जम्मू-कश्मीर हिंसा के लिए बच्चों का इस्तेमाल करनेवालों को, इसका जवाब उन बच्चों को देना पड़ेगा : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

नई दिल्ली, दि. २८ (वृत्तसंस्था)- ‘एकता’ और ‘ममता’ से ही जम्मू-कश्मीर की हिंसाचार की समस्या का हल मिल सकता है, ऐसा भरोसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिलाया| ‘आकाशवाणी’ से प्रसारित हुए ‘मन की बात’ कार्यक्रम में बात करते समय, प्रधानमंत्री ने राज्य के हिंसाचार पर तीव्र शोक जताया| कश्मीर की हिंसा में किसी की भी जान जाये, तो उसकी हानि देश को ही पहुँचती है, ऐसा खेद प्रधानमंत्री ने ज़ाहिर किया। लेकिन हिंसाचार के लिए बच्चों का इस्तेमाल करनेवालों को, एक ना एक दिन उन बच्चों के सवालों का जवाब देना ही पड़ेगा, ऐसा कहकर प्रधानमंत्री ने अलगाववादियों को कड़ी चेतावनी दी|

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीपिछले पचास से भी अधिक दिनों से जम्मू-कश्मीर में हिंसा जारी है| इस हिंसा में रक्षा दल के जवान और कश्मीरी युवक इनमें से किसी की भी जान जाये, तो उसमे हानि अपने देश की ही है| लेकिन ऐसे कठिन समय में, सभी राजनीतिक पार्टियों ने इक्कठा होकर एक ही भूमिका अपनायी| इससे जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी गुट और दुनिया को सही संदेश मिला है| साथ ही, जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के प्रति रहनेवालीं देश की संवेदनाएँ भी व्यक्त हुईं, ऐसे प्रधानमंत्री मोदी ने कहा|

जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर सभी राजनीतिक पार्टियों के साथ चर्चा होने के बाद एक बात स्पष्ट हुई है| ‘एकता’ और ‘ममता’ इन दो मंत्रों के माध्यम से ही जम्मू-कश्मीर की समस्या पर हल निकाला जा सकता है| अपना देश बहुत बड़ा है, विभिन्नता से भरा हुआ है| विभिन्नता से भरे इस देश को इकठ्ठा रखने के लिए, एकता को ताकत देनेवालीं बातों को ज़्यादा प्रोत्साहन दो; साथ ही बात करो| नागरिक के तौर पर, समाज के तौर पर और सरकार के रूप में भी यह अपना कर्तव्य है, ऐसे प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया|

जम्मू-कश्मीर में रक्षादलों पर किये जानेवाले पथराव का उदाहरण देकर, उसके लिए युवकों का इस्तेमाल किया जा रहा है, यह आलोचना जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ़्ती ने की थी| प्रधानमंत्री से हुई चर्चा के बाद मुख्यमंत्री मुफ्ती ने प्रसारमाध्यम से बोलते समय, हिंसा के लिए बच्चों का इस्तेमाल करनेवाले अलगाववादी नेताओं को खरी खरी सुनायी थी| ‘मन की बात’ में बात करते समय प्रधानमंत्री ने भी, बच्चों को हिंसा के लिए प्रवृत्त करनेवालों को आगे चलकर उनके सवालों का जवाब देना पडेगा, ऐसा डटकर कहा| इस दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय के राज्यमंत्री जितेंद्र सिंग ने भी, अलगाववादी नेता अपने बच्चों को, अपने परिवारों को महफ़ूज़ रखते हैं। ये अलगाववादी नेता अपने बच्चों को हिंसा के मार्ग पर लाने के लिए तैय्यार नहीं हैं| लेकिन ये अलगाववादी नेता आम कश्मीरी युवकों के भविष्य की परवाह नहीं करते, इस बात पर जितेंद्र सिंग ने ग़ौर फ़रमाया| सरकार आतंकवादियों के मुद्दे पर कोई भी समझौता नहीं करेगी| साथ ही, हिंसा करनेवालों पर भी कड़ी कार्रवाई करेगी, यह भी जितेंद्र सिंग ने स्पष्ट किया|

पीओके’ के विस्थापितों के लिए दो हज़ार करोड़ का पॅकेज

नयी दिल्ली, दि. २८ (वृत्तसंस्था)- गोलीबारी और बारुद विस्फोट में जान गँवानेवाले ‘पाकिस्तान के कब्ज़ेवाले कश्मीर’ (पीओके) के लोगों के परिवारों को मुआवज़ा देने की घोषणा पिछले सप्ताह में ही सरकार ने की थी| इसके बाद अब केंद्र सरकार, ‘पीओके’ के विस्थापित परिवारों के लिए भी जल्द ही पॅकेज की घोषणा करेगा| ‘पीओके’ से विस्थापित हुए और अब भारत में आश्रय लेनेवाले ३६ हजार ३४८ परिवारों को दो हज़ार करोड़ रुपये का पॅकेज देने का फैसला हुआ होकर, जल्द ही यह पॅकेज मंज़ुरी के लिए मंत्रिमण्डल के सामने पेश किया जायेगा, यह जानकारी गृहविभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने दी|

स्वतंत्रता दिन समारोह के भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘पीओके’ के लोगों पर पाकिस्तान द्वारा होनेवाले अत्याचार और मानवाधिकार उल्लंघन का मुद्दा उपस्थित किया था| साथ ही, पाकिस्तान के कब्ज़ेवाले कश्मीर के लोगों के साथ संपर्क करके ‘पीओके’ की परिस्थिति के बारे में जानकारी लेने के आदेश प्रधानमंत्री ने दिये थे|

‘पीओके’ के लोगों के साथ संपर्क बढ़ाने की सरकार द्वारा हाथ में ली गयी योजना की पृष्ठभूमि पर जल्द ही, भारत में रहनेवाले ‘पीओके’ के विस्थापितों के लिए सरकार बड़े पॅकेज की घोषणा करने की तैय्यारी में है| इस संदर्भ में सभी काम पूरा हो चुका होकर, सिर्फ़ केंद्रीय मंत्रिमण्डल की मंज़ुरी बाकी है, ऐसे गृहमंत्रालय के अधिकारी ने स्पष्ट किया|

सन २०१५ के जनवरी महीने में ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में रहनेवाले ‘पीओके’ के विस्थापितों की मदद के लिए योजना बनाने के लिए मंज़ुरी दी थी| सन १९४७, १९६५ और १९७१ के भारत-पाकिस्तान युद्धों में कई परिवार विस्थापित हुए| अब इनमें से कई परिवार जम्मू-कश्मीर के जम्मू, कथुआ और राजौरी में रहते है| उन परिवारों को कई समस्याओं का सामना करना पड रहा है| भारतीय नागरिक होने के नाते उन्हें लोकसभा में मतदान करने का अधिकार है| लेकिन जम्मू-कश्मीर राज्य के क़ानून के अनुसार उन्हें विधानसभा में मतदान करने का अधिकार नहीं मिला है| इन विस्थापितों को राज्य सरकार की नौक़रियाँ नहीं मिलतीं| इससे पहले, विस्थापित युवकों को अर्ध-सैनिक दलों में शामिल करने का फ़ैसला किया गया था| साथ ही, छात्रों को केंद्रीय विद्यालय में पढ़ाई करने के लिए ऍडमिशन देने का फैसला भी पहले ही हो चुका था|

‘गिलगिट बाल्टिस्तानसमेत संपूर्ण ‘पीओके’ भारत का हिस्सा है’ यह बात भारत समय समय पर स्पष्ट करता आया है| सरकार ने इस संदर्भ में हाल ही में अपनायी नीति के अनुसार, अगले ‘प्रवासी भारतीय दिवस’ पर ‘पीओके’ और ‘गिलगिट-बाल्टिस्तान’ से संबंधित लोगों को भी आमंत्रित किया जानेवाला है, ऐसी ख़बर है।

 

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