यूरोपिय देशों में महंगाई की विक्रमी उछाल

महंगाईब्रुसेल्स – रशिया-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि पर यूरोपिय महाद्वीप का हिस्सा होनेवाले ‘युरोझोन’ में महंगाई विक्रमी उछाल पर है। जून में ‘युरोझोन’ में महंगाई दर भारी ८.६ प्रतिशत दर्ज़ होने की जानकारी ‘युरोनेस्ट’ ने प्रदान की। युरोझोन का गठन होने के बाद का यह उच्चांक बना है। रशिया-यूक्रेन युद्ध शुरु होने के बाद ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी महंगाई के इस उछाल का प्रमुख कारण बनकर आगे आया है। महंगाई के उछाल के कारण युरोझोन केआर्थिक विकास दर की भी गिरावट हो रही है और मंदी का खतरा बढ़ने के संकेत प्राप्त हो रहे हैं।

महंगाईयुरोपिय महासंघ में युरो मुद्रा का इस्तेमाल कर रहे १९ देशों के गुट को ‘युरोझोन’ कहा जाता है। इसमें महासंघ के जर्मनी, फ्रान्स, इटली, स्पेन, पोर्तुगाल, ऑस्ट्रिया, डेन्मार्क, नेदरलैण्डस्‌, बेल्जियम जैसे प्रमुख देशों का समावेश है। यह देश यूरोपिय अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाते हैं। इन देशों के साथ बाल्टिक देश एवं पूर्व यूरोपिय देशों को महंगाई ने सबसे अधिक नुकसान पहुँचाया हुआ दिख रहा है। ‘युरोस्टैट’ की जानकारी के अनुसार इस्टोनिया (२२ प्रतिशत), लिथुआनिया (२०.५ प्रतिशत) लाटविया (१९ प्रतिशत) में महंगाई का सबसे अधिक उछाल दर्ज़ हुआ है। इसके बाद स्लोवाकिया में १२.५ प्रतिशत और ग्रीस में महंगाई में लगभग १३ प्रतिशत उछाल देखा गया है।

रशिया-यूक्रेन युद्ध की वजह से बढ़ी ईंधन की किमतें ही महंगाई के इस उछाल का प्रमुख कारण हैं। जून में युरोझोन में ईंधन की कीमतों में ४१ प्रतिशत बढ़ोतरी दर्ज़ हुई है। अनाज़ की कीमतें ८.९ प्रतिशत बढ़ी हैं और औद्योगिक सामान ४.३ प्रतिशत महंगा हुआ है। महंगाई के इस विक्रमी उछाल की पृष्ठभूमि पर युरोपियन सेंट्रल बैंक ने अपने ब्याजदर में बढ़ोतरी करने के संकेत दिए हैं। साल २०१४ से यूरोपियन बैंक का ब्याजदर नकारात्मक रखा गया था। लेकिन, महंगाई की बढ़ोतरी रोकने के लिए ब्याजदर की बढ़ोतरी आवश्यक साबित हो सकती है, ऐसे संकेत युरोपियन सेंट्रल बैंक ने दिए हैं।

युरोझोन में महंगाई पिछले कुछ महीनों से लगातार बढ़ रही है। रशिया-यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले कोरोना की महामारी और इससे बिगड़ी वैश्विक सप्लाई चेन ने यूरोपिय देशों को नुकसान पहुँचाया था। इससे बाहर निकलने पर अर्थव्यवस्था गति प्राप्त करेगी, ऐसे संकेत वित्तसंस्था और विश्लेषकों ने दिए थे। लेकिन, रशिया-यूक्रेन युद्ध से यूरोप का आर्थिक गणित बिगड़ता हुआ दिख रहा है।

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