रक्त एवं रक्तघटक – ४१

आज हम अपने रक्त की सफ़ेद पेशियों के बारे में यानी Leucocytes के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगें। रक्त की सफ़ेद पेशियों को उनके आकार, केन्द्रक का आकार व पेशीद्राव में उपस्थित घटकों के आधार पर पाँच भागों में बांटा गया है। इन में से तीन प्रकार की पेशियों में रसायनों के कारण एक निश्‍चित रंग धारण करनेवाले कण होते हैं। ऐसी पेशियों को ग्रॅन्युलोसाइटस् कहते हैं। शेष दो प्रकार के पेशियों को अग्रॅन्युलोसाइटस् कहते हैं। अब हम सर्वप्रथम ग्रॅन्युलोसाइटस् की जानकारी प्राप्त करेंगे।

रक्त

ग्रॅन्युलोसाइटस् :
इन में तीन प्रकार की पेशिया होती हैं, जैसा कि ऊपर बताया गया है। इन पेशियों के कण जिन रसायनों के कारण स्पष्ट अथवा चटक रंग धारण करते हैं उन्हीं के आधार पर उनको नाम दिया जाता है। इओसिन नामक रसायन के फ़लस्वरूप जिस पेशी के कण चटक रंग में रंगते हैं, उन्हें इओसिनोफ़िल पेशी कहते हैं। जिस पेशी के कण मिथिलिन ब्लू नामक रसायन के कारण रंगते हैं उन्हें बेसोफ़िल पेशी कहते हैं। तीसरी प्रकार की पेशी के कण उपरोक्त दोनों रसायनों के कारण ङ्गीके रंग में रंगते हैं। इन पेशियों को न्युट्रोफ़िल्स कहते हैं।

१) न्युट्रोफ़िल पेशी :
सभी सफ़ेद पेशियों में से इस पेशी की मात्रा रक्त में ज्यादा होती है। प्रौढ़ व्यक्तियों में ६० से ७० प्रतिशत सफ़ेद पेशियां न्युट्रोफ़िल पेशी होती हैं। इनका व्यास साधारणत: १० मायक्रोमिलिमीटर होता है तथा ये गोलाकार होती है। यह पेशियां शरीर की प्रतिकार शक्ती की महत्वपूर्ण घटक हैं। शरीर में प्रवेश करनेवाले जीवाणुओं के ये पेशियां सर्वप्रथम अपने आप में समाविष्ट कर लेती हैं, स्वयं खा जाती हैं ऐसा कहने में हर्ज नहीं हैं। पेशे के ग्रॅन्युल्स अथवा कण फ़िर इन जीवाणुओं को नष्ट करते हैं। ये पेशियां यह कार्य रक्त में रहते हुए तो करती ही हैं परन्तु यदि आवश्यकता पड़ जाये तो रक्त के बाहर जाकर अन्य पेशी समूहों के जीवाणुओं को भी नष्ट करती हैं। शरीर की आवश्यकता के अनुसार रक्त में इनकी मात्रा कम-ज्यादा होती रहती हैं। जीवाणुओं के कारण रक्त बाधित हुआ तो पेशीयों का प्रमाण जलद गती से बढ़ता है।

२) इओसिनोफ़िल पेशी :
आकार, आकारमान इत्यादि के बारे में ये न्युट्रोफ़िल पेशियों की तरह ही दिखायी देती है। परन्तु रक्त में इनकी मात्रा काङ्गी कम होती है। अन्य सफ़ेद पेशियों की तरह ही ये पेशियां भी रक्त के बाहर पेशीबाह्य द्राव में दिखायी देती हैं। त्वचा के नीचे, श्‍वासनलिका में, आँतों, गर्भाशय, योनि और थायमस ग्रंथी में इओसिनफ़िल पेशियां दिखायी देती हैं। इनकी उम्र थोड़े ही दिनों की होती हैं। इस में ३० घंटों तक ये पेशियां रक्त में रहती हैं और शेष समय तक पेशीबाह्य द्राव में रहती हैं। किसी भी प्रकार की ‘अ‍ॅलर्जी’ में इनकी मात्रा बढ़ जाती है। शरीर की प्रतिकार शक्ति में भी ये पेशियां भाग लेती हैं।

३) बेसोफ़िल पेशी :
रक्त में इनकी मात्रा का़फ़ी कम होती है। (०.५ से percentage)। इनका व्यास १० से १५ मायक्रोमिलिमीटर होता है। इनकी उम्र लम्बी होती है। रक्त में उनको विशिष्ट कार्य की जानकारी अभी तक ज्ञात नहीं है।

अग्रॅन्युलोसाइट्स :
इस में दो प्रकार की पेशियां पायी जाती हैं। इन्हें मोनोसाइटस् व लिम्फ़ोसाइटस् कहते हैं।

१) मोनोसाइटस् :
ये उपरोक्त दो प्रकार की पेशियों में सबसे बड़ी होती हैं। इनका व्यास १० से १५ मायक्रोमिलिमीटर होता है। कुल सफ़ेद पेशियों में इनकी मात्रा २ से ८ प्रतिशत होती हैं।

२) लिम्फ़ोसाइटस् :
रक्त में न्युट्रोफ़िल्स की संख्या के बाद इनकी संख्या होती है। इनकी मात्रा २० से ३० प्रतिशत होती है। ये पेशियां रक्त के साथ-साथ लिम्फ़ में भी बड़ी मात्रा में होती हैं। रक्त में दो प्रकार की लिम्फ़ोसाइटस् पायी जाती हैं। उनके आकार के आधार पर उन्हें छोटी व बड़ी लिम्फ़ोसाइटस् कहते हैं। इन में से छोटी लिम्फ़ोसाइटस् की मात्रा ज्यादा होती है। रक्त के सभी लिम्फ़ोसाइटस् दो प्रकार के यानी ‘B’ और ‘T’ प्रकार के होते हैं। ये पेशियां शरीर की इम्यून संस्था की महत्वपूर्ण घटक पेशियां हैं। इनकी आयु कुछ दिनों से लेकर कुछ वर्षों की होती हैं।

रक्त की तीसरी पेशी यानी प्लॅटलेट्स। इन्हें थ्रोंबोसाइट्स भी कहते हैं। ये पेशियां अत्यंत छोटी होती हैं (व्यास २-४ मायक्रोमिलिमीटर) । रक्त में इनकी संख्या काफ़ी होती है। एक मिलिलीटर रक्त में इनकी संख्या ढ़ाई से पाँच लाख तक होती है।

प्लॅटलेट्स रक्तस्राव को रोकने में महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। किसी भी प्रकार का जख्म होने पर वहाँ की रक्तवाहिनी को धक्का लगता है। जहाँ पर रक्तवाहिनी फ़टती है उसे स्थान पर ये पेशियां जमा हो जाती है। वे एक-दूसरे से चिपककर गोला बना लेती हैं। यह गोला रक्तवाहिनी में आयी दरार या छेद को बंद कर देता हैं व रक्तस्राव रोक देता है। बाद में शरीर के अन्य घटक इस घाव को भरने का काम करते हैं। इस कार्य के पूरा हो जाने पर प्लेटलेट का यह गोला वहाँ से नष्ट कर दिया जाता है।

इस के अलावा शरीर के अन्य कुछ कार्यों में भी ये पेशियां भाग लेती हैं। परन्तु उनमें उनकी विशिष्ठ भूमिका अभी तक निश्‍चित नहीं हो पायी हैं।

अब तक हम ने रक्तपेशियों की संक्षिप्त जानकारी प्राप्त की। रक्त से संबंधित अन्य बातों का अध्ययन अगले लेख में करेंगें।

(क्रमश:)

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