हैदराबाद भाग-३

वह देखिए, ‘हैदराबाद’ शहर के नाम का बोर्ड सामने दिखायी दे रहा है। जी हाँ, हम पहुँच ही चुके हैं ‘हैदराबाद’ में। हैदराबाद शहर में दाखिल होने से पहले हम गोलकोंड़ा की सैर कर आये हैं। आइए, अब आन्ध्रप्रदेश की राजधानी को देखा जाये।

लगभग ४००-५०० वर्ष पूर्व इस शहर की नींव रखी गयी, यह तो हम देख ही चुके हैं। हैदराबाद शहर के अस्तित्व में आने से पहले यह सारा इलाक़ा गोलकोंड़ा के अधिपत्य में था, यह भी हम जान ही चुके हैं।

इसापूर्व तीसरीं सदी में इस इला़के पर मौर्य राजवंश का शासन था। मौर्य के बाद सातवाहन राजवंशने यहाँ पर राज किया और उनके बाद यहाँ की सत्ता की बागड़ोर सम्भाली आन्ध्र इक्ष्वाकु राजवंश ने।

इनके बाद कई राजवंशोंने यहाँ पर राज किया। उसमें चालुक्य राजवंश था और उनके बाद वारंगल में जिनकी राजधानी थी, वह काकतीय राजवंश भी। पंद्रहवीं सदी के मध्य में दक्षिण में राज करनेवाले बहामनी राजवंश की यहाँ पर हुकूमत शुरू हो गयी।

उस वक़्त यह सारा इलाक़ा गोलकोंड़ा के शासकों के अधिपत्य में था। बहामनी राजा द्वारा नियुक्त किया गया अधिकारी इस प्रदेश पर शासन करता था। गोलकोंडा पर राज करनेवाले शासक से ही कुतुबशाही राजवंश का उदय हुआ।

इन शासकों के शासनकाल में गोलकोंड़ा का राज्य फैलता गया। इस विस्तार को ध्यान में रखकर और ऊँचाई पर बसे गोलकोंड़ा क़िले के भौगोलिक स्थिती पर ग़ौर करके यहाँ के शासकों को यह महसूस हुआ कि प्रजा को बसने के लिए किसी अच्छी जगह का होना ज़रूरी है और इसी दिशा में खोज करते हुए उन्हें गोलकोंड़ा के पास ही रहनेवाली इस जगह का पता चला।

यह इलाक़ा गोलकोंडा के पास, नदी के तट पर और बिना किसी आबादीवाला था और यहीं पर ‘हैदराबाद’ नाम के शहर की नींव रखी गयी। इस नये शहर का नाम उसके शासक ने रखा- ‘हैदराबाद’। समय था, सोलहवीं सदी का आखिरी दशक, लगभग सन १५९१ का।

इस शहर के निर्माण के बाद कुछ ही समय में यह शहर मशहूर हुआ और वैभवशाली भी। कुतुबशाही राजवंश के शासनकाल में हैदराबाद हीरें, मोती, प्रिंटेड़ फँब्रिक, स्टील और शस्त्रों के व्यापार का बड़ा केन्द्र बन गया। उस ज़माने में इस शहर की खूबसूरती में चार चाँद लगानेवालीं कई वास्तुओं का निर्माण किया गया, कई बग़ीचें बनाये गये। इसी वजह से इस शहर में आनेवाले सैलानी इस शहर की खूबसूरती से मोहित हो जाते थे।

लगभग सतरहवीं सदी के मध्य में मुग़लों का रुख दक्षिण की ओर हो गया। सब से पहले उन्होंने घेर लिया गोलकोंड़ा को। गोलकोंड़ा को लगभग ९ महिनों तक उन्होंने घेर लिया था। ९ महिनों तक दुश्मन का मुक़ाबला करनेवाला यह क़िला आखिर दग़ाबाजी के कारण दुश्मन के हाथ में पड़ गया।

गोलकोंड़ा जीतने के बाद इस इला़के पर मुग़ल हु़कूमत करने लगे। इसके बाद इस शहर से चलनेवाला कारोबार ठंड़ा पड़ गया।

अठारहवीं सदी के पूर्वार्ध में ‘निज़ाम’ यह उपाधि धारण करनेवाले शासक हैदराबाद पर राज करने लगे। कुल सात निज़ामों ने हैदराबाद पर राज किया। उनके शासनकाल में ‘हैदराबाद’ उनकी राजधानी थी।

इन शासकों के शासनकाल में पुनः एक बार हैदराबाद का व्यापार उभरने लगा। निज़ामों का शासन लगभग दो शतकों तक यहाँ पर रहा।

इन शासकों के शासनकाल में हैदराबाद की पहचान भी बदल गयी, क्योंकि यहाँ पर कई नयीं वास्तुओं का निर्माण इस दौरान किया गया।

निज़ामों के शासनकाल में हैदराबाद यह एक वैभवशाली राज्य माना जाता था और हैदराबाद को राजधानी का शहर यह सम्मान भी प्राप्त हुआ था।

अँग्रेज़ों और ङ्ग्रान्सिसियों के भारत में दाखिल होने के बाद भारत के इतिहास में काफ़ी नये मोड़ तेज़ी से आने लगे। अँग्रेज़ों ने कई युक्तिप्रयुक्तियों का इस्तेमाल करके भारत पर अपना कब्ज़ा जमा ही लिया।

जब दक्षिणी भारत में फ्रान्सिसी और अँग्रेज़ोने अपने हाथ पैर फैलाना शुरू किया, तब एक महत्त्वपूर्ण घटना हुई। उस वक़्त अँग्रेज और फ्रान्सिसी फौजने डेरा डाला था हैदराबाद के पास ही, जो स्थान आगे चलकर ‘सिकंदराबाद’ इस नाम से जाना जाने लगा। यही है वह सिकंदराबाद, जिसे हैदराबाद का जुड़वा भाई माना जाता है। हालाँकि अँग्रेज़ और फ्रान्सिसी फौज ने अपना डेरा सिकंदराबाद में डाला था, लेकिन इसी दौरान अँग्रेज़ों ने हैदराबाद में भी अपने एक अधिकारी को नियुक्त कर दिया। मग़र फिर भी अँग्रेज़ हैदराबाद के प्रत्यक्ष शासक नहीं थे। निज़ाम ही हैदराबाद पर शासन कर रहा था। उस ज़माने में हैदराबाद रियासत का अपना चलन, रेलवे और डाक व्यवस्था थी। कहा जाता है यहाँ पर इन्कम टॅक्स नहीं लिया जाता था।

ऐसा भी कहते हैं कि हैदराबाद रियासत इतनी बड़ी थी कि इंग्लैंड, वेल्स और स्कॉटलंड के एकत्रित भूप्रदेश से भी इसका भूप्रदेश ज़्यादा था।

सन १९४७ में भारत को आज़ादी मिलने के बाद भी कुछ समय तक निज़ाम ही हैदराबाद के शासक बने रहे। कई छोटी बड़ी रियासतों का स्वतन्त्र भारत में विलीनीकरण हो रहा था और भारत एक स्वतंत्र देश के रूप में आकृति धारण कर रहा था।

हैदराबाद भी एक रियासत ही थी। कई घटनाओं के बाद, जिसमें कई संघर्षमय मोड़ भी थे, और आखिर हैदराबाद रियासत का भारत में विलीनीकरण हो गया। सन १९४८ के सितंबर में हैदराबाद भारत का एक हिस्सा बन गया।

कुछ वर्ष बाद आन्ध्रप्रदेश के निर्माण के बाद हैदराबाद का समावेश उसमें हो गया और हैदराबाद को आन्ध्रप्रदेश की राजधानी का दर्जा दिया गया।

इस शहर के बसने के समय में पहले स्थापित हुए एवं बसे हुए हिस्से को पुराना शहर कहा जाता है, वहीं मुसी नदी के दूसरे तट पर नया शहर बस गया। शहर के ये दोनों हिस्से एक दूसरे से कई पुलों द्वारा जुड़े हुए हैं और उनमें से ‘पुराना पुल’ यह सबसे पुराना है।

इस पुराने पुल के बारे में एक लोककथा पढने में आयी। उस वक़्त गोलक़ोंडा से इस सारे इला़के पर शासन किया जाता था। यहाँ के किसी एक राजपुत्र का दिल दुसरे तट पर के गाँव में रहनेवाली किसी युवती पर आ गया। वह उससे मिलने के लिए नदी पार करके जाता था।

एक बार मुसी नदी में भयानक बाढ आ गयी। नदी के एक तट से दूसरे तट पर जाना तो दूर की बात है, नदी के किनारे पर खड़ा रहना भी नामुमक़िन था। इस बाढ में आसपास के गाँवों में से कई मवेशी, घर और इन्सान भी बह गये, जान-माल का काफ़ी नुक़सान हुआ।

इस राजपुत्र को उस युवती की चिन्ता सताने लगी और वह नदी तक तो आ गया, लेकिन धारा की गति को देखते हुए उस पार जाना नामुमक़िन था।

राजपुत्र के साथ रहनेवालों ने उसे हालात से अवगत कराके वापस लौट चलने की दरख़्वास्त की, लेकिन राजपुत्र किसीकी बात सुनने के लिए तैयार नहीं था। उसने उस प्रलय जैसी बाढ में से तैरकर उस पार जाने की ठान ली और वह उसमें कूद पड़ा। साथ में आये हुए लोगों को राजपुत्र की फिक्र होने लगी।

मग़र उस भयानक बाढ में भी तैरकर उस पार जाकर राजपुत्र ने वह युवती महफूज है, इस बात को जाँच लिया। इस घटनाक्रम के बारे में जानकारी मिलते ही राजाने नदी के दोनों तटों को जोड़नेवाले पुल का निर्माण मुसी नदी पर कर दिया और इस तरह बन गया, यह पुराना पुल।
तो ऐसा है यह हैदराबाद और उसका जुड़वा भाई रहनेवाला सिकंदराबाद। उसके जन्म की कहानी भी हम देख ही चुके हैं।

हालाँकि सिकंदराबाद को हैदराबाद का जुड़वा भाई माना जाता है, मग़र वह पूरी तरह से अँग्रज़ों के अधिपत्य में विकसित हुआ शहर है।

सिकंदराबाद की जब स्थापना हुई, तब हैदराबाद पर शासन करनेवाले निज़ाम का नाम इस शहर को दिया गया। सिकंदराबाद बसा है, हैदराबाद की उत्तर दिशा में और वह सड़कद्वारा हैदराबाद से जुड़ा हुआ भी है।

अब सिकंदराबाद की बात चली है, तो शायद आप यह सोच रहे होंगे कि हमारा अगला पड़ाव होगा सिकंदराबाद। लेकिन नहीं, हमारा अगला पड़ाव बड़ा ही अनोखा है, उसके बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे, एक हफ़्ते के बाद।

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