परमहंस-१४

गदाधर की उपनयनविधि के समय घटित हुए प्रसंग में से यह ध्यान में आ जाता है कि उसे किसी भी उपासना के, साधना के, विधि के केवल भाव से ही लेनादेना था; यूँ ही कोई रूढ़ि पहले से प्रचलित है इसलिए केवल उसके कर्मकांड का ज्यों कि त्यों स्वीकार करना उसे मान्य नहीं था।

उपनयनविधिबेफ़ज़ूल प्रतीत होनेवाली रूढ़ि का पालन न करने के विषय में गदाधर की एक और कथा बतायी जाती है। उसके गाँव में दुर्गादास नामक एक धनिक व्यक्ति रहते थे। उन्हें भी गदाधर से लगाव था। लेकिन उनके घर में वे अंतःपुर-पद्धति का पालन करते थे; अर्थात् घर की महिलाओं को भीतर के कमरों में परिरुद्ध (कन्फाईन) करते हुए वे उन्हें लोगों के सामने आने नहीं देते थे, वैसे ही, बाहर के किसी पुरुष को उनके अंतःपुर में प्रवेश निषिद्ध था। गदाधर को तो गाँव के सभी घरों में, बिलकुल रसोईघर तक मुक्तप्रवेश था और उसका स्वागत भी हर घर में प्रेमपूर्वक होता था; लेकिन यह अकेले दुर्गादास का ही घर ऐसा था, जहाँ गदाधर को घर की इस पद्धति की वजह से रसोईघर तक प्रवेश नहीं था। अपने घर की इस पद्धति का दुर्गादास को अत्यधिक घमण्ड़ था और बाहर के किसी पुरुष को अपने अंतःपुर में प्रवेश मिल ही नहीं सकेगा, ऐसीं ड़ींगें वे हाँकते थे। लेकिन ऐसा क्यों करना चाहिए, ऐसा सवाल करनेवाले गदाधर को यह पद्धति बेफ़ज़ूल प्रतीत हो रही थी और उसने – ‘मैं इस रूढ़ि को तोड़कर ही दिखाऊँगा’ ऐसी शर्त दुर्गादास के साथ लगायी।

एक दिन शाम ढलने के बाद गदाई, साड़ी पहनकर माथे पर पल्लू ओढ़ी हुई एक श्रमजीवी महिला के भेस में दुर्गादास के सामने आ खड़ा हुआ। उसका यह स्त्री का हुलिया इतना हूबहू हुआ था कि दुर्गादास को कोई भी शक़ नहीं हुआ। ‘मैं पड़ोस के गाँव के बुनकर के घर से होकर, परिवारवालों के साथ यहाँ के बाज़ार में आयी थी और भीड़ मे परिवारवालों से जुदा हो जाने के कारण अब इतनी रात गये घर जाना मुमक़िन नहीं है, तो क्या एक रात के लिए मुझे आपके घर में पनाह मिलेगी?’ ऐसा उसने दुर्गादास से पूछा। उन्होंने उसे महिलाओं के कक्ष में (अंतःपुर में) भेज दिया और उसके ठहरने का इन्तज़ाम करने के लिए कहा।

यहाँ गदाधर देर रात तक घर न लौटने के कारण सर्वत्र उसकी खोज शुरू हुई। उसके घरवाले उसे आवाज़ देते हुए गाँव का कोना कोना छानने लगे। उसका बड़ा भाई रामकुमार उसे आवाज़ देते हुए जब दुर्गादास के घर के नज़दीक आया, तब उसकी आवाज़ सुनकर, भीतर महिलाओं के कक्ष में उनके साथ महिला के भेस में ही गपशप करते बैठे गदाधर ने एकदम आदतवश् ‘आया भाई’ ऐसा चिल्लाते हुए बाहर दौड़ लगायी और बाहर जाकर रामकुमार से गले मिला। उसीके साथ सारा माजरा घरवालों के और दुर्गादास के भी ध्यान में आया। लेकिन गदाधर ने उन्हें उल्लू बनाया यह जान जाने पर भी वे उसपर गुस्सा नहीं हुए; उल्टे ‘उसने यह किया, वह केवल शर्त जीतने के लिए….उसके दिल में पाप बिलकुल भी नहीं था’ यह जानकर वे कौतुक के साथ मुस्कुराते हुए उसे देखते ही रह गये।

लेकिन गदाधर का यह अल्लडपन धीरे धीरे बढ़ती उम्र के साथ कम होता जा रहा था।

गदाधर की उपनयनविधि संपन्न होने के बाद उसकी अन्य उपासनाओं के साथ अब गायत्रीमंत्रपुरश्‍चरण भी शुरू हुआ था। वह उसमें एकदम तल्लीन हो जाता था। उसके चेहरे पर का तेज दिनबदिन बढ़ता हुआ लोगों को दिखायी देने लगा।

गाँव का रईस ज़मीनदार लाहाबाबू तो गदाई का मानो भक्त ही था। दरअसल गदाधर की उपनयनविधि के समय निर्माण हुए ‘उस’ – ‘गदाई को उपनयन के बाद पहली भिक्षा कौन प्रदान करेगा’ इस पेचींदा प्रसंग में, लाहाबाबू ने ही मध्यस्थता करके, ख़ौले हुए जनसमुदाय को शांत करते हुए, गदाई ने धनी लुहारन से पहली भिक्षा का स्वीकार करने का मार्ग सुलभ किया था।
लाहाबाबू की बेटी प्रसन्नमयी भी गदाई की मानो भक्त ही बन गयी थी। अकालिक विधवापन आया हुआ होने के कारण, अन्यथा अंधकारमयी बन चुके उसके जीवन में, छोटा गदाधर यह मानों प्रकाश की किरन ही बन चुका था।

वह बिलकुल नन्हा बालक होने के समय से लेकर – ‘यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि कोई तो महान ईश्‍वरीय विभूति है’ ऐसा विचार उसके मन में अ़क्सर उठते रहता था। जिस प्रकार गदाई को गाँव में कहीं भी और किसी के भी घर में मुक्त प्रवेश था, वैसा ही मुक्त प्रवेश लाहाबाबू के घर में भी था। जब भी मन करता था, तब वह अपने साथियों के साथ वहाँ पर खेलकूद करने जाता था। वहाँ पर उसे कौतुक से दुलारा जाता था। जब वह उनके घर आता था, तब प्रसन्नमयी उससे भक्तिगीत गवाती थी। मधुर आवाज़ में तल्लीन होकर भक्तिगीत गाते समय का उसके चेहरे पर का ‘वह’ ‘खोये हुए होने का’ भाव; बाहरी दुनिया से नाता तोड़कर ‘उस एक’ के साथ ही नाता जोड़ा हुआ होने का भाव देखना उसे बहुत भाता था।

प्रसन्नमयी तो, उसे टकटकी लगाकर निहारते हुए कई बार अपना भान ही खो बैठती थी। वह उसे मानो बालकृष्ण ही प्रतीत होता था। वह कई बार न रहकर उससे पूछती भी थी – ‘गदाई, क्या तुम ईश्वर हो?’

Leave a Reply

Your email address will not be published.