भारत के ‘चांद्रयान-2’ को चंद्रमा पर पानी के रेणू के अस्तित्व का पता लगा – ‘इस्रो’ के पूर्व अध्यक्ष ए.एस.किरणकुमार

नई दिल्ली – 2012 में ‘इस्रो’ ‘चांद्रयान-2’ मुहिम आंशिक रूप से असफल हुई थी। चंद्रमा की सतह पर ‘लैण्डर’ और ‘रोवर’ उतारने में ‘इस्रो’ नाकाम रही थी, फिर भी भारत का ‘ऑर्बिटर’ ठीक तरह से काम कर रहा है और चंद्रमा की नई-नई जानकारी लगातार नियंत्रण कक्ष तक पहुँचा रहा है। ‘चांद्रयान-2’ मुहिम के दौरान चंद्रमा की कक्षा में सफलता के साथ स्थापित किए गए ऑर्बिटर ने चंद्रमा पर पानी की उपलब्धता के सबूत दिए हैं। चंद्रमा पर हायड्रॉक्सिल और पानी के परमाणुओं की उपलब्धता पाई गई है, यह बात ‘इस्रो’ के पूर्व अध्यक्ष ए.एस.किरण कुमार ने एक रपट में कही है।

‘चांद्रयान-2’‘चांद्रयान-2’ ने चंद्रमा पर पानी की उपलब्धता की खोज़ की है, यह दावा किरण कुमार ने एक रिसर्च पेपर में किया है। यह रपट ‘करंट सायन्स’ नामक जर्नल में प्रसिद्ध की गई है। ‘ऑर्बिटर’ के उपकरणों में ‘इमेजिंग इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर’ लगाए गए हैं। इसके ज़रिये चंद्रमा की ध्रूविय कक्षा का अहम डाटा लगातार प्राप्त हो रहा है। इसी में इन जल परमाणुओं की उपलब्धता पाई गई, यह बात किरण कुमार ने रेखांकित की है। ‘इमेजिंग इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर’ के ज़रिये जल परमाणु यानी पानी के परमाणु (एचटूओ) और हायड्रॉक्सिल (ओएच) चंद्रमा की सतह पर पाए गए हैं।

चंद्रमा के 29 अंश उत्तर और 62 अंश उत्तरी अक्षांश के बीच में ‘चांद्रयान-2’ ने जल परमाणु और हायड्रॉक्सिल की खोज़ की है। चंद्रमा के मैदानी इलाके से अधिक ‘प्लाजियोक्लेज’ के पथरीले क्षेत्र में हॉयड्रॉक्सिल और पानी के परमाणु अधिक मात्रा में देख जाने का दावा भी किरण कुमार ने किया है। भारत के चांद्रयान से प्राप्त हुई यह जानकारी विश्व स्तर के वैज्ञानिकों के लिए काफी अहम साबित होगी। चंद्रमा के हायड्रॉक्सिल और जल निर्माण एवं हायड्रेक्शन की प्रक्रिया का इससे अधिक अध्ययन करना संभव होगा। जल निर्माण के अलग-अलग स्रोतों की भी जानकारी प्राप्त होगी, ऐसा वैज्ञानिकों ने कहा है।

सौर हवा चंद्रमा की सतह पर टकराने से जो माहौल तैयार होता है इससे होनेवाले बदलाव ही चंद्रमा पर हायड्रॉक्सिल तैयार होने के लिए ज़िम्मेदार हो सकते हैं, ऐसा अनुमान ‘इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ रिमोट सेन्सिंग’ (आयआयआरएस) एवं ‘एसएसी’ और ‘यूआर आरो सैटेलाईट सेंटर्स’ के वैज्ञानिकों ने जताया है।

इसी बीच भारत चंद्रमा के दक्षिणी ओर की अंधेरी सतह पर रोवर उतारने में असफल होने के बाद अब अगले वर्ष के लिए ‘चांद्रयान-3’ मुहिम की तैयारी कर रहा है। इसके ज़रिये चंद्रमा की सतह पर फिर से ‘रोवर’ उतारा जाएगा। यह मुहिम सफल हुई तो चंद्रमा की ऐसी मुहिम बनानेवाले चुनिंदा देशों में भारत को स्थान प्राप्त होगा।

अर्थ ऑब्जर्वेशन उपग्रह की मुहिम असफल

‘चांद्रयान-2’

‘अर्थ ऑब्जर्वेशन उपग्रह-3’ (ईओएस-3) पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने की मुहिम असफल हुई है। गुरूवार के दिन 5.45 बजे ‘जीएसएलवी-एफ10’ के माध्यम से ‘ईओएस-3’ को अंतरिक्ष में छोड़ा गया। लेकिन, तीसरे चरण में यह मुहिम ‘क्रायोजेनिक इंजन’ में तकनीकी खराबी होने से सफल नहीं हुई, यह जानकारी इस्रो ने प्रदान की।

इस मुहिम में 2,500 किलो भार का ‘ईओएस-3’ उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित करने की योजना थी। यह उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित होने के मात्र चार घंटे बाद इससे नियंत्रण कक्ष को पृथ्वी के फोटो प्राप्त होने थे। इस उपग्रह के माध्यम से मैपिंग और गश्‍त करना मुमकिन होता। इस वजह से यह उपग्रह लष्करी नज़रिये से भी बड़ा अहम था। इस पर केंद्रीयमंत्री जितेंद्र सिंह ने यह कहा है कि, अब यह मुहिम फिर से तैयार की जाएगी।

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