तिब्बत समस्या का हल निकलने पर भारत-चीन सीमा विवाद अपने आप ख़त्म होगा

तिब्बती शरणार्थियों की सरकार के प्रमुख का दावा

नई दिल्ली/धरमशाला – यदि तिब्बत के मसले का हल निकला, तो भारत-चीन सीमा विवाद अपने आप ही ख़त्म होगा, यह दावा भारत में स्थित तिब्बत की शरणार्थी सरकार के प्रमुख डॉ. लॉबसांग सांगेय ने किया है। जब तक तिब्बत पर चीन ने कब्ज़ा नहीं किया था, तब तक यहाँ की सीमा पर सेना तैनात करने की जरूरत भी भारत के सामने खड़ी नहीं हुई थी, इसकी याद भी डॉ. सांगेय ने दिलायी है। अमरिकी संसद में तिब्बत की आज़ादी की माँग करनेवाला विधेयक पेश हुआ है और तभी तिब्बत का मसला भारत-चीन सीमा विवाद से जोड़कर डॉ. सांगेय ने काफ़ी बड़ी कूटनीतिज्ञता का दर्शन कराया है।CTA President Dr Lobsang Sangay

लद्दाख की गलवान नदी और पैंगोंग लेक के क्षेत्र में भारत और चीन के सैनिक एक-दूसरें के सामने खड़े हुए हैं। पिछले २० दिनों से इस क्षेत्र में काफ़ी मात्रा में तनाव बना है और दोनों देशों ने इस इलाके में सेना तैनाती भी बढ़ाई है। इसी बीच सीमा क्षेत्र में अपने लड़ाकू विमानों की उड़ान भरकर चीन ने भारत को युद्ध की चेतावनी दी है। लेकिन, भारत ने चीन को उसी भाषा में ज़वाब देने की पूरी तैयारी की है और इस कारण भारत पर दबाव बढ़ाने की कोशिश कर रहें चीन पर ही दबाव बढ़ता दिख रहा है।

इस पृष्ठभूमि पर, हिमाचल प्रदेश के धरमशाला में स्थित तिब्बती शरणार्थियों की सरकार के प्रमुख डॉ. सांगेय ने, इस समस्या के लिए चीन ही ज़िम्मेदार होने का बयान किया है। लद्दाख निःसंदिग्धता से भारत का हिस्सा है और चीन ने बेवजह ही इस विवाद का निर्माण किया है, यह बात डॉ. सांगेय ने ड़टकर कही है। भारत और तिब्बत के संबंध ऐतिहासिक हैं। करीबन दो हज़ार वर्ष से भी अधिक समय से भारत और तिब्बत के संबंध चलें आ रहें हैं और दो हज़ार वर्ष पहले से भारत-तिब्बत की सीमा जैसी थी वैसी ही स्थापित करना, यही इस विवाद का एकमात्र हल है, यह सुझाव डॉ. सांगेय ने दिया है। जब तक तिब्बत के मसले का हल निकलता नहीं, तब तक भारत-चीन सीमा विवाद भी ख़त्म नहीं होगा, यह दावा डॉ. सांगेय ने किया।

भारत-तिब्बत सीमा पर शांति चाहिए, यहाँ बंदूक का कुछ काम नहीं है। जब तक तिब्बत पर चीन ने कब्ज़ा किया नहीं था, तब तक वहाँ पर शांति बनी थी। सीमा पर सेना की ज़रूरत ही नहीं पड़ी थी, इसपर डॉ. सांगेय ने ग़ौर फ़रमाया। इस कारण, यदि तिब्बत से सैनिक पीछे हटें और यदि वहाँ पर शांति स्थापित हुई, तो वहाँ का सीमाविवाद हमेशा के लिए ख़त्म होगा और वहाँ पर हमेशा के लिए शांति बनी रहेगी, यह विश्‍वास डॉ. सांगेय ने व्यक्त किया है।

हज़ारों वर्षों का इतिहास देखें, तो तिब्बत आज़ाद देश था, यह स्पष्ट होता है। सन १९१४ में चीन, तिब्बत और ब्रिटीश इंडिया ने समझौता किया था। उस समझौते का चीन ने स्वीकार किया था। लेकिन, बाद में चीन ने यह समझौता ठुकराकर तिब्बत पर कब्ज़ा किया। ऐसी स्थिति में यदि हमने अब तिब्बत की आज़ादी की माँग की, तो हमें कौन समर्थन देगा? हमारे लिए कौन अपनी सेना भेजेगा? ऐसे कई सवाल हैं। इसी वज़ह से हम चीन के पास आज़ादी की माँग न करते हुए, पूरी स्वायत्तता की माँग कर रहें हैं। लेकिन चीन तिब्बत को स्वायत्तता देने के लिए भी तैयार नहीं हैं, यह अफसोस भी डॉ. सांगेय ने इस दौरान व्यक्त किया।

इसी बीच, अपनी संसद में तिब्बत की आज़ादी का विधेयक पेश कर रहीं अमरीका, इस मसले का पूरा अध्ययन करें, यह माँग तिब्बती युथ काँग्रेस ने की है। चीन जिसे ‘तिब्बती ऑटोनॉमस रिजन’ कहता है, वह असल में मूल तिब्बत का आधा ही हिस्सा है। ‘ऑटोनॉमस रिजन’ घोषित करते समय चीन ने तिब्बत का आधा हिस्सा अपने कब्ज़े में रखा था। उस ज़गह की जनता पर चीन ने अनन्वित अत्याचार किए हैं, यह बयान तिब्बती युथ काँग्रेस के अध्यक्ष गोनोपो धुंडूप ने किया है।

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