चीन का जासूसी करनेवाला जहाज़ श्रीलंका के बंदरगाह में दाखिल – उससे पहले श्रीलंका को ‘डॉर्निअर’ प्रदान करके भारत का चीन को संदेश

कोलंबो – चिनी नौसेना का जासूसी जहाज़ ‘युआन वैंग ५’ मंगलवार को श्रीलंका के हंबंटोटा बंदरगाह में दाखिल हुआ। भारत ने आपत्ति जताने के बावजूद इस जहाज़ को हंबंटोटा बंदरगार में पहुँचाने मे चीन को कामयाबी हासिल हुई है। लेकिन, चीन हंबंटोटा बंदरगाह का फौजी कारणों के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता, ऐसी चेतावनी श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने दी है। साथ ही, श्रीलंका ने चीन के इस जहाज़ को अनुमति देते हुए सख्त शर्तें लगाकर, इसे हंबंटोटा बंदरगाह का गलत लाभ उठाना मुमकिन नहीं हो सकेगा, इसका भी ध्यान रखा हुआ दिखता है।

श्रीलंका के हंबंटोटा बंदरगाह में प्रवेश करनेवाले इस जहाज़ से तीसरें देश की सुरक्षा को बिल्कुल ही खतरा नहीं। साल २०१४ में भी हमारें ऐसे ही जहाज़ ने हंबंटोटा बंदरगाह में प्रवेश किया था, ऐसा दावा चीन के राजदूत ने किया। यह जहाज़ सिर्फ वैज्ञानिक कारणों के लिए ही यहां पहुँचा है, ऐसा चीन के राजदूत ने स्पष्ट किया। २२ अगस्त तक यह जहाज़ हंबंटोटा बंदरगाह में रुकेगा। इस जहाज़ की यात्रा के दौरान श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने जापानी अखबार को दिए साक्षात्कार में चीन को स्पष्ट चेतावनी दी। हंबंटोटा बंदरगाह का इस्तेमाल चीन सैनिकी कारणों के लिए नहीं कर सकता, ऐसी चेतावनी राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने दी है।

इसी बीच, चीन अपना यह जहाज़ केवल अनुसंधान के लिए हिंद महासागर क्षेत्र में पहुँचा होने के कितने भी दावे करें, फिर भी भारत और अमरीका भी इसपर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं। भारत ने चीन के जहाज़ की हंबंटोटा यात्रा को काफी गंभीरता से लिया हुआ दिख रहा है। इससे संबंधित गतिविधियों पर भारत नज़र बनाएँ है, ऐसा विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था। ऐसें में भारत के बंदरगाह विकास और नौकानयन मंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने चिनी जहाज़ की इस यात्रा से पहले, भारत किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार होने का बयान किया था।

‘युआन वैंग ५’ को अपने बंदरगाह में प्रवेश देने से पहले श्रीलंका ने कुछ शर्ते रखने की बात सामने आयी थी। इसके अनुसार यह जहाज़ कहाँ पर है, इसकी जानकारी साझा करनेवाली यंत्रणा लगातार शुरू रखने की सूचना का भी समावेश है। साथ ही, श्रीलंका की समुद्री सीमा में यह जहाज़ किसी भी तरह का अनुसंधान कार्य नहीं करेगा, यह चेतावनी भी श्रीलंका ने इस जहाज़ को प्रवेश देने से पहले ही दी थी। इसके ज़रिये श्रीलंका यह दिखा रहा है कि भारत ने जताई रक्षा संबंधित आपत्तियों पर हम विचार कर रहे हैं। साथ ही, चीन का यह जहाज़ हंबंटोटा बंदरगाह में दाखिल होने से पहले, भारत ने श्रीलंका को समुद्री गश्त के लिए उपयुक्त ‘डॉर्निअर’ विमान प्रदान किया है। इसका औपचारिक समारोह सोमवार को हुआ। इस दौरान श्रीलंका के राष्ट्राध्यक्ष विक्रमसिंघे उपस्थित थे। भारत हिंद महासागर क्षेत्र में ‘नेट सिक्युरिटी’ यानी पूरी सुरक्षा प्रदान करनेवाला देश है, यही भारत ने श्रीलंका को डॉर्निअर विमान प्रदान करके फिर से दिखाया। उसीके साथ, भारत और श्रीलंका का रक्षा सहयोग मज़बूत है और यह समान हितसंबंधों पर आधारित है, यह संकेत भी भारत ने इसके ज़रिये चीन को दिया है। श्रीलंका में महिंदा राजपक्षे के शासनकाल के दौरान चीन ने इस देश का भारत के विरोध में इस्तेमाल करने की कोशिश की थी। श्रीलंका को कर्ज़ के जाल में फंसाकर चीन ने श्रीलंका के हंबंटोटा बंदरगाह पर ९९ वर्ष के लिए कब्ज़ा किया। इसके पीछे चीन की भारत विरोधी रणनीति थी। लेकिन, हंबंटोटा बंदरगाह चीन के हवाले करते समय भी श्रीलंका ने इसका फौजी काम के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा, यह शर्त चीन के सामने रखी थी। इसके पीछे भारत का दबाव होने के दावे किए जा रहे हैं।

अब भी श्रीलंका के राष्ट्रपति ने चीन को, हंबंटोटा बंदरगाह का इस्तेमाल सैनिकी कारणों के लिए नहीं होगा, इसका अहसास कराया है। इस वजह से हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के नैसर्गिक प्रभाव को चुनौती देने की चीन की एक और चाल नाकाम की गई, ऐसें संकेत प्राप्त हो रहे हैं।

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