परमहंस-१६

परमहंस-१६

ज़मीनदार लाहाबाबू के घर चल रही, वहाँ पर एकत्रित हुए पुरोहितवर्ग की शास्त्रार्थविषयक चर्चा एक मसले पर आकर रुक गयी थी और विवाद करनेवाले किसी के भी पास नया मुद्दा न होने के कारण बन्द पड़ गयी; तभी गदाई ने बीच में ही उठकर – ‘क्या मैं कुछ बोल सकता हूँ?’ ऐसा उस पुरोहितवर्ग से […]

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परमहंस-१५

परमहंस-१५

लाहाबाबू की बेटी प्रसन्नमयी हालाँकि छोटे गदाई से ‘गदाई, क्या तुम ईश्वर हो?’ ऐसा ठेंठ प्रश्‍न पूछती थी, मग़र फिर भी यह प्रश्‍न गदाधर को हैरान कर देता था और वह कुछ न कुछ बातें बनाकर प्रश्‍न को टाल देता था। लेकिन प्रसन्नमयी का छोटा भाई गयाविष्णु के साथ उसकी अच्छीख़ासी दोस्ती हो चुकी थी […]

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परमहंस-१४

परमहंस-१४

गदाधर की उपनयनविधि के समय घटित हुए प्रसंग में से यह ध्यान में आ जाता है कि उसे किसी भी उपासना के, साधना के, विधि के केवल भाव से ही लेनादेना था; यूँ ही कोई रूढ़ि पहले से प्रचलित है इसलिए केवल उसके कर्मकांड का ज्यों कि त्यों स्वीकार करना उसे मान्य नहीं था। बेफ़ज़ूल […]

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परमहंस-१३

परमहंस-१३

अब गदाधर ने उम्र के आठ वर्ष पूरे कर नौंवे वर्ष में पदार्पण किया था। पिताजी की मृत्यु के बाद ‘परिवारप्रमुख’पद की ज़िम्मेदारी उठाये हुए उसके सबसे बड़े भाई ने – रामकुमार ने अब उसकी उपनयनविधि की तैय्यारियाँ शुरू कीं। गदाधर पूरे गाँव का ही दुलारा होने के कारण, इस समारोह की तैय्यारी में पूरा […]

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परमहंस-१२

परमहंस-१२

गदाधर के बचपन का, उसकी इसी प्रकार उत्कट टकटकी लगी होने का एक और वाक़या बयान किया जाता है। वह शिवरात्री का दिन था, इसलिए गाँव के शिवमंदिर में दिनभर उत्सव मनाया जा रहा था। रात को मंदिर में पौराणिक नाटक, भक्तिसंगीत आदि भक्तिमय कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था। गदाधर ने भी उस दिन […]

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परमहंस- ११

परमहंस- ११

गदाधर का अध्यात्म की ओर, गूढता की ओर रूझान बढ़ता ही चला जा रहा था और वह अधिक से अधिक अंतर्मुख होने लगा था। उसका दिन का अधिकांश समय घर में ही या फिर गाँव के उसे प्रिय रहनेवाले स्थानों में व्यतीत होने लगा था। जब घर में रहता था, तब माँ का घर के […]

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परमहंस- १०

परमहंस- १०

सात साल की उम्र में ही माथे पर से पिताजी का साया उठ चुके गदाधर का शरारतीपन थमकर वह अधिक ही अंतर्मुख हुआ था। उसे अब टकटकी भी बहुत बार लगने लगी थी और ऐसी टकटकी लगने के लिए – भगवान की कोई सुन्दर मूर्ति, यहाँ तक कि आसमान के बादल, पर्वत, बारिश, हरेभरे खेत, […]

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परमहंस- ९

परमहंस- ९

नन्हें गदाधर को कल हुआ क्या था, इसका अंदेशा किसी को भी, यहाँ तक कि गाँव के वैद्य को भी नहीं हो रहा था। अहम बात यह थी कि वह स्वयं जो कल की हक़ीक़त बयान कर रहा था, उसपर भी विश्‍वास रखने के लिए कोई तैयार नहीं था। ‘काले घने बादलों की पृष्ठभूमि पर […]

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परमहंस- ८

परमहंस- ८

गदाधर अब छः साल का हो चुका था और अपनी बाललीलाओं द्वारा पूरे गाँव को आनन्द प्रदान कर रहा था। हालाँकि उसकी बाललीलाओं ने सबके मन को भा लिया था, मग़र फिर भी यह बालक सबको अभी भी अन्य आम बालकों की तरह ही प्रतीत हो रहा था, उसमें रहनेवाले दिव्यत्व का किसी को भी […]

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परमहंस-७

परमहंस-७

देखते देखते गदाधर पाँच साल का हो गया। उसकी बाललीलाओं में ये पाँच साल कैसे बीत गये, पता भी नहीं चला था। स्वाभाविक रूप से ही शरारती स्वभाव का रहने के कारण, दूसरों के साथ शरारत करना उसे पसन्द आता था; लेकिन ये शरारतें इतनी मासूम रहती थीं कि उसके कारण सामनेवाला कभी भी ग़ुस्सा […]

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