सेवाकार्य का विस्तार

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग ६०

राष्ट्र सेविका समिति, वनवासी कल्याण आश्रम, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विवेकानंद केंद्र, विश्‍व हिंदु परिषद, दीनदयाल शोध संस्थान ये संघ द्वारा स्थापन किये गये संगठन देशभर में सेवाकार्य कर रहे थे। उनके कार्य पर बाळासाहेब की नज़र रहती थी। इस सेवाकार्य का हालाँकि बड़ा विस्तार हो रहा था, मग़र फिर भी भारत जैसे विशाल देश को यदि देखा जाये, तो इस सेवाकार्य को और भी ज़्यादा व्यापक बनाने की आवश्यकता पूजनीय सरसंघचालक बाळासाहब देवरस को प्रतीत हो रही थी।

MadhukarDattatraya

समय की धारा में देश की राजनीतिक एवं सामाजिक समस्याओं का स्वरूप बदलते रहता है। पुरानीं समस्याएँ अधिक तीव्र बन जाती हैं और नयीं समस्याएँ भी पैदा होती हैं। सामाजिक स्तर पर की समस्याएँ यदि सुलझानी हों, तो सेवाकार्य करने के सिवा और कोई चारा नहीं है। इसके लिए सेवाकार्य की व्याप्ति को बढ़ाना आवश्यक ही रहता है। संघ के सेवाकार्य को बढ़ाना हो, तो संघ की शाखाएँ बढ़नी चाहिए। क्योंकि शाखा के ज़रिये समाज को संगठित एवं संस्कारित करना आसान हो जाता है। इसीलिए बाळासाहब शाखाओं की संख्या और शाखाओं में रहनेवाली उपस्थिति को बढ़ाने पर हमेशा ही ज़ोर देते थे।

ईमर्जन्सी के बाद के समय में स्वयंसेवकों का आत्मविश्‍वास बढ़ गया था। अत्यधिक मुश्किल दौर में, सरकार संघ के विरोध में रहने के बावजूद भी समाज ने स्वयंसेवकों की बहुत बड़ी सहायता की थी। चुनौतीभरे हालातों में अपना साथ निभानेवाला हमारा समाज, देशहित के कार्य के लिए भी हमारी यक़ीनन ही सहायता करेगा, ऐसा विश्‍वास स्वयंसेवकों को लग रहा था। इसके लिए विभिन्न स्तरों पर समाज को संघ के साथ जोड़ने का कार्य हाथ में लिया गया। जो संघ की शाखा में नहीं आते, लेकिन जिनके मन में संघ के प्रति, संघ के ध्येय-नीतियों के प्रति सम्मान की भावना है, ऐसे लोगों का सामाजिक कार्य के लिए सहयोग प्राप्त करने के लिए व्यापक प्रयास शुरू हुए।

सन १९८२ में बंगळुरु में संघ के महाशिविर का आयोजन किया गया था। इस तीन-दिवसीय महाशिविर में २१ हज़ार स्वयंसेवक पूरे गणवेश (युनिफॉर्म) के साथ सम्मिलित हुए थे। इसके बाद सन १९८३ में महाराष्ट्र में आयोजित किये गये महाशिविर में ३५ हज़ार स्वयंसेवक सम्मिलित हुए थे। सन १९८७ में राजस्थान के जयपूर में आयोजित महाशिविर में ५० हज़ार स्वयंसेवक सम्मिलित हुए थे। इस प्रकार देश के हर एक प्रान्त में महाशिविरों का आयोजन किया गया। जनता यह सबकुछ देख रही थी और जनता पर उसका प्रभाव भी पड़ रहा था। कई लोग इन शिविरों में आ रहे थे। क्या हम संघ कार्य में हाथ बटा सकते हैं, इसका भी विचार वे कर रहे थे। कुछ लोगों ने अपनी क्षमता के अनुसार संघकार्य की सहायता भी की।

संघ शिक्षा वर्ग में उपस्थिति बढ़ती जा रही थी। लेकिन संघ के कार्य का विस्तार बढ़ रहा होते समय भी, सबकुछ ठीकठाक चल रहा था, संघ के सामने किसी भी प्रकार की चुनौतियाँ नहीं थीं, ऐसी धारणा नहीं बना लेनी चाहिए। संघ का कड़ा विरोध किया जा रहा था। विरोधक संघ के स्वयंसेवकों पर हमलें भी कर रहे थे। ये हमलें महज़ शाब्दिक नहीं होते थे। इस विषय में केरल का उदाहरण दे सकते हैं। इस राज्य में, संघविरोधी शक्तियों द्वारा स्वयंसेवकों पर और संघ की शाखाओं पर हमलें होते रहते थे। उन्हें जवाब देना अनिवार्य था। ‘पीट जाना’ यह हमारी संस्कृति नहीं है। यदि कोई हमें मारने के लिए आयें, तो उसका सामना हमें करना ही है। हमारे देवीदेवता शस्त्रधारी हैं। उनके हाथों निरंतर दानवी शक्ति परास्त होती ही रहती है। संघ के सामने यही आदर्श है।

बाळासाहब जब केरल के दौरे पर थे, तब उन्हें यहाँ पर ख़तरा होने की जानकारी एक पत्रकार ने दी। ‘आप खुले आम केरल में प्रवास कर रहे हैं। लेकिन ध्यान में रहें, आपका नाम हिटलिस्ट में है’,?ऐसा इस पत्रकार ने बाळासाहब को बताया। यह सुनकर बाळासाहब हँसने लगे। ‘केवल मैं ही नहीं, बल्कि सारे स्वयंसेवक हिटलिस्ट मे हैं। लेकिन हमारा काम रुका नहीं है, बल्कि बढ़ता ही चला जा रहा है’, यह बाळासाहब का जवाब सुनकर वह पत्रकार चकरा गया। केरल में पूजनीय सरसंघचालक बाळासाहब देवरस के लिए पूरे गणवेश में एक लाख स्वयंसेवकों ने संचलन किया। ख़ास बात तो यह है कि गणवेश में न रहनेवाले संघ के हितचिंतक भी उतनी ही संख्या में इस समय उपस्थित थे।

केरळस्थित संघ की शाखा पर हमलें करनेवालों में से कुछ लोग, संघ के कार्य की महिमा ज्ञात होने के बाद स्वयं होकर पछतावा ज़ाहिर करते थे। उनमें से कुछ लोग बाद में स्वयंसेवक भी बने। उससे भी परे जाकर कुछ लोग संघ के प्रचारक भी बने। संघ ने, किसी ज़माने में अपने कट्टर विरोधक रहनेवालों को भी उतने ही प्रेम से अपने भीतर समा लिया।

भारत को संघमुक्त बनाने की घोषणाएँ कुछ लोगों द्वारा की जाती हैं। लेकिन संघ अपना विस्तार करते हुए आगे बढ़ रहा है। इसका कारण यह है कि संघ अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष नहीं करता, बल्कि राष्ट्र एवं समाज के हित के लिए संघ का जन्म हुआ है। जैसा कि श्रीगुरुजी हमेशा कहते थे ‘इदं न मम इदं राष्ट्राय स्वाहा’, यही संघ की भूमिका है।

सन १९८७ में अफ्रीका के केनिया स्थित संघ के कार्य के चालीस साल पूरे हुए। इस उपलक्ष्य में स्वयंसेवकों ने विशाल कार्यक्रम का आयोजन करने का निर्णय लिया। ज्येष्ठ प्रचारक यादवराव जोशी को इस कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया गया। केनिया, युगांडा, टांझानिया इन तीनों पूर्व अफ्रीकी देशों के स्वयंसेवक इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए थे। भारत से भी कुछ स्वयंसेवक इस कार्यक्रम के लिए आये थे, उनमें से एक मैं भी था। यहाँ ‘युवाशक्ति पर मातृशक्ति का प्रभाव’ इस विषय पर मैंने व्याख्यान दिया था।

हिंदु समाज दुर्भाग्यवश अपने आपको जाति-पातियों में विभाजित कर लेता है। इससे हमारा समाज कमज़ोर बनता है। इसी कारण, जाति-पातियों में अपने आपको विभाजित कर लेनेवाले हमारे समाज को एक करने का निर्धार संघ ने किया। केनिया में रहनेवाली विभिन्न जातियों के, पंथों के कुल मिलाकर १२२ संगठनों को एक ही छत्र के तले लाकर ‘हिंदु कौन्सिल ऑफ केनिया’ नामक संगठन की स्थापना की। संघ के मार्गदर्शन में स्थापन हुए इस संगठन का कार्य आज भी जोरों-शोरों से शुरू है। इस प्रकार विभिन्न अफ्रिकी देशों में हिंदुओं के संगठन, संघ की प्रेरणा से और संघ के मार्गदर्शन में कार्यरत हैं। सन १९९८ में सभी अफ्रिकी देशों में स्थित हिंदुओं के संगठनों को, एक ही छत्र के तले लानेवाले ‘हिंदु कौन्सिल ऑफ अफ्रीका’ इस मध्यवर्ति संगठन की स्थापना की गयी। इस संगठन के रूप में, अफ्रीका महाद्वीप के सभी हिंदुओं का विशाल संगठन बन गया। यह संगठन अफ्रीका महाद्वीप में विधायक कार्य कर रहा है। अफ्रीकी देशों में रहनेवाले संपन्न हिंदु, इस संगठन के माध्यम से अफ्रीकी देशों के विकास के लिए और समाजकल्याण के कार्य के लिए भारी मात्रा में सहायता कर रहे हैं। ज़रूरतमंद छात्रों की पढ़ाई का खर्चा उठाने से लेकर उन्हें स्कॉलरशिप प्रदान करने तक, साथ ही, अफ्रीकी समाज की उन्नति के लिए भी यह संगठन कार्यरत है।

इंग्लैंड़ में ‘हिंदु स्वयंसेवक संघ’ का कार्य सन १९६६ से शुरू हुआ। सन १९८४ में ब्रॅडफर्ड में ‘हिंदु संगम’ का कार्यक्रम संपन्न हुआ। छः हज़ार स्वयंसेवकों का सहभाग रहनेवाले इस अत्यधिक अनुशासनबद्ध शिविर को देखकर, उसकी ओर ब्रिटन की ‘स्कॉटलंड यार्ड’ गुप्तचर एजन्सी का ध्यान आकर्षित हुआ। इस हिंदु स्वयंसेवक संघ की स्थापना कब हुई, उसके ध्येय-नीतियाँ क्या हैं, उनकी प्रवृत्ति किस प्रकार की है, इन सब बातों की उन्होंने कसकर तहकिक़ात शुरू की। इसके लिए इस गुप्तचर संगठन के अधिकारी भारत आये। नागपूर एवं दिल्ली स्थित संघ के कार्यालयों की इन अधिकारियों ने भेंट की। इन अधिकारियों को संघ की ओर से श्रीगुरुजी का ‘बंच ऑफ थॉट’ यह पुस्तक दिया गया।

सारी तहकिक़ात करके संघ के बारे में जान लेने के बाद इन अधिकारियों ने अपना रिपोर्ट प्रस्तुत किया। ये अधिकारी संघ के कार्य से और ध्येय-नीतियों से बहुत ही प्रभावित हुए थे। इतना ही नहीं, बल्कि ‘हिंदु स्वयंसेवक संघ’ का कार्य विधायक है, प्रशासन उसे पूरा सहयोग दें, ऐसी सिफ़ारिश इस रिपोर्ट में की गयी। उसके बाद लंडन के मेयर ने ‘हिंदु स्वयंसेवक संघ’ की प्रशंसा की थी।

इस वर्ष इंग्लैंड़ में स्थापन हुए ‘हिंदु स्वयंसेवक संघ’ के कार्य के पच्चास साल पूरे हो चुके हैं। इसी उपलक्ष्य में २९ जुलाई से ३१ जुलाई तक लंडन में महाशिविर का आयोजन किया गया है। यह लेख छप जाने तक यह शिविर संपन्न हो भी चुका होगा।

(क्रमश:)

Leave a Reply

Your email address will not be published.