तिब्बतियों के कार्यक्रम में भारतीय सांसद की मौजूदगी से चीन की बौखलाहट

नई दिल्ली – तिब्बती विस्थापितों की संसद द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मौजूदगी भारत के लोकप्रतिनिधी को इशारा देनेवाला खत चीन के दूतावास ने लिखा है। तिब्बत चीन का भूभाग होने का बयान करके अलगाववादी तिब्बती संगठन के समारोह में भारतीय लोकप्रतिनिधी की मौजूदगी चिंता की बात होने का बयान इस खत में दर्ज़ किया गया है। इस पर प्रतिक्रिया भेजी गई है। भारत में हुई इस गतिविधियों पर आपत्ति जताने का अधिकार चीन को नहीं है, यह इशारा सांसद सुजित कुमार ने दिया है। सुजित कुमार ‘ऑल-पार्टी पार्लमेंटरी फोरम फॉर तिब्बत’ के समन्वयक हैं।

भारतीय सांसद२२ दिसंबर के दिन तिब्बती विस्थापितों की संसद द्वारा आयोजित समारोह में भारतीय संसद के छह सदस्य मौजूद थे। इनमें शासक एवं विपक्षी सांसदों का भी समावेश था। इसकी नई दिल्ली स्थित चीनी दूतावास के ‘पोलिटिकल काऊन्सिलर’ झोऊ योंगशेंग ने खत के जरिए चिंता जताई। तिब्बत स्वतंत्र देश नहीं है बल्कि, चीन का अभिन्न भूभाग है। इसकी वजह से अलगाववादी संगठनों ने आयोजित किए इस समारोह में भारतीय सांसदों की मौजूदगी चिंता की बात है, इन शब्दों में योंगशेंग ने खत के ज़रिये अपनी आपत्ति दर्ज़ की है।

इस पर सुजित कुमार ने प्रतिक्रिया दर्ज़ की है और भारत में आयोजित समारोह पर बोलने का अधिकार ही चीन को ना होने का अहसास उन्होंने कराया। ‘तिब्बत चीन का भूभाग होने की भारत की अधिकृत भूमिका है, यह सच है। लेकिन, हमें तिब्बत चीन का हिस्सा होने की बात स्वीकृत नहीं है’, ऐसा सुजित कुमार ने कहा है। इसके साथ ही सांसदों को खत भेजने के बजाय चीन के दूतावास ने भारत के विदेश मंत्रालय के सामने यह मुद्दा क्यों नहीं उठाया, यह सवाल भी सुजित कुमार ने किया है।

वर्ष १९५९ में चीन ने तिब्बत पर अवैध कब्ज़ा किया था। इसके बाद के दौर में चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत ने तिब्बती जनता का दमन किया। पिछले कुछ वर्षों से तो चीन ने तिब्बत की विशेषता से भरी धर्मसंस्कृति और भाषा का संहार करनेवाली अमानुष नीति लागू की है। भारत के साथ विश्‍वभर में रहनेवाले तिब्बती नागरिकों ने इसके खिलाफ आवाज़ उठाई थी। तिब्बती नागरिकों की इस आवाज़ को दबाने के लिए चीन अपने राजनीतिक एवं आर्थिक ताकत का इस्तेमाल करता रहा है।

भारत के धर्मशाला में तिब्बती शरणार्थियों की सरकार बनी है और यह सरकार मुमकिन होगा वहां पर तिब्बती जनता पर चीन के हो रहे अत्याचारें का मुद्दा उठा रही है। लेकिन, भारत सरकार ने अब तक तिब्बत के मुद्दे पर चीन का विरोध करना टाल दिया था। इसके बावजूद भारत की संप्रभूता को चुनौती देनेवाली नीति अपनाकर उकसानेवाली हरकतें शुरू करनेवाले चीन के लिए संवेदनशील साबित होनेवाले ताइवान और तिब्बत के मुद्दे पर भारत की भूमिका में बदलाव होने लगा है। इसका संज्ञान लेने के लिए चीन मज़बूर है और इसी वजह से चीन की बेचैनी स्पष्ट दिखाई दे रही है। इस पर चीन आपत्ति जताकर एवं धमकाने की कोशिश भी कर रहा है। भारत के सांसदों को चीन के दूतावास का भेजा गया खत इसी कोशिश का हिस्सा है।

लेकिन, भारत को चुनौती देनेवाली हरकतें करने वाले चीन की ऐसी आपत्तियों का संज्ञान अब भारत नहीं लेगा, यह भी अब स्पष्ट दिखाई देने लगा है। इस वजह से चीन की बेचैनी अधिकाधिक बढ़ रही है।

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