हैदराबाद भाग-६

श्रीशैलम् से हम चले थे और अब हैदराबाद शहर में दाखिल हो भी चुके हैं। वह देखिए, सामनेही एक बहुत विशाल एवं सुंदर वास्तु दिखायी दे रही है। तो अब व़क़्त ज़ाया न करते हुए चलिए, उस वास्तु को देखते हैं।

अभी तो हमें पूरा हैदराबाद शहर देखना है। तो आइए, हैदराबाद शहर से अटूट रूप में जु़ड़ी हुई इस वास्तु से ही हमारे सफ़र की शुरुआत करते हैं।

हैदराबाद शहर के नाम के साथ बहुत बार हम इस वास्तु की छबि देखते हैं, इस क़दर यह वास्तु और हैदराबाद एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।

जी हाँ, चार बड़े मीनारोंवाली वास्तु की छबि हम हैदराबाद शहर के साथ कई बार देखते है। जी हाँ, आपने ठिक पहचाना यह है – ‘चारमिनार’।

अब जब कि हम इस चारमिनार के सामने ही खड़े हैं, तो नज़र उठाकर इसे पूरा का पूरा देख लेते हैं और फिर उसके बाद इसमें प्रवेश करते हैं।

गोलकोंड़ा के शासकों ने जब अपनी राजधानी को गोलकोंड़ा से हैदराबाद में स्थलान्तरित किया, तब कुछ ही महीनों में चारमिनार का निर्माण किया। उस वक़्त इस इला़के पर कुतुबशाही राजवंश की हुकूमत थी और इसी राजवंश के पाँचवें शासक ने इस ‘चारमिनार’ का निर्माण किया।

उन्होंने जब गोलकोंड़ा से हैदराबाद को राजधानी का स्थलान्तरण किया, तब यह इलाक़ा विकसित नहीं हुआ था। इसी वजह से प्रारंभिक समय में यहाँ आकर बसनेवालों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा होगा। चारमिनार के निर्माण के पीछे का उद्देश्य जानने पर हमें इसका अँदेशा होता है।

चारमिनार के निर्माण के पीछे की कहानी कुछ इस तरह से कही जाती है। उस वक़्त इस शहर में प्लेग का संसर्ग हुआ था। इस महामारी से छुटकारा पाने के उद्देश्य से इस प्रदेश के शासक ने यानी चारमिनार के निर्माणकर्ता ने प्रार्थना की थी और प्लेग की महामारी से मुक्ति मिलने पर कृतज्ञता/याद के रूप में उसने वह जहाँ पर प्रार्थना करता था, उस स्थान पर चारमिनार की नींव रख दी।

शहर के बीचों बीच इस चारमिनार का निर्माण किया गया और उसके चारों तरफ़ शहर विकसित होता गया। उस ज़माने में चारमिनार से चारों प्रमुख दिशाओं में चार रास्ते निकलते थे।

सन १५९१ में यानी सोलहवीं सदी के अन्त में ‘चारमिनार’ का निर्माण किया गया। एक प्रार्थनास्थल के रूप में बनायी गयी इस वास्तु के अहम हिस्सें हैं, चार ऊँचें मीनार और इसी वजह से यह वास्तु ‘चारमिनार’ इस नाम से जानी जाने लगी। इस वास्तु का प्रार्थनास्थल यह रूप आज भी बरक़रार है, लेकिन आज के हैदराबाद में चारमिनार के आसपास तरह तरह की चीज़ों का बड़ा मार्केट विकसित हुआ है।

चौकोर आकार की इस वास्तु के चार खानों में चार ऊँचें मीनार बनाये गये। हर मीनार की ऊँचाई है, लगभग ५६ मीटर्स। सारी वास्तु उस ज़माने की अलंकरण शैली से सजी हुई है। इसकी ऊपरी मंज़िल पर जाने के लिए १४९ सीढीयाँ चढनी पड़ती है और वहाँ से पूरा हैदराबाद शहर दिखायी देता है। ग्रॅनाईट, लाईमस्टोन और मार्बल यानी संगेमर्मर का इस्तेमाल इसके निर्माण में किया गया है।

रात में रोशनी से जगमगाता हुआ चारमिनार इस शहर की सुन्दरता में चार चाँद लगा देता है।

हैदराबाद का नाम लेते ही कई लोगों को एक और स्थल की याद आयी होगी। उसे देखने के लिए हमें चारमिनार को अलविदा कहना होगा।

अब चलते चलते चारमिनार के बारे में और कुछ जानकारी लेते हैं। एक फ्रान्सिसी कमांडर ने इसका इस्तेमाल अपने शासनकाल में ‘हेडक्वार्टर्स’ के रूप में किया था। सन १८८९ में इस वास्तु के चारों छोरों में चार घड़ियाँ लगायी गयी। चारमिनार के बारे में यह भी कहा जाता है कि गोलकोंड़ा का क़िला और चारमिनार के बीच एक बड़ी सुरंग बनायी गयी थी।

सामने फैली हुई पानी की एक बड़ी झील दिखायी दे रही है। जी हाँ, यही है ‘हुसेन सागर’! हैदराबाद शहर की सफ़र का हमारा दूसरा स्थल।

हैदराबाद और उसका जुड़वा भाई कहे जानेवाले ‘सिकंराबाद’ इन शहरों के मीटिंग पॉईंट पर बसा है, ‘हुसेन सागर’। इसके तट से जानेवाली सड़क हैदराबाद और सिकंदराबाद को आपस में जोड़ती है।

मुसी नदी की एक उपशाखा पर इस झील का यानी हुसेन सागर का निर्माण किया गया। समय था सन १५६२ का। उस वक़्त यहाँ पर कुतुबशाही राजवंश का राज था। हैदराबाद अभी अभी बसने लगा था और चारों तरफ़ बसने भी लगा था। फिर यहाँ की आबादी की पानी की समस्या को हल करने की दृष्टि से और खेती के लिए जल उपलब्ध कराने के लिए इस झील का निर्माण किया गया। सारांश, यह मानवनिर्मित झील है।

उस ज़माने में इसे बनाने में लाखों रुपये खर्च किये गये। इसके निर्माणकर्ता के नाम से ही इसका नाम रखा गया। बीसवीं सदी के पूर्वार्ध तक हैदराबाद की जनता के लिए यह महत्त्वपूर्ण जलस्रोत था।

आजकल हुसेन सागर यह हैदराबाद आनेवाले सैलानियों का पसंदीदा पर्यटन स्थल बना है। इस झील के आसपास के उद्यान और हरियाली, इस झील में स्थित लगभग १८ मीटर्स ऊँचाईवाली गौतमबुद्ध की मूर्ति और रात में रंगबिरंगी रोशनी से जगमगाती झील, ये सारी बातें झील की सुन्दरता को बढाती हैं।

सेलिंग यानी नौकानयन। सेलिंग के शौक़ीनों का यह पसंदीदा स्थल है। यहाँ पर तरह तरह की सेलिंग प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है।

इस झील के तट पर से जा रही सड़क, जो हैदराबाद और सिकंदराबाद को जोड़ती है, वह पुराने समय में काफ़ी साकरीं थी। सन १९४६ के आसपास यातायात की सुविधा की दृष्टि से इसे चौड़ा बनाया गया।

राजधानी बनने के बाद हैदराबाद की आबादी बढती रही। इस बढती हुई आबादी को जल की आपूर्ति करने के उद्देश्य से बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में हैदराबाद के पास में ही और दो झीलो का निर्माण किया गया।

साथ ही सन १९०८ मे यहाँ पर आयी बाढ की यादें यहाँ के निवासियों के मन में ताज़ा थीं। यहाँ के निवासियों को पीने का पानी उपलब्ध कराने और साथ ही बाढ का खतरा टालने हेतु सन १९२० में मुसी नदी पर एक झील का निर्माण किया गया। फिर सन १९२७ में मुसी नदी की एक उपशाखा पर एक और झील का निर्माण किया गया।

इन प्रमुख झीलों के अलावा हैदराबाद शहर और उसके आसपास कुल १२-१३ झीलें हैं। इनमें सें अधिकतर झीलों का निर्माण जल की आपूर्ति करने के उद्देश्य से किया गया था, लेकिन आज वे सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र बन चुके हैं।

‘फ़लक़नुमा’ यह नाम कुछ अलग सा ही लगता है ना! चलिए, यह क्या है देखा जाये।

हैदराबाद की खूबसूरती बढानेवाली यह एक वास्तु है। यह है एक राजमहल यानी पॅलेस। निज़ामों के शासनकाल में बनाये गये कई राजमहलों में से यह एक है- ‘फ़लक़नुमा पॅलेस’!

‘फ़लक़नुमा’ का अर्थ है आसमाँ की तरह दिखायी देनेवाला या मानों आसमाँ का ही जैसे आइना हो। सफ़ेद रंग का यह फ़लक़नुमा पॅलेस कई एकर्स की ज़मीन पर फैला हुआ है और इसकी सभी वास्तुएँ भी सफ़ेद रंग की ही हैं।

सन १८८४ के मार्च महीने में इस पॅलेस की नींव रखी गयी। इसके निर्माण एवं इसे सजाने में लगभग ९ साल लगे थे। बीचों बीच प्रमुख वास्तु और उसकी दोनों तरफ़ फैली हुईं अन्य वास्तुएँ यह इसका स्वरूप है। किसी अँग्रेज़ आर्किटेक्ट ने इसकी रूपरेखा बनायी और इटालियन मार्बल से इसका निर्माण किया गया।

एक ही समय में सौ लोग खाना खाने बैठ सकते हैं इस क़दर बनाया गया बड़ा डायनिंग हॉल और टेबल, कुल २२० क़मरें और २२ बड़ें हॉल। देखिए, इस वर्णन को पढते ही इसके वैभव का अनुमान हम कर सकते हैं।

फिलहाल एक लक्झरी हॉटेल रहनेवाले इस पॅलेस को अभी हम सामने से देख ही चुके है। अब इसके वैभव के बारे में जानकारी हम अगले स्थल की ओर प्रस्थान करते हुए प्राप्त करेंगे।

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