नेताजी सुभाषचंद्र बोस – १२

 नेताजी सुभाषचंद्र बोस
नेताजी सुभाषचंद्र बोस

प्रेसिडेन्सी कॉलेज की ‘अनुचित घटनाओं की’ जॉंच करने के लिए कोलकाता विश्‍वविद्यालय के पूर्व कुलगुरु न्यायमूर्ति सर आशुतोष मुखर्जी की अध्यक्षता में एक जॉंच समिति का गठन किया गया था। समिति का कामकाज शुरू हुआ। उसे अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने में कुछ दिन अभी शेष थे। लेकिन तब तक प्राचार्य जेम्स से रहा नहीं जा रहा था। हाल ही में हालात के क़ाबू में आ जाने पर कॉलेज फिर से शुरू करने का निर्णय किया गया था। कॉलेज शुरू हुआ ही नहीं कि जेम्स ने सुभाष को बुलाकर, ‘यहॉं के छात्रों का लीडर होने के कारण छात्र तुम्हारे ही बहकावे में आये होंगे और तुमने ही छात्रों को भड़काया होगा’ ऐसा उसपर दोषारोपण कर उसे माफ़ी मॉंगने के लिए कहा। लेकिन पानी इस तरह सिर से ऊपर चढ़ने के लिए प्रो. ओटन ही जिम्मेदार हैं, अत एव माफ़ी दरअसल ओटन द्वारा ही मॉंगी जानी चाहिए, ऐसा कहकर सुभाष ने माफ़ी मॉंगने से साफ़ इन्कार कर दिया। पहले ही सरकार के बढ़ते दबाव के कारण हैरान हुए प्राचार्य को तो अपना ग़ुस्सा उतारने का मौक़ा ही मिल गया। साथ ही, घटनास्थल पर सुभाष मौजूद था, ऐसी गवाही कॉलेज के एक प्यून ने भी दी थी। उसके बलबूते पर उन्होंने बाक़ायदा कॉलेज की गव्हर्निंग बॉडी की मीटिंग बुलाकर उसमें सुभाष को प्रेसिडेन्सी कॉलेज से निलंबित करने का निर्णय पास करवाया। यह सुभाष के लिए एक सदमा ही था। अँग्रे़जी हुकूमत की निरंकुश उद्दण्डता अब वह क़रीब से महसूस कर रहा था।

जॉंच समिति के कामकाज के अभी ख़त्म न होने के बावजूद भी इतनी जल्दबा़जी में किये गये इस निलंबन को कइयों ने ग़ैरक़ानूनी क़रार दिया। सुभाष जिनसे क़ानूनी परामर्श लेने गया था, उन चित्तरंजन दासजी ने उसे समिति का ब्योरा आने तक कुछ कदम न उठाने की सलाह दी। जॉंच समिति के अध्यक्ष सर आशुतोष मुखर्जी सुभाष के बन्धु शरदबाबू की अच्छी पहचान के थे। इसी कारण एक मध्यस्थ के जरिये उनके मन की बात जानने की शरदबाबू ने कोशिश की। तब उन्होंने शरदबाबू को, सुभाष यदि माफ़ी मॉंग लेता है, तो बहुत सारे पेंच सुलझ सकते हैं, ऐसी सलाह दी।

जब भाभी के जरिये सुभाष को इसके बारे में बताया गया, तब ‘माफ़ी’ यह शब्द सुनते ही सुभाष का खून खौल उठा – ‘ग़लती हमारी है या ओटन की? माफ़ी दरअसल ओटन को मॉंगनी चाहिए। केवल वे अँग्रे़ज हैं, इसलिए क्या हम उनकी हर एक हॉं में हॉं मिलाते जायें?’ वह ग़ुस्से से आगबबूला होकर दनादन बोलता रहा। अपनी ग़लती न होने के बावजूद भी मैं माफ़ी क्यों मॉंगूँ, यही उसकी समझ में नहीं आ रहा था और घरवालों को सुभाष द्वारा माफ़ी मॉंगना यह बात, उसके भविष्य पर जो टँगी हुई तलवार साफ़ साफ़ दिखायी दे रही थी, उसके सामने बहुत ही मामूली लग रही थी। अँधेरे की खाई में जा गिरनेवाला सुभाष का भविष्य यदि उसके द्वारा माफ़ी के दो-चार ल़फ़़्ज कहने पर पुनः रोशन हो सकता है, तो इतनीसी मामूली बात करने के लिए सुभाष को ह़र्ज ही क्या है, ऐसी ही घरवालों की भूमिका थी। लेकिन सुभाष के लिए यह कोई मामूली बात नहीं थी। उसके लिए तो यह उसूलों का सवाल था और अन्याय के सामने इस तरह घुटने टेंकना उसके उसूलों के ख़िलाफ़ था। आगे चलकर उसने जिन्दगी में जिस तरह सिर उठाकर महाताकतवर शत्रुओं तथा विरोधकों का सामना किया, उसकी यह मानो एक छोटीसी झलक ही सबको दिख रही थी।

जॉंच समिति के सामने गवाही देने का दिन जैसे जैसे ऩजदीक आ रहा था, वैसे वैसे जानकीबाबू का दिल डर के मारे आशंकित हो रहा था। मॉं का कालीमाता के मन्दिर में आनाजाना बढ़ने लगा। सुभाष भी विमनस्क स्थिति में था। घर में एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ रहने लगा। रोजमर्रा के दैनिक व्यवहार बेजान से चल रहे थे।

गवाही का दिन आया। छात्रों की ओर से सुभाष को समिति के सामने प्रस्तुत होने के लिए कहा गया था। सुभाष जॉंच समिति के सामने जाकर खड़ा हो गया। आशुतोषबाबू को और समिति के अन्य सदस्यों को भी इतनी चर्चा में रह चुका यह सुभाष आख़िर है कौन, यह देखने की उत्सुकता तो थी ही। उस तेजस्वी सुभाष को देखते ही, ऐसे फुर्तीले नौजवान की शिक्षा कहीं उसकी किसी छोटीसी ग़लती के कारण खतरे में न पड़ जाये, यही बात आशुतोषबाबू मन ही मन सोच रहे थे। फिर उन्होंने सुभाष के माफ़ी मॉंग लेने के सन्दर्भ में शरदबाबू को जो सलाह दी थी, उस दिशा में बात को ले जाने की दृष्टि से सुभाष के साथ बातचीत करना शुरू किया – ‘छात्रों द्वारा गुरुजनों पर हाथ उठाया जाना, इससे बड़ी घिनौनी बात और कोई हो ही नहीं सकती। क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि एक शिक्षासंस्था में इस तरह की घटना घटित हो यह ग़लत बात है?….’

उसपर सुभाष ने, यह बात ग़लत ही है और मैं इस बात का समर्थन हरगी़ज नहीं कर रहा हूँ, यह साफ़ साफ़ कह दिया। लेकिन पानी इतना सिर से ऊपर जाने की नौबत ओटन के कारण ही आयी है, ऐसा स्पष्ट रूप से कहकर उसने कॉलेज में भारतीय छात्रों को कदम कदम पर किस तरह अपमानित किया जाता था, उसका ब्योरा ही पेश किया। छात्रों को यह कदम उठाने पर मजबूर करनेवाली एक या दो नहीं, बल्कि कई घटनाओं को उदाहरण के तौर उसने समिति के समक्ष प्रस्तुत किया….लेकिन माफ़ी मॉंगने से साफ़ इनकार कर दिया।

इस घटना की गूँज चारों तरफ़ फ़ैली थी। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टागोरजी ने भी, छात्र अध्यापक पर हाथ उठाये इससे घिनौनी बात और कोई हो ही नहीं सकती ऐसा कहा; लेकिन साथ ही यदि कोई अध्यापक हमारी मातृभूमि के विषय में बुरा-भला कहकर उसे अपमानित करे और छात्र के श्रद्धास्थान पर कीचड़ उछालने की कोशिश करे, तो ऐसे अध्यापक के लिए इस तरह की स़जा ही उचित है, ऐसा भी उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था। कइयों ने सुभाष को, महाताकतवर अँग्रे़ज सरकार से बैर मोल लेना यानि बेमतलब पत्थर से सिर टकरानेवाली बात है, ऐसा कहा। सुभाष को अंजाम की परवाह नहीं थी, लेकिन उसके ‘विवेकानंदप्रेमी’ मित्रों में से भी कइयो द्वारा उसे इसी तरह की सलाह दिये जाने पर उसके दिल को गहरी ठेंस पहुँची। जबान से लोगों को स्वामीजी के निर्भय बनने के संदेश सुनाते रहना और फिर जब प्रत्यक्ष कृति का वक़्त आता है, तो दुम दबाकर पीछे हटना, यह बात सुभाष के उसूलों के खिलाफ़ थी।

दूसरी तरफ़ घर के लोगों का जी टँगा रहा और वे बेसब्री से जॉंच समिति के फ़ैसले का इन्त़जार कर रहे थे।

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