अमेरिका की मांग अनुसार ईंधन का उत्पादन बढाने से खाडी देशों ने किया इन्कार

दुबई – सन २०१४ में अरब मित्रराष्ट्रों के आघाडी ने येमन के हौथी विद्रोहियों के खिलाफ लश्करी संघर्ष शुरु किया था। तब अमेरिका ने कहा था कि, यह हमारा युद्ध नहीं है, और इस संघर्ष से दूर रही थी। तो अब पिछले कुछ दिनों से रशिया-युक्रैन के बीच संघर्ष जारी है इसलिए युरोप में ईंधन की कीमतें नित्य नए रेकॉर्ड कर रहे हैं। ऐसे में अरब राष्ट्रों ईंधन का उत्पादन बढाकर युरोपिय राष्ट्रों को दिलासा दें, यह मांग अमेरिका ने की है। मगर, ’यह हमारा युद्ध नहीं है’, ऐसा कहकर अरब राष्ट्रों ने अमेरिका की मांग ठुकराई है, ऐसा दावा खाडी के विश्लेषक कर रहे हैं।

ईंधन का उत्पादनपिछले ११ दिनों से जारी रशिया-युक्रैन संघर्ष की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में ईंधन की कीमतें १३० डॉलर्स प्रति बैरल तक पहुंची हैं। इसका सर्वाधिक झटका युरोपिय राष्ट्रों को लग रहा है और ’ओपेक’ सदस्य राष्ट्र ईंधन का उत्पादन बढाकर कीमतों को नियंत्रित करें, ऐसा आवाहन अमेरिका एवं युरोपिय राष्ट्र कर रहे हैं। पिछले सप्ताह में बुधवार को पाश्चिमात्य राष्ट्रों ने ओपेक तथा सहकारी राष्ट्रों के समक्ष अपनी यह मांग रखी थी।

मगर ओपेक पर नियंत्रण रखनेवाली सौदी अरेबिया तथा युएई ने पश्चिमी राष्ट्रों की यह मांग ठुकराई। ’मौजूदा अस्थिरता बाजार के मूलभूत परिस्थिति के कारण नहीं है बल्कि, वर्तमान की भूराजकीय उथलपुथल के कारण यह अस्थिरता निर्माण हुई है’, इन शब्दों में ओपेक संघटना में अरब राष्ट्रों ने पश्चिमी राष्ट्रों की मांग को नाकारा है। किसी समय अमेरिका की कहेनुसार कार्य करनेवाले अरब मित्रराष्ट्रों की भूमिका में हुए बदलाव की ओर विश्वभर के विश्लेषकों का ध्यान आकर्षित किया है।

ईंधन का उत्पादन’खाडी राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए, राजनीत्तिक स्वायत्तता पाने की अपनी क्षमता परख रहे हैं’ ऐसा दावा अमेरिका स्थित ’इंटरनैशनल इन्स्टिट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज़-आयआयएसएस’ के विश्लेषक हसन अलहसन ने किया है। पिछले कई दशकों तक अरब राष्ट्रों की नीति पश्चिमी राष्ट्रों पर आधारित थी। मगर पहली बार अरब राष्ट्र स्वायत्त नीति अपनाने की कोशिश में होने की बात हसन ने कही।

अमेरिका और पश्चिमी मित्रराष्ट्रों द्वारा रशिया पर प्रतिबंध लगाए जाने की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में ईंधनवायु की कीमतों में बढोतरी हुई है। क्योंकि, सौदी अरेबिया के बाद रशिया ईंधनगैस का दूसरे क्रमांक का निर्यातकर्ता राष्ट्र है, इस बात पर अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।

तो, अपनी मांग ठुकरानेवाले अरब राष्टों के खिलाफ बायडेन प्रशासन ने अधिक कठोर भूमिका नहीं अपनाई है, पर आनेवाले दौर में बायडेन प्रशासन अरब राष्ट्रों पर अधिक दबाव डाल सकती है, ऐसा दावा हसन ने किया है। इस बात का अरब राष्ट्र कैसे सामना करेंगे यह बात अत्यंत महत्वपूर्ण होगी, ऐसा हसन अलहसन ने कहा है।

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