हृदय व रक्ताभिसरण संस्था – ३८

मायोकार्डिअल इनफार्कशन या हार्ट अटॅक एक गंभीर बीमारी है। इसकी गंभीरता सर्वविदित है। बहुधा इस बीमारी की मृत्यु हो जाती है। कौन सी घटना प्राणघातक साबित होती है, अब हम उसका अध्ययन करेंगे।

१) कार्डिआक आऊटपुट का कम होना :-
हृदय के स्नायु इनफार्कटेड होते हैं। वे या तो अकार्यक्षम हो जाते हैं अथवा मृत हो जाते हैं। फलस्वरूप हृदय की पंपिंग शक्ती कम हो जाती है। उसके अलावा जो स्नायु इनफार्कटेड होते हैं, वेंट्रिकल का उतना भाग कमजोर हो जाता है। वेंट्रिकल के आकुंचन के दौरान (सिस्टोल) कमजोर होने के कारण ये स्नायु बाहर की ओर ढ़केले जाते हैं। इसे सिस्टोलिक स्ट्रेच कहा जाता है। इसके कारण हृदय के आकुंचन की काफ़ी शक्ती व्यर्थ हो जाती है। फलस्वरूप कार्डिआक आऊटपुट काफी कम हो जाता है। शरीर की पेशियों को कार्यरत रखने के लिये कम से कम जितनी रक्त की आपूर्ति आवश्यक होती है उतनी भी नहीं होती। जिसके कारण शरीर की पेशियां अकार्यक्षम हो जाती है या मृत हो जाती है। इस स्थिती को करोनरी अथवा कार्डिआक शॉक कहते हैं। वेंट्रिकल (बायीं) के ४० प्रतिशत से ज्यादा भाग में इनफार्कशन फैल जाने पर कार्डिआक शॉक लगता है। कार्डिआक शॉक लगे हुये व्यक्तियों में से ८५% मर जाते हैं।

२) शरीर की वेन्स में रक्त का जमा होना :-
बीमार हृदय आवश्यक मात्रा में रक्त बाहर नहीं निकल सकता। यह रक्त हृदय के एट्रिअम व शरीर की तथा फेफड़ों की वेन्स में जमा हो जाता है जिससे दोनों एट्रिआओं में दाब बढ़ जाता है तथा छोटी रक्तवाहिनियों में दाब बढ़ जाता है। फेफडों की छोटी रक्तवाहनियों में यह क्रिया ज्यादा मात्रा में होती है। प्रारंभ के दो-तीन दिनों में इसके कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देते। इस दौरान कार्डिआक आऊटपुट कम ही होता है। मूत्रपिंडों में रक्त-आपूर्ति कम हो जाती है और प्रतिदिन मूत्र की मात्रा में कमी आ जाती हैं। पेशाब की मात्रा कम हो जाने के कारण शरीर में पानी जमा हो जाता हैं। रक्त की मात्रा (वॉल्युम) बढ़ जाता है। फेफडे में पानी भर जाता है। इसे फेफडों की इंडिमा अथवा सूजन कहते हैं। प्रारंभ के कुछ दिनों तक अच्छा दिखायी देनेवाला रुग्ण अचानक अत्यव्यस्थ होता है और कुछ ही घंटों में मृत्युमुखी होता है।

मायोकार्डिअल इनफार्कशन

३) वेंट्रिकल्स का फिब्रिलेशन :-
हृदय के स्नायुओं के आकुंचनों का वेग यानी रेट बढ़ जाता है, परन्तु आकुंचन की अथवा पंपिंग की शक्ती कम हो जाती है। इस स्थिती को फिब्रिलेशन कहते हैं। इस परिस्थिती में हृदय की स्पंदन प्रति मिनट १५०-२०० अथवा उससे भी ज्यादा हो सकता है। बड़ी मात्रा में इनफारक्ट तैयार हो जाने के बाद फिब्रिलेशन निर्माण होने की संभावना बढ़ जाती है। परन्तु कम इनफारक्ट में भी फिब्रिलेशन बन सकता है। इसके अलावा करोनरी रक्त की आपूर्ति कम हो जाने से बिना इनफार्कशन के ही अचानक फिब्र्रिलेशन होने से व्यक्ति की मृत्यु हो सकती हैं।

हार्ट अटॅक आये हुए व्यक्ति में दो बार फिब्रिलेशन होने की संभावना होती है। पहला धोखा अटॅक आने के दस मिनटों में होने की संभावना रहती है। इसके बाद कुछ समय सुरक्षित निकल जाता है। अटॅक आने के एक घंटे तक यह धोखा बरकरार रहता है। अटॅक आने के कुछ दिनों के बाद फिब्रिलेशन तैयार हो सकता है। परन्तु ऐसा कभी-कभी ही होता है।

४) इनफारक्ट हुये स्थान पर हृदय का फटना :-
अटॅक आने के पहले दिन तो इसका धोखा नहीं होता। बाद में आकुंचन के दौरान ये मृत स्नायु ताने जाते हैं और धीरे-धीरे पतले हो जाते हैं। पतले हो चुके ऐसे स्नायु कभी भी फट सकते हैं। स्नायुओं के फटने के बाद हृदय का रक्त हृदय के बाहर पेरिकार्डिअल पोकली (रिक्तस्थान) में जमा हो जाता है। इसका दाब हृदय के सभी भागों पर पड़ता है। इस दाब के कारण वेन्स का रक्त एट्रिया में नहीं आता। कार्डिआक आऊटपुट कम हो जाता है व व्यक्ति की मौत हो जाती है।

हार्ट अटॅक आ जाने के बाद व्यक्ति के हृदय में सुधार कैसे होता है, अब हम उसकी जानकारी प्राप्त करेंगे। हृदय के जिस भाग में रक्त की आपूर्ति खंडित हो जाती है उस भाग के स्नायु प्रारंभ में अकार्यक्षम हो जाते हैं। इनमें से मध्यभाग के स्नायु मर जाते हैं। बाहरी स्नायु कुछ समय तक अकार्यक्षम रहते हैं। कोलॅटरल रक्तवाहनियों के कार्यरत हो जाने के बाद इन स्नायुओं में होने वाली रक्त-आपूर्ति में धीरे-धीरे सुधार होने लगता है। फलस्वरूप कभी-कभी स्नायु पूरीतरह कार्यरत हो जाते हैं। कभी-कभी बाहरी भाग के कुछ स्नायु भी मर जाते हैं। मृत स्नायुओं का स्थान धीरे-धीरे फायबरस पेशियां लेती हैं। मृत हुये स्नायुओं का रिक्तस्थान भरने के लिए हृदय के अन्य स्नायुओं की हैपरट्रॉकी (स्नायुओं का मजबूत होना) होती हैं और हृदय में लगभग पहलीवाली क्षमता आ जाती है।

हार्टअटॅक में तथा बाद में सुधार के समय में बीमार का शारीरिक व मानसिक आराम (rest) अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है। बीमार हृदय की पंपिंग की शक्ती कम होती है। किसी भी प्रकार का तनाव हृदय पर काम बोझ बढ़ाता है। बीमार हृदय के लिये इस बढ़े हुए बोझ को झेलना संभव नहीं होता। साथ ही सातह इस दरम्यान पर्यायी रक्तवाहनियों में रक्त-प्रवाह शुरु हो जाता है। यदि हृदय पर काम का बोझ बढ़ता है तो हृदय के मार्फत स्नायु यह बोझा उ़ठा लेते हैं। इस नॉर्मल स्नायुओं की रक्त की आवश्यकता बढ़ जाती है। ऐसी स्थिती में मुख्य करोनरी रक्तवाहनियों से आनेवाला रक्त पूर्णरूपेण इन नॉर्मल स्नायुओं को पहुँचाया जाता है व पर्यायी रक्तवाहनियों में जानेवाला रक्त कम हो जाता है। फलस्वरूप बीमार अथवा इनफारक्टेड स्नायुओं में रक्त की आपूर्ति और भी कम हो जाती है और उनको ज्यादा नुकसान होता है जिससे बीमारी और भी गंभीर हो जाती है। इसीलिये रिकनरी के दौरान ऐसे मरीजों को संपूर्ण शारिरीक व मानसिक आराम देना आवश्यक होता है।

बड़ा हार्ट अटॅक आने के बाद हृदय की पंपिंग क्षमता हमेशा-हमेशा के लिये कम हो जाती है। परन्तु हृदय के कार्य पूर्ववत चल सकते हैं। इसका कारण यह है कि नॉर्मल हृदय की कार्डिआक आऊटपुट ३०० से ४०० गुना बढ़ सकती हैं। इसे आर्डिआक रिझर्व कहा जाता है। बीमारी के बाद हृदय की क्षमता यदि १०० गुना तक हो गयी तो वो व्यक्ति आराम व शांतीपूर्वक नॉर्मल जीवन व्यतीत कर सकता है। परन्तु ऐसे व्यक्ति के लिये किसी भी प्रकार का शारिरीक तनाव धोखादायक साबित होता है।

अंजायना पेक्टोरिस :
हृदय विकारवाले व्यक्ति की छाती में दर्द होने लगता है और आराम करने पर दर्द बंद हो जाता है। इसे अंजायना अथवा अंजायनाल पेन (pain) कहते हैं। इश्‍चिमिक हृदयविकारवाले व्यक्ति पर शारिरीक व मानसिक तनाव पड़ने पर – सिंपथेटिक संदेश बढ़ जाते हैं। फलस्वरूप करोनरी रक्तवाहनियां आकुंचित होती है व हृदय की रक्त आपूर्ति कम हो जाती है। इस अस्थायी इश्‍चिमिक स्थिती में हृदय के स्नायुओं से लॅक्टीक आम्ल, हिस्टामिन जैसे रासायनिक घटक स्त्रवित होते हैं। इन घटकों की बढ़ी हुयी मात्रा के कारण वेदना वहन करनेवाले चेतातंतु कार्यरत हो जाते हैं व हमें पेन या दर्द महसूस होता है। यह दर्द साधारणत: छाती की बीच की हड्डी के नीचे होता है। परन्तु यह दर्द बायें कंधे, दाहिने हाथ, गर्दन व कभी-कभी दाहिने कंधे पर भी महसूस होता है। इसे रेफर्ड पेन कहते हैं। इसका कारण यह है कि गर्भावस्था में हृदय व दोनों हाथ, गर्भ की गर्दन से बनते हैं। फलस्वरूप मज्जारज्जू के एक ही भाग से इन सभी अवयवों को चेतातंतू की आपूर्ति होती हैं।

अंजायना की वेदना कुछ ही मिनट में कम होती है। इनके उपचार हम आगे कभी देखेंगे।

(क्रमश:)

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