‘नाटो प्लस’ को अस्वीकृत करके भारत ने समझदारी दिखाई – चीन के सरकारी मुखपत्र का बयान

बीजिंग – अमरीका भारत को ‘नाटो प्लस’ में शामिल होने का प्रस्ताव दे रही हैं। लेकिन, समझदारी दिखाकर भारत ने यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया है। इसके बजाय अमरीका और चीन के बयानबाज़ी को बारीकी से देखने की नीति भारत ने अपनाई हैं, ऐसा चीन के सरकारी मुखपत्र ग्लोबल टाईम्स ने कहा है। स्पष्ट दावा नहीं किया हो, फिर भी चीन जैसे ताकतवर देश से टकराने के लिए तैयार ना होने के कारण ही भारत ‘नाटो प्लस’ को नकार रहा हैं, ऐसे संकेत ग्लोबल टाईम्स के इस लेख में दिए गए हैं।

‘क्वाड’ या ‘नाटो प्लस’ जैसे चीन विरोधी संगठनों का भारत हिस्सा ना हो, यह आवाहन चीन लगातार कर रहा हैं। ऐसा करने पर भारत अपनी संप्रभुता खो देगा, ऐसी चिंता चीन ने व्यक्त की थी। इस वजह से भारत की विदेश नीति का संतुलन और संप्रभुता की भारत से अधिक चिंता चीन ही करता सामने आ रहा था। इस मुद्दे पर किसी समय भारत को आवाहन करते समय धमकाने का बेताल रवैया भी चीन ने दिखाया है। इसके लिए अपने सरकारी माध्यम एवं विश्लेषकों को चीन ज़रिया बना रहा हैं।

भारत ने ‘नाटो प्लस’ का हिस्सा ना होने के संकेत देने के बाद सबसे पहले चीन ने राहत की सांस ली है। इसके बाद भारत की तटस्थता एवं संतुलित विदेश नीति की सराहना करके ग्लोबल टाईम्स के लेख में भारत की इस नीति के पीछे चीन का सामर्थ्य होने के संकेत दिए गए हैं। दो बड़े देशों के संघर्ष में हमें पड़ना नहीं हैं, ऐसी रक्षात्मक भूमिका भारत ने अपनाई हैं, क्यों कि भारत अपना ही नुकसान कराने की मंशा नहीं रखता, यह दावा इस लेख में किया गया है। साथ ही अमरीका के ‘नाटो प्लस’ में भारत शामिल हुआ तो रशिया के साथ जारी अपना सहयोग खत्म होगा, इसका अहसास भारत रखकर हैं। भारत को सबसे अधिक मात्रा में हथियारों की आपूर्ति कर रही रशिया का असहयोग भारत बर्दाश्त नहीं कर सकेगा, यह अनुमान इस लेख में व्यक्त किया गया है।

इसके साथ ही अमरीका और नाटो देशों ने अब तक पाकिस्तान को सहायता प्रदान की थी, यह भारत कभी भी नहीं भुलेगा। इस वजह से ‘नाटो प्लस’ को भारत समझदारी से  अस्वीकृत किया है, ऐसा ग्लोबल टाईम्स ने कहा है। लेकिन, पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति कर रहें देशों में चीन का भी समावेश हैं, इस मुद्दे का समावेश ग्लोबल टाईम्स के इस लेख में नहीं हैं। बल्कि, चीन से पाकिस्तान को प्रदान हो रही सैन्य एवं अन्य सहयोग के पीछे भारत विरोधी रणनीति होने की बात बार बार स्पष्ट हुई थी। इस तरह से भारत के खिलाफ रणनीति बनाता रहा चीन अब भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और संप्रभुता के दाखिले दे रहा हैं। इसके पीछे भारत-अमरीका की अपने विरोध में एकजूट ना हो, इतनी ही चीन की भावना हैं। इसके आगे जाकर चीन भारत के साथ मित्रता का सहयोग विकसित करने के लिए तैयार नहीं हैं, यह मुद्दा भी ग्लोबल टाईम्स के इस लेख से फिर से स्पष्ट हुआ है।

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