सूड़ान संघर्ष के कारण चीन की ‘अफ्रीका पॉलिसी’ मुश्किलों में फंसने के आसार

बीजिंग/खार्तूम – अफ्रीकी महाद्वीप के देशों को सबसे अधिक ऋण प्रदान करने वाले देश के तौर पर चीन पिछले दशक से आगे आया था। ईंधन के साथ अन्य नैसर्गिक संसाधनों की बढ़ती मांग और वैश्विक महशक्ति होने की महत्वाकांक्षा के उद्देश्य से ही चीन ने यह ऋण सहोयता करने की नीति अपनाई थी, ऐसा कहा जा रहा है। पिछले दशक तक चीन की यह नीति सफल होने का चित्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिखाई दिया था। लेकिन, पिछले कुछ सालों में यह चित्र बदलना शुरू हुआ और चीन की ‘अफ्रीका स्ट्रैटेजी’ पर सवाल खड़े होने लगे हैं। पिछले कुछ हफ्तों से हो रही हिंसा जल्द शांत होने के आसार नहीं हैं। उल्टा सूड़ान में छिड़ा हुआ गृहयुद्ध अधिक तीव्र होगा, ऐसी चेतावनियां दी जा रही है। यही बात चीन की हुकूमत के लिए चिंता का मुद्दा बनी है। चीन ने सूड़ान को प्रदान किया कर्ज पांच अरब डॉलर्स से भी ज्यादा है। इसमें ईंधन के ‘प्रिपेमेंट फैसिलिटीज्‌‍’ का समावेश नहीं है। इसपर गौर करे तो कर्ज का आंकड़ा कुछ अरब डॉलर्स अधिक बढ़ सकता है। 

‘अफ्रीका पॉलिसी’‘एडडाटा’ नामक अमरिकी अभ्यास गुट के दावे के अनुसार वर्ष २०२० तक चीनी कंपनियां और संस्थाओं ने सूड़ान को १५ अरब डॉलर्स से अधिक आर्थिक सहायता मुहैया की है। मौजूदा समय में चीन की १३० से भी अधिक कंपनियों ने सूड़ान में निवेश किया हैं और हज़ारों चीनी नागरिक सूड़ान में काम कर रहे हैं। चीन ने यहा ईंधन, कृषि, बुनियादी सुविधा, स्वास्थ, खनिज क्षेत्र में निवेश किया है। सूड़ान में फिलहाल शुरू संघर्ष के कारण यह पूरा निवेश मुश्किलों में हैं।  

‘अफ्रीका पॉलिसी’कुछ समय पहले चीन ने ‘हॉर्न ऑफ अफ्रीका’ के लिए विशेष दूत नियुक्त किया था। अफ्रीका में राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने की मंशा से यह किया गया था। इसके बावजूद सूड़ान संघर्ष में हस्तक्षेप करने से या इसमें मध्यस्थता करने से चीन दूर रहा है। सूड़ान में संघर्ष कर रहे गुटों को लेकर पुख्ता अनुमान ना होने की वजह भी इसके पीछे होने का दावा पश्चिमी विश्लेषकों ने किया है। सूड़ान संघर्ष ने चीन के निवेश आर ऋण सहायता को मुश्किलों में धकेला है फिर यह ऐसी यह पहली घटना नहीं हैं।

पिछले साल कोरोना की महामारी, रशिया-यूक्रेन युद्ध के कारण बनी अन्न की किल्लत और वैश्विक अर्थव्यवस्था की मंदी जैसी स्थिति के कारण झांबिया ने चीन के कर्जेका भुगतान करना मुमकिन ना होने का ऐलान पहले ही किया है। ऐसे में अंगोला, इथियोपिया और केनिया जैसे देश इसी राह पर होने की बात कही जा रही है। अंगोला ने ४२ अरब और इथियोपिया ने लगभग १४ अरब डॉलर्स ऋण प्राप्त किया है। अफ्रीकी देशों के कुल कर्जे में चीन का हिस्सा १२ प्रतिशत से भी अधिक है।

चीन इस कर्जे की रचना फिर से करे या कुछ कर्जा मांफ करे, ऐसी मांग अफ्रीकी देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने आगे बढ़ाई है। लेकिन, चीन ने इसपर खास रिस्पान्स नहीं किया है। इस वजह से अफ्रीकी देशों में चीन को लोकर नाराज़गी बढ़ रही हैं। कुछ महीने पहले चीन के विदेश मंत्री ने अफ्रीकी देशों का दौरा करके यह नाराज़गी कम करने की कोशिश की थी। लेकिन, इसे ज्यादा सफलता नहीं मिली। कर्ज के भार के साथ ही चीन ने अफ्रीका में शुरू किए विभिन्न प्रकल्पों में मुश्किलें बाधाएं बन रही हैं और कई प्रकल्प आधे अधूरे छूट गए हैं। इसको लेकर भी अफ्रीकी देशों में असंतोष फैल रहा है। 

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