है। इस दिशा में ‘डीसीएन’ की शुरुआत अत्यंत महत्त्वपूर्ण कदम है, ऐसा रक्षामंत्री पर्रीकर ने कहा है। नयी दिल्ली में साऊथब्लॉक कार्यालय में रक्षामंत्री पर्रीकर ने यह यंत्रणा राष्ट्रार्पण की, उस समय तीनों रक्षाबलों के प्रमुख एवं लष्कर के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

‘आज के ज़माने में युद्ध किस तरह लड़ा जायेगा, यह तंत्रज्ञान तय करता है। इसमें संपर्कयंत्रणा की भूमिका बहुत ही अहम रहती है। ‘डीसीएन’ का नेटवर्क पूरे भारत में होकर, इससे भारतीय लष्कर तथा ‘सिग्नल कोर’ किसी भी चुनौति का सामना करने के लिए सक्षम हैं, यह स्पष्ट होता है’ ऐसा लष्कर के सिग्नल ऑफ़िसर इन चीफ़ लेफ़्टनंट जनरल नितीन कोहली ने बताया।

‘डीसीएन’ का निर्माण ‘एचसीएल इन्फ़ोसिस्टिम’ ने किया है। इस प्रकल्प के लिए ६०० करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। इस माध्यम से उच्चश्रेणि की ध्वनि, विडिओ तथा डाटा सेवा भी प्राप्त होगी। इसके लिए १११ जगहों पर विशेष केंद्रों का निर्माण किया गया है। यह यंत्रणा उपग्रहों के साथ ‘टेरेस्ट्रियल मोड़’ पर भी काम कर सकती है।

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