भारत का ‘एमटीसीआर’ प्रवेश निश्चित

pg01_MTCR

नयी दिल्ली/वॉशिंग्टन, दि. ८ (वृत्तसंस्था) – क्षेपणास्त्र एवं ड्रोन तंत्रज्ञान के प्रसार एवं व्यापार पर नियंत्रण रखनेवाले ‘मिसाईल टेक्नॉलॉजी कन्ट्रोल रेजिम’ (एमटीसीआर) इस गुट में भारत का समावेश किया जाने का मार्ग साफ़ हो गया है । ‘एमटीसीआर’ में भारत का समावेश करने के लिए एक भी देश ने विरोध न किया होकर, इस संगठन में भारत का समावेश होना यह महज़ एक औपचारिकता रह गयी है, ऐसा एक राजनीतिक अधिकारी ने कहा है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमरीका दौरे पर रहते ही यह ख़बरलप्रकाशित हुई, यह भारत की बड़ी ही राजनीतिक विजय मानी जाती है ।

अमरीका, कॅनडा, फ़्रान्स, जर्मनी, जापान, ब्रिटन के साथ कुल मिलाकर ३४ देशों का संगठन रहनेवाले ‘एमटीसीआर’ में भारत के प्रवेश के सिलसिले में आक्षेप दर्ज़ करने के लिए कालमर्यादा निर्धारित कर दी गयी थी । यह कालमर्यादा सोमवार ६ जून को ख़त्म हुई । इस कालावधि में एक भी सदस्य देश ने भारत के प्रवेश के लिए विरोध प्रदर्शित नहीं किया है । इसका अर्थ, भारत के इस संगठन में प्रवेश के लिए सभी सदस्य देशों की सहमति है । इस कारण भारत का ‘एमटीसीआर’ प्रवेश निश्चित हो चुका है । भारत जल्द ही ‘एमटीसीआर’ का ३५वाँ सदस्य देश बनेगा ।

‘एमटीसीआर’ में भारत का प्रवेश निश्चित हुआ होने की ख़बर जब आयी, तब अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष बराक ओबामा और भारत ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दरमियान अमरीका-भारत के बीच की सातवीं द्विपक्षीय चर्चा शुरू थी । इस बैठक के बाद ओबामा ने, भारत का ‘एमटीसीआर’ में प्रवेश सुनिश्चित होने पर बधाई दी है ।उसी के साथ अमरीका ने, परमाणुईंधन आपूर्तिकर्ता गुट (एनएसजी) की सदस्यता के लिए भी भारत को समर्थन दिया है । ‘एमटीसीआर’ के प्रवेश के कारण भारत का ‘एनएसजी’ की सदस्यता पर का दावा भी अधिक ही मज़बूत हो गया है ।

जी-७ देशों ने सन १९८७ में ‘एंटीसीआर’ की स्थापना की थी । ५०० किलो से अधिक वज़नवाले तथा ३०० किलोमीटर से अधिक पहुँच रहनेवाले, आण्विक, रासायनिक एवं जैविक अस्त्रों का वहन करनेवाले बॅलिस्टिक क्षेपणास्त्रों का एवं ड्रोन्स का प्रसार रोकने के उद्देश्य से इस गुट की स्थापना की गयी थी । इस संगठन में भारत का प्रवेश अब निश्चित हुआ होने के कारण, अमरीका के साथ साथ ‘एमटीसीआर’ के अन्य सदस्य देशों से अत्याधुनिक क्षेपणास्त्र, अत्याधुनिक तंत्रज्ञान की आयात का मार्ग भारत ते लिए साफ़ हो गया है । अफ़गानिस्तान एवं पाक़िस्तान की सीमा पर तथा सिरिया में अमरिका द्वारा इस्तेमाल किये गये टोह के तथा हमला करनेवाले ड्रोन्स अब भारत अमरीका से प्राप्त कर सकता है । साथ ही, इनका तंत्रज्ञान भी भारत को मिल सकता है । इसीके साथ, भारत ब्रम्होस के साथ साथ अन्य अत्याधुनिक क्षेपणास्त्र निर्यात भी कर सकता है । इससे भारत का समावेश, ऐसे शस्त्र-अस्त्रों की निर्यात करनेवाले प्रमुख देशों में हो सकता है । वैसे ही, ३०० किलोमीटर से ज़्यादा भेदक क्षमता रहनेवाले क्षेपणास्त्रों का निर्माण भी भारत बड़े पैमाने पर कर सकता है ।

भारत एक दशक से भी अधिक समय से आण्विक एवं क्षेपणास्त्र तंत्रज्ञान के हस्तांतरण तथा निर्माण से संबंधित ‘एमटीसीआर’, ‘एनएसजी’, ‘वासेनार अरेंजमेंट’ एवं ‘ऑस्ट्रेलिया ग्रुप’ इन चार गुटों में शामिल होने के लिए लगातार प्रयास कर रहा था । लेकिन अब ‘एमटीसीआर’ के प्रवेश से भरत के इन प्रयासों को पहली सफलता मिली है । इससे आंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रभाव अधोरेखित हुआ भी दिखायी दे रहा है ।

अमरीका भारत में छ: परमाणुभट्टियों का निर्माण करेगी


वॉशिंग्टन, दि. ८ (वृत्तसंस्था) – भारत और अमरीका के बीच हुए नागरी परमाणु समझौते के एक दशक बाद प्रथम ही दोनों देशों के बीच परमाणुऊर्जा संदर्भ में पहले प्रकल्प को हरी झंडी दिखायी गयी है । अमरिकी कंपनी ‘वेस्टिंगहाऊस’ भारत में छः परमाणुभट्टियों का निर्माण कर रही होकर, प्रधानमंत्री मोदी तथा अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष बराक ओबामा ने उसका स्वागत किया है ।

अमरीका की ‘एक्स्पोर्ट-इम्पोर्ट बँक’ इस प्रकल्प के लिए निधि की आपूर्ति करनेवाली होकर, भारत का ‘न्युक्लिअर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया’ (एनपीसीआयएल) तथा ‘तोशिबा कॉर्पोरेशन’ के ‘वेस्टिंगहाऊस इलेक्ट्रिक’ के बीच जल्द ही इस मामले में समझौता होनेवाला है । उसके बाद तुरन्त ही परमाणुभट्टियों के निर्माण की शुरुआत होगी, ऐसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं राष्ट्राध्यक्ष बराक ओबामा ने अपने संयुक्त निवेदन में कहा है।

इन छः परमाणुभट्टियों का निर्माण आंध्रप्रदेश में किया जानेवाला है । इन प्रकल्पों का विवरण जल्द ही प्रकाशित किया जानेवाला होकर, इन प्रकल्पों से भारत को बड़े पैमाने पर ऊर्जा की आपूर्ति होगी।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published.