हृदय व रक्ताभिसरण संस्था – ०६

शरीर के रक्ताभिसरण में हृदय की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। हमारा हृदय हमारी छाती के पिंजरे में होता है, यह हम जानते ही हैं। छाती के पिंजरे की अस्थियों के बारे में हमने इससे पहले देखा है।  हमने देखा हैं कि यह पिंजरा ऊपर व नीचे दोनों ओर खुला होता है। इसका ऊपरी खुला हुआ भाग नीचे के भाग की तुलना में संकरा होता है। इसे छाती का प्रवेशद्वार कहते हैं। इससे कुछ चीजें छाती में प्रवेश करती हैं, तो कुछ चीजे छाती के बाहर जाती हैं। हम इस प्रवेशद्वार की सीमाओं पर प्रकाश  ड़ालते हैं। पीछे की ओर छाती का पहला मणका तथा सामने की ओर मॅन्युब्रिअम स्टर्नी की ऊपरी कड़ी होती है। दोनों ओर से दोनों बगलों की पहली पसलियाँ होती हैं। इस प्रवेशद्वार के मुख्य अवयवों के नामों का हम अध्ययन करेंगें। इसके मध्यभाग में सामने की श्‍वसन नलिका तथा पीछे की ओर अन्ननलिका होती हैं। इसके दोनों बगलों में फेफड़ों के ऊपरी सिरें व उसके ऊपर आवरण होता है। इसके अगल-बगल अनेक रक्तवाहिनियाँ, चेतातंतु होते हैं।

श्‍वसन नलिकाछाती के नीचे के भाग का मुख, जिसे आऊटलेट कहते हैं, ज्यादा चौड़ा होता है। इसमें पीछे और नीचे की ओर ढ़ालान होती हैं। इसके फलस्वरूप छाती के पिंजरे की लम्बाई पीछी की ओर ज्यादा  होती हैं। पीछे की तरफ छाती का बारहवाँ मणका, दोनों बगलों में ग्याहरवी व बाराहवी पसलियाँ, सामने की ओर सातवी से दसवी पसलियाँ, इसकी सीमा होती हैं। पेट व छाती के बीच में जो द्विभाजक परदा होता है, वो इस आऊटलेट को बंद करता है। मध्यभाग में यह परदा थोड़ा समतल होता है व दोनों ओर उभरा होता है। दाहिनी ओर का उभार बाँयी ओर के ऊभार की अपेक्षा ज्यादा होता है। इस परदे के सामने की ओर के स्नायुतंतु मोटे होते हैं, दाहिनी व बांयी ओर के थोड़े लम्बे तथा पीछे की ओर के स्नायुतंतु सबसे लंबे होते हैं।

हमारी छाती के खाली स्थान के दो मुख्य भाग होते हैं। दांया और बांया। मध्यभाग में ये दोनों भाग एक-दूसरे से अलग होते हैं। इस बीच के भाग को मिडिआस्टायनम कहते हैं। ऊपरी तौर पर इसको दो भागों में बांटा जाता है- ऊपरी व निचला भाग। इसके निचले भाग के मध्यभाग में हृदय व हृदय में आनेवाली व बाहर निकलने वाली रक्तवाहिनियाँ होती हैं। इन सब के ऊपर पेशियों से बना हुआ परदे का आवरण होता है। इस आवरण को पेरिकार्डिअम कहते हैं। हम इस पेरिकार्डियम के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करेंगे।

पेरिकार्डिअम : पेरिकार्डिअम के आवरण में हृदय व बड़ी धमनियों का हृदय के पास का भाग होता है।  पेरिकार्डिअम के दो भाग होते हैं – फायबरस और सिरोसल।

फायबरस पेरिकार्डिअम : यह कोलॅजेन तंतुओं से बना होता है। यह आवरण काफी मजबूत होता है। संपूर्ण हृदय पर इसका आवरण होता है। परन्तु यह कहीं पर भी हृदय से जुड़ा नहीं होता। इसका बाहरी भाग छाती का पिंजरा व छाती के विविध अवयवों के संपर्क में रहता है। इसके अंदरूनी भाग में सिरोसल पेरिकार्डिअम होता है। सुपिरिअर वेनाकॅवा, फेफड़ों की दोनों आरटरीज व चार वेन्स पर इस पेरिकार्डिअम का आवरण होता है। परन्तु इनफिरिअर वेनाकॅवा इस आवरण के बाहर होता है।

सिरोसल पेटिकार्डिअम :

पतले कोलजॅन तंतुओं पर समतल कोशिकाओं का स्तर होता है। यह इस आवरण की रचना होती है। इस आवरण के दो भाग होते हैं। अंदरूनी यानी हृदय के पास का भाग जिसे विसरल पेटिकार्डिअम कहते हैं। बाहरी यानी फायबरस पेटिकार्डिअम के ओर के भाग को परायटल पेरिकार्डिअम कहते हैं। अंदरूनी विसरल पेटिकार्डिअम संपूर्ण हृदय से पक्का जुड़ा हुआ होता है। इसीलिये इसे एपिकार्डिअम भी कहते हैं। परायटल भाग फायबरस पेरिकार्डिअम से जुड़ा होता है। विसरल व परायटल पेरिकार्डिअम आवरण एक-दूसरे से अलग होते हैं। इसमें छोटी संकरी थैली होती है। इसे पेरिकार्डिअल थैली कहते हैं। इस थैली में द्राव होता है। इस द्राव को पेरिकार्डिअल द्राव कहते हैं। इस पेरिकार्डिअल थैली के कारण हृदय छाती के अन्य अवयवों से पूरी तरह अलग रखा जाता है। इसके कारण उसके कार्य सुलभ हो जाते हैं। परन्तु बड़ी धमनियों पर ये आवरण एकत्रित आ जाते हैं। यहाँ पर यह थैली समाप्त हो जाती है।

कुछ बीमारियों में इस पेरिकार्डिअल थैली के द्राव की मात्रा बढ़ जाती है। इसे पेरिकार्डिअल एफ्युजन कहते हैं। यह पेरिकार्डिअल द्राव सुई व सिरिंज की सहायता से बाहर निकाला जा सकता है। इस द्राव के ज्यादा मात्रा में भर जाने पर हृदय पर दाब बढ़ जाता है। ऐसी परिस्थिति में सुई की सहायता से इस द्राव को बाहर निकालकर हृदय पर पड़नेवाले दबाव को कम किया जा सकता है। साथ ही इस द्राव की प्रयोगशाला में जाँच करके बीमारी का भी पता लगाया जा सकता है।

(क्रमश:)

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