समय की करवट (भाग ८०) – व्हिएतनाम युद्ध तो ख़त्म हुआ, लेकिन….

समय की करवट (भाग ८०) – व्हिएतनाम युद्ध तो ख़त्म हुआ, लेकिन….

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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नेताजी-१८८

नेताजी-१८८

आदिमाता चण्डिका का स्मरण करते हुए सुभाषबाबू ने अबिद के साथ कील बंदर पर स्थित पनडुबी में कदम रखा। वेर्नर म्युसेनबर्ग इस, पनडुबी के ज़िन्दादिल कॅप्टन ने उनका स्वागत किया। बाहर से चमकीली लम्बी सी मछली की तरह दिखायी दे रही पनडुबी में प्रवेश करते ही जो नज़ारा दिखायी दिया, उससे अबिद के उत्साह पर […]

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परमहंस-१३१

परमहंस-१३१

कोलकाता के श्यामापुकुर स्ट्रीट स्थित मक़ान में रामकृष्णजी निवास के लिए आये थे। नीचली मंज़िल पर एक बड़ा दीवानखाना और एक मध्यम आकार का कमरा और ऊपरि मंज़िल पर दो एकदम छोटे कमरें, ऐसा इस जगह का स्वरूप था। नीचली मंज़िल पर के उस मध्यम आकार के कमरे को रामकृष्णजी निवासस्थान के रूप में इस्तेमाल […]

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क्रान्तिगाथा-८१

क्रान्तिगाथा-८१

दिसंबर १९२५ की सुबह लाहोर से चलनेवाली एक ट्रेन में एक पुरुष एक स्त्री और एक छोटा बच्चा इस तरह एक परिवार चढ़ गया और उनका नौकर भी तीसरी क्षेणी के रेल डिब्बे में चढ़ गया। कुछ विशिष्ट स्टेशनों में गाड़ी बदली करते हुए यह परिवार हावड़ा पहुँच गया। लेकिन उनका नौकर पहले ही, बनारस […]

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नेताजी-१८७

नेताजी-१८७

एमिली से भावपूर्ण विदा लेकर दिल पर पत्थर रखते हुए सुभाषबाबू ने घर के बाहर कदम रखा। बर्लिन से सुभाषबाबू को लेकर कील बंदरगाह की ओर जानेवाली रेलगाड़ी एक रात पहले ही कील पहुँच चुकी थी। उनके साथ केपलर, वेर्थ ये जर्मन दोस्त तथा नंबियारजी भी थे। अबिद को अलग से ही ठेंठ कील बंदरगाह […]

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परमहंस-१३०

परमहंस-१३०

रामकृष्णजी के उस स्त्रीभक्त द्वारा दिये गए आमंत्रण के अनुसार, उनके कुछ शिष्यगण उसके पास जब भोजन के लिए गये थे, तब ‘वह’ सँदेसा आया था – ‘रामकृष्णजी के गले से से रक्तस्राव शुरू हुआ होने के कारण वे वहाँ नहीं आ सकते।’ उपस्थितों के दिल की मानो धडकन ही रुक गयी और भोजन को […]

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समय की करवट (भाग ७९) – व्हिएतनाम : ‘गल्फ़ ऑफ़ टॉनकिन’

समय की करवट (भाग ७९) – व्हिएतनाम : ‘गल्फ़ ऑफ़ टॉनकिन’

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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नेताजी-१८६

नेताजी-१८६

८ फरवरी १९४३ यह सुभाषबाबू का पूर्व की ओर प्रस्थान करने का दिन जैसे जैसे क़रीब आने लगा, वैसे वैसे उनकी तैयारियाँ भी ज़ोर-शोर से शुरू हो गयीं। इसी दौरान २३ जनवरी को उनका जन्मदिन उनके दोस्तों ने उन्हीं के बंगले में सादगी से मनाया। पिछला जन्मदिन उन्होंने अ़ङ्गगानिस्तान में खच्चर और ट्रक की सवारी […]

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परमहंस-१२९

परमहंस-१२९

पानिहाटी से आये हुए अब एक महीना बीत चुका था, लेकिन रामकृष्णजी के गले की बीमारी कम होने का नाम ही नहीं ले रही ती; उलटी दिनबदिन उनकी परेशानी बढ़ती ही चली जा रही थी। अब तो उन्हें खाना निगलने में भी दिक्कत होने लगी। उनपर ईलाज करनेवाले डॉक्टरों ने – ‘क्लर्जीमन्स सोअर थ्रोट’ ऐसा […]

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क्रान्तिगाथा-८०

क्रान्तिगाथा-८०

उस ज़माने में देश में इस कदर देशभक्ति से भारित वातावरण था कि १२-१३ वर्ष की आयु के बच्चे भी ठेंठ क्रान्तिकारी संगठन में शामिल हो रहे थे। १३ वर्ष के उम्र का एक स्कूली बच्चा बनारस के एक विभाग में अँग्रेज़विरोधी पत्रक बाँट रहा था। पत्रक का विषय था – बनारस के राजा के […]

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