डॉ.लॉरेन्स काटूझ

अधिकतर लोग अपनी नैतिक, शारीरिक एवं बौद्धिक क्षमता की मर्यादा में ही रहना पसंद करते हैं। हममें से हर किसी में महासागर के समान क्षमता है, परन्तु उसे हमने सपने में भी नहीं देखा होता है। इस क्षमता को उत्तेजन देनेवाले का जीवन ज़रूर उच्च दिशा में मार्गक्रमण करता रहता है। जिन्हें अपनी बुद्धि, स्मृति बढ़ानी है, मस्तिष्क को चुस्त रखना है, विस्मृति जैसी बीमारी को टालना है तो ऐसे लोगों को अपने मस्तिष्क को विशिष्ट कृति, व्यायाम से सक्षम बनाये रखना चाहिए। मस्तिष्क को व्यायाम करवाने वाली कृति को ‘न्युरोबिक्स’ कहते हैं।

न्युरोबिक्स शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम डॉ. लॉरेन्स काटूझ ने किया। डॉ. लॉरेन्स न्युरोबायोलॉजी विषय के प्राध्यापक थे। ड्यूक महाविद्यालय में वे प्राध्यापक के पद पर कार्यरत थे। ड्यूक महाविद्यालय एवं वैद्यकीय संस्था में वे मस्तिष्क पर संशोधन करने वाले न्युरोसायंटिस्ट थे। मानवी मस्तिष्क में होने वाली पेशीयों की वृद्धि यह उनके संशोधन का विषय था और इस संशोधन द्वारा ही न्युरोबिक्स संकल्पना का जन्म हुआ और वहीं से उसका विकास हुआ।

मानव का मस्तिष्क यह एक अद्भुत अवयव है। शरीर के सर्वोच्च स्थान पर वह रहता है, फिर भी शरीर की हर एक कोशिका (सेल) के साथ उसका संबंध रहता है। मस्तिष्क स्वयं कुछ न कुछ सीखने के लिए उत्सुक रहता है। बिलकुल किसी कार्यक्षेत्र के व्यवस्थापक के समान वह अपने नित्य-कार्य दूसरों को सौंपकर स्वयं मुक्त रहता है। परन्तु इस कार्यक्षम एवं कुशल व्यवस्थापक को कुछ नया करने के लिए न मिलने पर वह आलसी होने लगता है। हमारे मस्तिष्क के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है। रोजमर्रा के जीवन की असंख्य कृतियाँ यांत्रिक बनने लगती हैं। हम अपने सभी क्रियाकलाप अपनी आदत के अनुसार करते रहते हैं। (Use it or Iose it) उपयोग करो अथवा छोड़ दो इस निसर्गतत्त्वानुसार मस्तिष्क को सदाबहार बनाये रखना है तो यांत्रिक क्रियाकलाप कम करके न्युरोबिक्स करना चाहिए। न्युरोबिक्स अर्थात मस्तिष्क की कोशिकाओं को काम में लगाये रखनेवाले शारीरिक क्रियाकलाप। ये क्रियाकलाप हम रोजमर्रा के जीवन में सहज कर सकते हैं।

काफी लोगों का स्वयं का अनुभव होगा कि चष्मा/गॉगल सिर पर होता है, आँखों पर नहीं और उसे ढूँढा कहीं और ही जाता है। खरीदारी करके आने के बाद पार्क किया गया अपना वाहन/गाड़ी ढूँढ़ने में तकलीफ होती है। ऐसे में कोई न कोई कह देता है कि शायद यह उम्र का तकाज़ा है!

डॉ. लॉरेन्स काटूझ ने इस प्रकार की अनेकों छोटी-बड़ी बातों से यह अंदाजा लगाया कि उम्र के साथ-साथ रहन-सहन के कारण, जीवनशैली के कारण मस्तिष्क पर परिणाम होते रहता है। मस्तिष्क से नव-नवीन क्रियाकलाप, व्यायाम आदि करवाने से उसकी कोशिकाएं अधिक कार्यक्षम होती रहती हैं तथा बढ़ती उम्र के अनुसार वृद्ध होते रहने वाले शरीर को वे अधिक कार्यक्षम बनाये रखती हैं।

न्युरोबिक्स अर्थात विशेषतौर पर करना क्या है? डॉ. लॉरेन्स का कहना है कि हमारे नित्यप्रति की कृति में कुछ बदलाव लाना चाहिए। जैसे सुबह उठते ही दाँत साफ करने की कृति यह आदत के अनुसार होती है, इसके बजाय यह काम मस्तिष्क को करने देना चाहिए अर्थात नियम के विरुद्ध उलटे हाथ से ब्रश करना चाहिए। इससे होगा यह कि मस्तिष्क की कोशिकाओं को काम करना पड़ता है, उनका व्यायाम हो जाता है। कम उपयोग में आने वाले हाथ को अधिकाधिक काम देना यह मस्तिष्क के लिए एक नया अभ्यास होता है। भोजन करना, दरवाज़ा खोलने आदि के समय हाथ के आदत के बजाय दूसरे हाथ से काम लेना।

आँखें बंद करके किसी विशेष पदार्थ की खूशबू से, उसे पहचानने की कोशीश करो, उसके स्वाद को पहचानो। सुबह की चाय, कॉफी की निश्चित खूशबू के बजाय कभी वेनिला की खूशबू लेने की आदत डालो, कभी आँखें बंद करके अथवा अंधेरे में चलो, आँखें बंद करके स्नान आदि करो, घर के घर में चक्कर लगाते समय कभी पीठ की ओर बगैर देखे उलटे चलो, चलते समय व्यक्ति के कदमों की आहट से उसे पहचानने की कोशीश करो, अंधेरे में ताला खोलो, भोजन के समय नित्यप्रति की जगह बदलकर देखो, डस्टबिन की जगह बदल कर देखो, स्पर्श से अनाज पहचानने की कोशीश करो, नोट, सिक्के आदि को पहचानो, मुख से न बोलकर इशारों में बातें करने की कोशीश करो, अंधेरे में भोजन करने की आदत डालो, आँखें ये प्रभावी ज्ञानेन्द्रिय हैं। उसके प्रभाव के कारण अन्य ज्ञानेन्द्रियों को कम काम करना पड़ता है। अंध व्यक्तियों के स्पर्श से संबंधित कोशिकाओं का उपयोग अधिक होता है। हम भी मस्तिष्क के गंध, ध्वनि, स्पर्श आदि से संबंधित काम कोशिकाओं को देने के कारण मस्तिष्क की कोशिकाओं में नये कनेक्शन जुड़ते रहेंगे। मस्तिष्क को भी नव-नवीन कार्यों के कारण नयी संजीवनी मिलती रहेगी। नित-नये लोगों से पहचान करवाना, अकसर गुजरने वाले रास्ते की बजाय अन्य किसी नये रास्ते से चलकर अथवा गाड़ी से जाना, किसी दूसरे नये होटल में जाकर कुछ नया पदार्थ खाना चाहिए। अपने घर की चार दीवारी से बाहर निकलना चाहिए, साथ ही जीवन को यांत्रिक जंजीरो से जो हमने बाँध रखा है, उसे तोड़ देना चाहिए।

हम जब कोई भी भिन्न प्रकार का अनुभव लेते हैं तो हमारा मस्तिष्क और भी अधिक उत्साह के साथ काम करने लगता है। वह सक्रिय रहता है, साथ ही उसकी शक्ति भी कायम बनी रहती है। दोनों हाथों से लिखने की पद्धति का अवलंबन महात्मा गाँधीजी ने भी किया था, ऐसा कहा जाता है। डॉ. लॉरेन्स काटूझ इनके अन्य दो सहलेखकों सहित ‘किप योर ब्रेन अलाइव : ७३ न्युरोबिक अक्सेसाईजेस’ `keep your Brain Alive: ८३, Neurobic exercises’ यह एक महत्त्वपूर्ण एवं जगत प्रसिद्ध पुस्तक मानी जाती है। डॉ.लॉरेन्स संशोधन के माध्यम से यही कहना चाहते हैं कि ‘अपने कम्फर्ट झोन को छोड़कर थोड़ी देर के लिए ही सही करेज झोन में आओ’।

 ‘Take some pain and get some gain’  यह सूत्र यहाँ पर सच साबित होता है।

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