तीसरी पाबंदी

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग ६२ 

ईमर्जन्सी पश्‍चात् के समय में संघ देशभर में सेवाकार्य को बढ़ाता रहा| इसलिए संघ का विरोध करनेवाले भी, संघ के सेवाकार्य की प्रशंसा कर रहे थे| आगे चलकर तो कुछ विरोधक, संघ के सेवाकार्य की प्रशंसा करते करते संघ की भी प्रशंसा करने लगे| इसका कारण यह था कि ‘हम आजतक जैसा मानकर चलते आये, वैसा संघ हरगिज़ नहीं है’ इसका एहसास उन्हें होने लगा| इस कारण, संघ के प्रशंसक बने ये विरोधक अगले समय में, संघ का विरोध करनेवालों को संघ की विशेषताएँ समझाकर बताने लगे| समाज मे रहनेवाला संघ का जनाधार अधिक से अधिक मज़बूत होता गया| बिना किसी अपेक्षा के, नज़र के सामने केवल राष्ट्रहित रखकर मेहनत करनेवालें स्वयंसेवकों के बारे में समाज को आदर महसूस होने लगा| इस कारण संघ का कार्य अधिक गतिमान हुआ|

rameshbhai maheta- ईमर्जन्सी पश्‍चात्

हम भारतीय बहुत भाग्यशाली हैं| इस देश का इतिहास महापुरुषों ने व्याप्त किया है| समय समय पर समाज को दिग्दर्शन करने हमारे देश में महापुरुषों ने जन्म लिया| श्रीराम और श्रीकृष्ण सज्जनों की रक्षा के लिए इसी भूमि में अवतरित हुए| अपने समय में उन्होंने सज्जनों की रक्षा के लिए घनघोर संघर्ष किया और दानवी शक्तियों को पराभूत किया| इसी कारण ऐसे महापुरुषों के स्मरण द्वारा ही ‘हमें आगे चलकर क्या करना है’ इसके बारे में प्रेरणा मिलती रहती है| देश में चेतना लानी हो, तो प्रभु रामचंद्रजी को भूलकर नहीं चलेगा| इसीलिए सन १९८४ में ‘विश्‍व हिंदु परिषद’ ने रामजन्मभूमि को मुक्त करने के लिए एक विशाल कार्यक्रम का आयोजन किया|

बिहार की सीतामढ़ी से लेकर रामजन्मभूमि तक एक बड़ी यात्रा का आयोजन किया गया| ‘माता सीता अपने नैहर से ससुराल जा रही है’ इस भावना से ‘राम-जानकी रथयात्रा’ आयोजित की गयी| इसमें हज़ारों लोग सम्मिलित हुए थे| दुर्भाग्यवश् इस दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई| यह देश पर आया बहुत बड़ा संकट था| इसे मद्देनज़र रखते हुए यह रथयात्रा कुछ समय के लिए स्थगित की गयी| २३ अक्तूबर १९८५ को यह रथयात्रा पुनः शुरू की गयी| अयोध्या के दिगंबर आखाड़े के महंत रामचंद्रदास ने ‘रामनवमी से पहले यदि राममंदिर को लगा ताला नहीं खोला, तो मैं आत्मदहन करूँगा’ ऐसी सरकार को चेतावनी दी| इस कारण राममंदिर को लगा ताला खोलने के लिए सरकार पर दबाव बढ़ने लगा|

१ फ़रवरी १९८६ को ‘साकेत’ ज़िले के न्यायालय ने रामजन्मभूमि को लगा ताला खोलने का फ़ैसला सुनाया| इस फ़ैसले पर तुरन्त ही अमल किया गया| इस कारण दुनिया भर के हिंदु समाज में आनंद की लहर दौड़ उठी| यह ऐतिहासिक दिन था| कई स्थानों पर यह दिन दिवाली की तरह मनाया गया| लेकिन उससे कुछ लोग बेचैन हो उठे थे| समाज के एक विशिष्ट वर्ग में नाराज़गी की भावना जाग उठी, इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता| इतिहास का ठीक तरह से ज्ञान एवं जानकारी न रहनेवाले लोग भी इस मामले में बेवजह संवेदनशीलता का प्रदर्शन कर रहे थे| वह कुछ भी मायने नहीं रखता था| किसी भी राष्ट्र का मानबिंदु यह सभी नागरिकों के लिए सर्वोच्च रहना ही चाहिए, सभी द्वारा उसका आदर किया जाना ही चाहिए|

देश में धार्मिक शत्रुता पैदा करके, समाज के एक विशिष्ट वर्ग में असुरक्षितता की भावना फ़ैलाने का यह सुनहरा मौक़ा चलकर आया है, ऐसा कुछ खुदगर्ज़ नेताओं को लगने लगा| उसका फ़ायदा उठाने के लिए सन १९८७ के ‘प्रजासत्ताक दिन’ को ‘काले दिन’ के रूप में मनाने की अविचारी घोषणा उन्होंने की| ‘तुमको बाक़ी जो कुछ भी करना है, करो; मग़र देश के सम्मान को चुनौती दोगे, तो वह हरगिज़ बर्दाश्त नहीं किया जायेगा’, ऐसी भूमिका बजरंग दल ने अपनायी|

१ फ़रवरी १९८९ को प्रयाग में ‘विश्‍व हिंदु परिषद’ की तीसरी धर्मसंसद बुलायी गयी| इस धर्मसंसद में एक लाख रामभक्त और हज़ारों की तादाद में संतमहंत सहभागी हुए थे| ‘विश्‍व हिंदु परिषद’ ने पूरे देशभर में ‘रामशिला पूजन’ के कार्यक्रम का आयोजन किया| देशभर की हर एक बस्ती में से पूजन की हुई कम से कम एक ईंट अयोध्या में मँगायी गयी| पूजन की गयीं रामशिलाओं के ट्रक्स अयोध्या में आने लगे| सबसे पहले इस रामशिला का पूजन बिहार के एक दलित बांधव कामेश्‍वर चौपाल के हाथों किया गया| लेकिन राममंदिर के निर्माण में एक समस्या थी| जब तक पहले निर्माण की गयी वास्तु खड़ी है, तब तक यहॉं पर राममंदिर का निर्माण संभव नहीं था|

उस समय विश्‍वनाथ प्रतापसिंग प्रधानमंत्री थे| उन्होंने इस समस्या का हल ढूँढ़ने के लिए चार महीनों की अवधि मॉंग ली थी| ‘विश्‍व हिंदु परिषद’ ने यह बात भी मान ली| लेकिन दूसरी ओर ३० अक्तूबर १९९० से ‘कारसेवा’ शुरू करने का फ़ैसला किया| इसके लिए ‘अखिल भारतीय कारसेवा समिति’ की स्थापना की गयी| ‘संयोजक’ के तौर पर अशोक सिंघलजी की नियुक्ति की गयी| भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष लालकृष्ण अडवाणीजी ने जनजागृति के लिए सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा शुरू की| पूरे देशभर में से कारसेवक अयोध्या आने लगे| उनके मार्ग में रोड़े डालने का एक भी मौक़ा उत्तर प्रदेश की सरकार ने नहीं छोड़ा| इस आंदोलन में मैं भी सहभागी हुआ था| इस बार मुझपर ‘मुंबई वाहिनी’ की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी| रामजन्मभूमि तक जाने का अवसर ही हमें नहीं दिया गया| उससे पहले ही हमें गिरफ़्तार कर, उत्तर प्रदेश के जौनपूर जेल में रखा गया| लेकिन यहॉं से रिहा होने के बाद हम अयोध्या स्थित रामजन्मभूमि तक पहुँच ही गये|

कुछ स्वयंसेवक तो २५० किलोमीटर की दूरी तय करके अयोध्या पहुँचे थे| देशभर में से आये कारसेवकों पर गोलीबारी करने के आदेश भी कुछ स्थानों पर दिये गये थे| इसमें कुछ कारसेवकों की मौत हो गयी| इतना सब होने के बावजूद भी, राममंदिर के निर्माण में रोड़ा साबित होनेवाली इस वास्तु पर कारसेवकों ने भगवा ध्वज फ़हरा ही दिया| इस ध्वज को जिन्होंने फ़हराया, वे रामकुमार और शरदकुमार कोठारी ये दो सगे भाई धराशायी हो गये| हज़ारो आंदोलकों को इस समय गिरफ़्तार करके जेल में डाला गया| लालकृष्ण अडवाणीजी की रथयात्रा को रोककर बिहार में उन्हें गिरफ़्तार किया गया| उसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र में सत्ता में रहनेवाले विश्‍वनाथ प्रतापसिंग की सरकार को दिया समर्थन हटाया| उनकी सरकार गिर गयी और उसके बात कुछ महीनों के लिए चंद्रशेखर की सरकार सत्ता में आयी|

इसके बाद के लोकसभा चुनावों से पहले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की गयी| उसके बाद पी. व्ही. नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने| देश में इन सारी घटनाओं के चलते, पुनः रामजन्मभूमि आंदोलन तीव्र होने लगा| भारत के इस आंदोलन की, दुनियाभर के माध्यमों ने दख़ल लेना शुरू किया| दिल्ली के बोट क्लब में ‘विराट हिंदु सम्मेलन’ हुआ| दस लाख लोग इस सम्मेलन में सहभागी हुए|

देश में सत्ता में रहनेवालीं सरकारों ने हिंदुओं की भावनाओं को आज तक नज़रअन्दाज़ ही किया है, ऐसी जनमानस की भावना हुई थी| न्यायालय में रामजन्मभूमि का मसला कई वर्षों से प्रलंबित था, लेकिन उसपर निर्णय नहीं हो रहा था| ऐसे हालातों में और कितनी देर तक संयम बरतें, ऐसा सवाल हिंदुओं के मन में उठ रहा था| जनमानस की दख़ल लेकर मसले का हल ढूँढ़ने के बजाय, उसे ऐसा ही प्रलंबित रखने की सरकारी यंत्रणा की प्रवृत्ति के कारण रामजन्मभूमि के लिए इतना बड़ा आंदोलन छेड़ना पड़ा| यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति होती, तो यह मसला कब का आसानी से हल हो चुका होता| लेकिन जनभावना का अनादर करने की आदत ही हमारे राज्यकर्ताओं ने अपने आपको डाल दी थी| राममंदिर का निर्माण करने के लिए जो कुछ भी करना पड़ेगा, वह करने की तैयारी रामजन्मभूमि आंदोलकों ने की थी| इसके बाद का इतिहास सभी को ज्ञात है, उसे नये से दोहराने की कोई आवश्यकता नहीं है| लेकिन इस घटना के कारण भारतीय राजनीतिक माहौल पूरी तरह से हिल गया और उसे नयी दिशा प्राप्त हुई|

इस दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहनेवाले कल्याणसिंग ने अपना इस्तीफ़ा राज्यपाल को सौंप दिया| अहम बात तो यह थी कि १० दिसम्बर १९९२ को ‘अवैधानिक गतिविधि विरोधक अधिनियम’ के तहत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर पाबंदी लगायी गयी| संघ पर थोंपी गयी यह तीसरी पाबंदी थी|

(क्रमश:)

Leave a Reply

Your email address will not be published.