अक्तुबर महीने में १.३० लाख करोड़ का ‘जीएसटी’ राजस्व – ८० प्रतिशत अर्थव्यवस्था ‘फॉर्मल’ होने का ‘एसबीआय’ की रपट का दावा

नई दिल्ली/मुंबई – अक्तुबर में सरकार को ‘जीएसटी’ से १.३० लाख करोड़ रुपयों का राजस्व प्राप्त हुआ है। यह अब तक किसी एक महीने में प्राप्त हुआ दूसरा बड़ा राजस्व है। इससे पहले इसी वर्ष अप्रैल में सरकार को १.४१ लाख करोड़ रुपयों का रिकार्ड राजस्व प्राप्त हुआ था। लेकिन, कोरोना की दूसरी लहर की वजह से आर्थिक कारोबार पर असर पड़ने के बाद में राजस्व में बड़ी गिरावट देखी गई थी। ऐसे में जून में ‘जीएसटी’ का राजस्व १ लाख करोड़ से कम था। अक्तुबर में ‘जीएसटी’ के प्राप्त राजस्व के आँकड़े सामने आ रहे थे तभी स्टेट बैंक की एक रपट भी जारी हुई है। इसके अनुसार डिजिटलाइज़ेशन की प्रक्रिया और महामारी के संकट की वजह से देश की ८० प्रतिशत अर्थव्यवस्था ‘फॉर्मल’ यानी औपचारिक हुई है। तो ‘इनफॉर्मल’ क्षेत्र की मात्रा १५ से २० प्रतिशत तक सीमित रही है। इसी कारण यह रपट ध्यान आकर्षित करती है।

October-GSTअक्तुबर में ‘जीएसटी’ का राजस्व २०२० के अक्तुबर की तुलना में २४ प्रतिशत अधिक है। इसके अलावा इस वर्ष के सितंबर की तुलना में इसमें ११ प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। सितंबर में सरकार को ‘जीएसटी’ से १.१७ लाख करोड़ रुपयों का राजस्व प्राप्त हुआ था। इसकी तुलना में अक्तुबर का राजस्व लगभग १३ लाख करोड़ रुपयों के इज़ाफे के साथ १ लाख ३० हज़ार १२७ करोड़ रुपये हुआ। इसमें ‘सीजीएसटी’ यानी केंद्रीय ‘जीएसटी’ का हिस्सा २३ हज़ार ८६१ करोड़ रुपयों का है और राज्यों के ‘जीएसटी’ (एसजीएसटी) का हिस्सा ३० हज़ार ४२१ करोड़ रुपये है। इसके अलावा ‘इंटिग्रेटेड गुडस्‌ ऐण्ड सर्विसस टैक्स’ (आयजीएसटी) का हिस्सा ६७ हज़ार ३६१ करोड़ रुपये है और इनमें से ३२ हज़ार ९९८ करोड़ रुपये सरकार को आयात सामान के माध्यम से प्राप्त हुए हैं। साथ ही ८ हज़ार ४८४ करोड़ रुपये केंद्र सरकार को उप-कर के माध्यम से प्राप्त हुए हैं।

‘जीएसटी’ के राजस्व में यह बढ़ोतरी कोरोना की दूसरी लहर के बाद आर्थिक कारोबार सामान्य होने की द्योतक है। इसके अलावा ‘ई-वे बिल’ की मात्रा बढ़ने की बात भी इससे स्पष्ट होती है। फिलहाल वाहन क्षेत्र के साथ अन्य कुछ क्षेत्रों को वैश्विक बाज़ार में सेमिकंडक्टर की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। सेमिकंडक्टर का इस्तेमाल करनेवाले क्षेत्रों पर इसका बुरा असर पड़ा है। सेमिकंडक्टर की किल्लत ने इन क्षेत्रों को नुकसान पहुँचाया नहीं होता तो ‘जीएसटी’ का राजस्व अधिक प्राप्त हुआ होता, यह दावा भी किया गया है।

इसी बीच देश की अर्थव्यवस्था अधिकाधिक ‘फॉर्मल’ हो रही है। ‘इनफॉर्मल’ अर्थव्यवस्था का आकार छोटा होता जा रहा है। इनफॉर्मल अर्थव्यवस्था यानी आर्थिक कारोबार अलग-अलग उपक्रम, नौकरी, रोज़गार जिसके कारोबार की जानकारी कहीं भी दर्ज़ नहीं होती। इस क्षेत्र को सरकार की किसी भी तरह की सुरक्षा नहीं मिलती। असंगठित क्षेत्र में होने वाले अधिकांश कारोबार इनफॉर्मल अर्थव्यवस्था में शामिल होते हैं। ‘एसबीआय’ की रपट के अनुसार वर्ष २०२७-२८ में ५२.४ प्रतिशत रहा इनफॉर्मल अर्थव्यवस्था का आकार अब १५ से २० प्रतिशत तक सीमित है। इसका प्रमुख कारण डिजिटाइज़ेशन में हुई बढ़ोतरी है। गिग अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ रहा है, ऐसा एसबीआय के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्या कांती घोष ने कहा है।

कर्मचारियों को स्थायी नौकरी प्रदान किए बिना समझौते के ज़रिये अल्प समय के लिए काम देने की रोजगार व्यवस्था को ‘गिग’ अर्थव्यवस्था कहा जाता है। वर्ष २०१६ के मॉनिटाइज़ेशन के बाद तेज़ी से डिजिटाइज़ेशन हुआ। इसके अलावा कोरोना की महामारी की वजह से गिग अर्थव्यवस्था बढ़ने से फॉर्मल अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ने का दावा एसबीआय ने किया है।

उत्पादन क्षेत्र की गतिविधियों में बढ़ोतरी

अक्तुबर में देश के उत्पादन क्षेत्र की गतिविधियों में बड़ी बढ़ोतरी हुई है। साथ ही कंपनियों ने कच्चे सामान की खरीद भी बढ़ाई है। माँग में अगले कुछ महीनों में बढ़ोतरी हो सकती है, यह उम्मीद उत्पादन क्षेत्र को होने की बात सोमवार के दिन जारी ‘पीएमआय’ निदेशांक से संबंधित रपट में रेखांकित की गई है।

‘मैन्युफैक्चरिंग पर्चेस मैनेजर्स इंडेक्स’ (पीएमआय) बढ़कर ५५.९ प्रतिशत तक जा पहुँचा है। सितंबर में यही निदेशांक ५३.७ प्रतिशत था। इससे उत्पादन क्षेत्र में भारी बढ़ोतरी होने की बात स्पष्ट हो रही है। ५० प्रतिशत से अधिक रहा ‘पीएमआय’ निदेशांक उत्पादन क्षेत्र में सकारात्मक बढ़ोतरी दर्शाता है। तो ५० प्रतिशत से कम ‘पीएमआय’ द्योतक उत्पादन क्षेत्र का आकार कम होने का द्योतक है।

कंपनियों से हो रही कच्चे सामान की खरीद को ध्यान में रखकर ‘पीएमआय’ तय किया जाता है। अक्तुबर में ‘पीएमआय’ निदेशांक की स्थिति को देखें तो आगे उत्पादन क्षेत्र में अधिक बढ़ोतरी होने की संभावना जताई जा रही है। इस क्षेत्र की बढ़ोतरी जारी रहेगी, यह अनुमान व्यक्त किया जा रहा है। कंपनियों की कच्चे सामान की खरीद से यह स्पष्ट होता है, ऐसा ‘आयएचएस मर्कीट’ कंपनी के आर्थिक सहायक संचालक पॉलयाना डी लिमा ने कहा है।

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