अनेकता में एकता…

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग ५८

खलिस्तान की माँग करनेवाले कट्टरपंथियों को ‘संघ’ यह उनका दुश्मन प्रतीत हो रहा था। उन्होंने कई स्वयंसेवकों की जान ली। लेकिन ‘देशहित के लिए बलिदान देने की तैयारी रखना’, यह पूजनीय सरसंघचालक का आदेश था। ‘चाहे अपने प्राण भी क्यों न चले जायें, लेकिन देश का दूसरा बँटवारा न होने देना’, यह संघ का आदेश स्वयंसेवकों के लिए पर्याप्त था। इसी कारण, कट्टरपंथियों की प्रबलता रहनेवाले इलाकों में भी बड़े साहस के साथ संघ की शाखाएँ लगती थीं। सिख बंधु भी इस शाखा में आएँ इसके लिए प्रयास करें, ऐसी सूचना स्वयंसेवकों को संघ द्वारा दी जा रही थी। उसे प्रतिसाद भी मिलने लगा था। इससे कट्टरपंथी बेचैन हो उठे थे। संघ को सबक सिखाने के लिए उन्होंने ‘मोगा’ में जारी शाखा पर भयानक हमला किया।

sakshibhaav-balasaheb-deoras- ‘संघ’

मिनाक्षीपुरम् में हुई धर्मांतर की घटना के बाद संघ सावधान हो गया। उसके बाद दक्षिण भारत में जगह जगह पर हिंदुओं के संगठनों का निर्माण किया गया। ‘हिंदु मुन्नानी’ यह इसी तरह का, संघ के द्वारा निर्माण किया गया एक संगठन था। इस संगठन के द्वारा जाति-पाति के भेद नष्ट करने के प्रयास शुरू हुए। उसीके साथ, धर्मांधता के विरोध में इस संगठन ने हमेशा ही प्रखर भूमिका अपनायी। जिनका धर्मांतर हो चुका था, उन्हें अपने मूल धर्म में वापस ले आने के लिए इस संगठन ने प्रयास किये। इन प्रयासों को सफलता भी मिलने लगी। दक्षिण भारत में इस तरह के कार्य के चलते ही, पंजाब में ‘खलिस्तान’ की माँग को लेकर भयानक हिंसाचार शुरू हुआ।

देशहित से ज़्यादा राजनीति को महत्त्व दिया गया, तो उसके परिणाम कितने भयावह हो सकते हैं, इसकी मिसाल खलिस्तान के आंदोलन में दिखायी देती है। राजनीतिक स्वार्थ हासिल करने के लिए खलिस्तान की माँग को ताकत की आपूर्ति की गयी। उसके पीछे पंजाब की सत्ता हथियाने का षड्यंत्र था। इस कारण, खलिस्तान की माँग करनेवालों को अवास्तव महत्त्व दिया गया। इस अलगाववाद ने आगे चलकर भस्मासुर का रूप रूप धारण किया और इससे देश की भयानक हानि हुई। पंजाब यह सरहदी प्रांत है। उससे सटकर ही पाकिस्तान है। सदैव भारत का घात करने की ताक में बैठे पाकिस्तान ने इस मौ़के का फ़ायदा उठाया।

खलिस्तान की माँग करनेवाले, राहभटके लोगों ने पंजाब में हिंसाचार का भयानक सत्र शुरू किया। हत्याकांड की भयावह ख़बरें पंजाब से आने लगीं। ऐसी परिस्थिति में चूप बैठना संघ के लिए मुमक़िन ही नहीं था। सिख समुदाय में पैदा हुई अलगपन की भावना दूर हों, इसलिए प्रयास शुरू करो, ऐसे आदेश पूजनीय सरसंघचालक ने दिये। स्वयं सरसंघचालक ने सन १९८१ में पंजाब का दौरा किया। जालंदर के गुरुगोविंद सिंह स्टेडियम में तक़रीबन आठ हज़ार गणवेशधारी स्वयंसेवकों को बाळासाहब ने संबोधित किया।

आनेवाले समय में पंजाब में कट्टरपंथी तबाही का माहौल फैला सकते हैं, इसका एहसास सरसंघचालक को बहुत पहले ही हो चुका था, इसीलिए वे पंजाब में एकता के लिए प्रयास कर रहे थे। लेकिन सभी को देश के सामने खड़े रहनेवाले इस ख़तरे का एहसास हुआ नहीं था। इसीलिए राजनीतिक स्वार्थ को मद्देनज़र रखते हुए, पंजाब में अपनी पार्टी की सरकार सत्ता में लाने के लिए अलगाववादियों की माँग को बल की आपूर्ति की जा रही थी।

इसका अंजाम देश को भुगतना पड़ेगा, इसका विचार तक किसी ने किया नहीं। ख़ैर! पंजाब को शांत करने के लिए संघ अपनी पूरी ताकत दाँव पर लगा रहा था। उन प्रयासों को यदि अन्यों का सहयोग मिल जाता, तो शायद हज़ारों बेगुनाह नागरिकों के प्राण बच जातें। लेकिन वैसा हुआ नहीं।

इस हिंसाचार की जब शुरुआत हो रही थी, तभी संघ ने समाज और देश को सतर्कता का इशारा दिया था। संघ के स्वयंसेवक यज्ञदत्त शर्मा ने पंजाब के हिंदुओं और सिखों की एकता के लिए पूरे ४५ दिनों का उपोषण किया था। ‘मेरी दो आँखों में से एक आँख केशधारी, तो दूसरी सहजधारी है’ ऐसा यज्ञदत्त शर्मा ने कहा था। संघ में सिख समुदाय का उल्लेख सम्मानपूर्वक ‘केशधारी’ ऐसा किया जाता था। वे उपोषण को त्याग दें इसलिए हिंदुओं जितना ही सिखों ने भी आग्रह रखा था। दोनों समुदायों द्वारा, ‘हम आपस में भेदभाव नहीं करेंगे, एकता रखेंगे’ ऐसा यक़ीन दिलाया जाने पर ही यज्ञदत्तजी ने उपोषण स्थगित किया था।

खलिस्तान की माँग करनेवाले कट्टरपंथियों को ‘संघ’ यह उनका दुश्मन प्रतीत हो रहा था। उन्होंने कई स्वयंसेवकों की जान ली। लेकिन ‘देशहित के लिए बलिदान देने की तैयारी रखना’, यह पूजनीय सरसंघचालक का आदेश था। ‘चाहे अपने प्राण भी क्यों न चले जायें, लेकिन देश का दूसरा बँटवारा न होने देना’, यह संघ का आदेश स्वयंसेवकों के लिए पर्याप्त था। इसी कारण, कट्टरपंथियों की प्रबलता रहनेवाले इलाकों में भी बड़े साहस के साथ संघ की शाखाएँ लगती थीं। सिख बंधु भी इस शाखा में आएँ इसके लिए प्रयास करें, ऐसी सूचना स्वयंसेवकों को संघ द्वारा दी जा रही थी। उसे प्रतिसाद भी मिलने लगा था। इससे कट्टरपंथी बेचैन हो उठे थे। संघ को सबक सिखाने के लिए उन्होंने ‘मोगा’ में जारी शाखा पर भयानक हमला किया।

२५ जून १९८९ को हुए इस हमले में २५ लोगों की मौत हो गयी। इस हमले में ज़़ख्मी हुए लोगों की संख्या भी बड़ी थी। यह हमला विचलित कर देनेवाला था। उस हमले की प्रतिक्रिया नहीं उठनी चाहिए, ऐसे आदेश संघ द्वारा दिये गए। इतना भयानक हमला होने के दूसरे ही दिन उसी स्थान पर संघ की शाखा लगी। स्वयंसेवकों का धैर्य कितनी उच्च कोटि का होता है, इसकी यह जीतिजागती मिसाल है। स्वयंसेवकों के इस मनोबल का पंजाब की जनता पर भी बहुत बड़ा सकारात्मक असर हुआ।

पंजाब की जनता आतंकवादियों के खिलाफ़ खुलेआम आवाज़ उठाने लगी। जनता से विरोध शुरू होने के बाद पंजाब में आतंकवादियों की गतिविधियाँ ठंडी पड़ गयीं। यहाँ पर एक बाद कहना चाहता हूँ। इन अलगाववादियों को पाकिस्तान द्वारा उक़साया जा रहा था। खलिस्तानी कट्टरपंथियों में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से आये ‘आयआसआय’ के एजंट भी थे। कुछ समय बाद ये सारीं बातें दुनिया के सामने आयीं। लेकिन तब तक हज़ारों बेगुनाहों को अपनी जानें गँवानी पड़ी थीं। पाकिस्तान कभी भी भारत का मित्र नहीं था और आगे चलकर भी ना कभी होगा, यह बात इससे और एक बार सिद्ध हुई।

पाकिस्तान की साज़िश ध्यान में आ जाने के बाद, खलिस्तान की माँग करनेवाले राहभटकों के भी होश ठिकाने आ गए। भारत से अलग होकर हमारा कोई भविष्य नहीं है, इसका एहसास कट्टरपंथियों से जा मिले युवाओं को भी हो गया। इसका असर दिखायी देने लगा और धीरे धीरे अलगाववादियों का, कट्टरपंथियों का प्रभाव कम होता गया। पंजाब में शांति बसने लगी। नब्बे के दशक में पंजाब पूर्ववत् हो चुका था।

संघ पूर्व और पश्‍चिम, उत्तर और दक्षिण क्षेत्र में कार्यरत है, इसीलिए देश पर आनेवाले संकट का एहसास संघ को सबसे पहले हो जाता है। देश पर आये संकट का सामना कैसे करना है, यह भी संघ जानता है। उसके लिए संघ अपनी सारी ताकत दाँव पर लगाता है। पंजाब में स्वयंसेवकों द्वारा दिया गया बलिदान और जान की बाज़ी लगाकर किया गया कार्य इसी ओर निर्देश करता है। संघ के स्वयंसेवक राष्ट्र के लिए अपना जीवन समर्पित करने के लिए तैयार रहते हैं, यह समय समय पर सिद्ध हो चुका है। इसीलिए, अपने विरोध में जारी रहनेवाले अपप्रचार को प्रत्युत्तर देने की ज़रूरत ही संघ को महसूस नहीं होती।

पूजनीय सरसंघचालक की ओर से स्वयंसेवकों को हमेशा ही एक संदेश प्राप्त हुआ है – ‘तुम्हारे विरोधक तुम्हारे बारे में क्या कहते हैं, इसका विचार मत करना। अपने ध्येय पर दृष्टि केंद्रित कर कार्य करते रहो। हमें हमारे राष्ट्र को परमवैभव प्राप्त करा देना है। उसके लिए हमेशा सच्ची लगन से कार्य करते रहो।’ इस संदेश के कारण ही स्वयंसेवक कभी भी विचलित नहीं होता। अब तक शायद किसी को भी नसीब न हुई हों, इतनी मात्रा में आलोचना सहन करते हुए संघ का विस्तार होते चला जा रहा है, उसके पीछे स्वयंसेवकों की यह अविचल निष्ठा है।

राष्ट्र की एकता के लिए संघ के प्रचारक विभिन्न प्रांतों में जाते हैं। संघ द्वारा ज़िम्मेदारी सौपी गयी कि उत्तर प्रांतों के प्रचारक दक्षिणी प्रांतों में जाकर कार्य करने लगते हैं। दक्षिणी प्रांतों के प्रचारक देश के पूर्वी प्रांतों में कार्यरत रहते हैं। यह कार्य करते समय, वे उसी प्रांत के ही बन जाते हैं। क्योंकि संघ के लिए ‘देश का हर एक प्रांत ‘हमारा ही’ है और इस देश की हर एक भाषा ‘हमारी ही’ है’। अर्थात् ‘अनेकता में एकता हिंदुओं की विशेषता’।

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