परमहंस-२६

परमहंस-२६

राधाकृष्णमंदिर की टूटी हुई कृष्ण की मूर्ति का पैर ख़ूबी से जोड़ने की घटना के बाद तो गदाधर राणी राशमणि और मथुरबाबू आँखों का तारा ही बन चुका था और उसके साथ अधिक संपर्क बढ़ाकर, उसे धीरे धीरे संभाषण में खींचते हुए, अधिक से अधिक आध्यात्मिक मामलों में उससे मशवरा पूछा जाने लगा था। रामकुमार […]

Read More »

परमहंस-२५

परमहंस-२५

राणी राशमणि द्वारा निर्माण किये गये मंदिरसंकुल के किसी भी मंदिर में गदाधर पुजारी का काम सँभालें इसके लिए रामकुमार द्वारा किये गये प्रयास निष्फल साबित हुए थे। जीवन मे पैसे को केंद्रस्थान में लानेवाली, इसलिए कोई भी नौकरी गदाधर को नापसन्द थी। इस कारण, इस व्यवहारी दुनिया में यह अव्यवहारी इन्सान कैसे निबाह पायेगा, […]

Read More »

परमहंस- २४

परमहंस- २४

राणी राशमणि द्वारा निर्मित दक्षिणेश्‍वर के कालीमाता मंदिर का उद्घाटनसमारोहसंपन्न होने के बाद गदाधर अकेला ही पुनः अपने कोलकाता के घर वापस लौट आया, क्योंकि रामकुमार कुछ काम खत्म करके लौटनेवाला था। लेकिन वह ५-६ दिन बीतने पर भी नहीं आया, इस कारण हैरत में पड़ गये गदाधर ने पुनः दक्षिणेश्‍वर जाकर पूछताछ की, तब […]

Read More »

परमहंस-२३

परमहंस-२३

कालीमाता के दृष्टान्त के अनुसार राणी राशमणि ने मंदिर का निर्माण किया, जिसके उद्घाटन के समय उत्पन्न हुआ मसला सुलझाने में रामकुमार ने अहम भूमिका निभायी और ३१ मई १८५५ को एक प्रचंड बड़े समारोह के द्वारा यह दक्षिणेश्‍वर कालीमंदिर जनता के लिए खुला कर दिया गया था। इस सारे उद्घाटनसमारोह की एवं कालीमाता की […]

Read More »

परमहंस-२२

परमहंस-२२

स्वप्नदृष्टांत के अनुसार दक्षिणेश्‍वर में कालीमाता का मंदिर बनाने का ध्यास ही राणी राशमणि ने लिया था और लगभग आठ साल निर्माण का काम चल रहा और उस ज़माने में (उन्नीसवीं सदी में) पूरे नौं लाख रुपये खर्चा हुआ वह दक्षिणेश्‍वर कालीमंदिर आख़िरकार सन १८५५ में बनकर पूरा हुआ था। योजना के अनुसार मंदिर का […]

Read More »

परमहंस-२१

परमहंस-२१

अपने सभी आप्त-नौकर-आवश्यक वस्तुभांडार तथा वाराणसी के मंदिर में अर्पण करना चाहनेवाली मूल्यवान् वस्तुओं का भांडार लेकर, कुल २४ नौकाओं का ताफ़ा लेकर कोलकाता से वाराणसी तीर्थयात्रा के लिए जाने की योजना राणी राशमणि को त्याग देनी पड़ी। इसके बारे में ऐसी कथा कही जाती है – प्रस्थान करने के पहले की रात राशमणि को […]

Read More »

परमहंस-२०

परमहंस-२०

बहुत ही अमीर रहते हुए भी अत्यधिक सात्त्विक प्रवृत्ति की, कोलकाता (उस समय का कलकत्ता) के नज़दीक प्रचंड बड़ी ज़मीनदारी की मालकीन होनेवाली राणी राशमणि प्रजाभिमुख थी। उसके प्रजाभिमुख शासन की एक कथा ऐसी बतायी जाती है – जब वहाँ के मछुआरों पर अँग्रेज़ सरकार ने एक अन्याय्य अतिरिक्त कर (टैक्स) लगाया, तब वे अपनी […]

Read More »

परमहंस-१९

परमहंस-१९

गदाधर को कोलकाता पधारकर कुछ ही महीने हुए थे और वह यहाँ के माहौल से, दिनक्रम से अच्छाख़ासा परिचित हुआ दिखायी दे रहा था। बड़े भाई रामकुमार की सिफ़ारिश से, पूजापाठ आदि करने के काम हालाँकि उसे मिलने लगे थे, मग़र फिर भी उसे कोलकाता ले आने में – ‘उसकी स्कूली शिक्षा पूरी हों’ यह […]

Read More »

परमहंस-१८

परमहंस-१८

अपना बचपन, अपना सुरक्षित घर, दोस्तों-गाँववालों का प्रेम, कामारपुकूर के सत्रह वर्षों के वास्तव्य की रम्य स्मृतियाँ….सबकुछ पीछे छोड़कर गदाधर अपने बड़े भाई के साथ कोलकाता आया था। कुछ ही दिनों में उसने अपने भाई को मदद करना शुरू किया। लेकिन पाठशाला के काम में नहीं, बल्कि घरगृहस्थी में! खाली समय में अपने भतीजे अक्षय […]

Read More »

परमहंस-१७

परमहंस-१७

गदाधर अब १७ साल का, हट्टाकट्टा, सुन्दर युवक हो चुका था। नम्र, प्रेमल, दयालु, तेज़ दिमाग का, हमेशा निःस्वार्थता से दूसरे की मदद करने के लिए उत्सुक गदाधर किसी भी समूह में अलग ही दिखायी देता था। लेकिन उसके मन की संरचना आम लोगों की तरह नहीं हुई थी। उसकी उम्र के लड़के जो बातें […]

Read More »