ठीक दो साल बाद बायडेन प्रशासन ने भारत के लिए राजदूत नियुक्त किया

वॉशिंग्टन – एरिक गार्सेटी ने भारत के लिए अमरिकी राजदूत के पद की शपथ ग्रहण की। इस दौरान अमरीका की उप-राष्ट्राध्यक्ष कमला हैरिस मौजूद थीं। अमरीका में नियुक्त भारत के राजदूत तरनजीत सिंह संधू ने गार्सेटी से मुलाकात भी की है। पिछले दो सालों से अमरीका ने भारत में अपना राजदूत नियुक्त नहीं किया था। अमरीका के बायडेन प्रशासन ने जानबूझकर यह नियुक्ति नहीं की थी, ऐसा आरोप लगाकर कुछ भारतीय कूटनीतिज्ञों ने यह भारत विरोधी राजनीति का हिस्सा होने का आरोप लगाया था। इस पृष्ठभूमि पर अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष बायडेन के करीबी माने जाने वाले एरिक गार्सेटी को भारत में राजदूत के पद पर नियुक्त करना ध्यान आकर्षित करता है। 

भारत के लिए राजदूतकुछ दिन पहले अमरिकी संसद में एरिक गार्सेटी की सुनवाई हुई थी। तब गार्सेटी ने भारत को लेकर किए बयानों को माध्यमों ने बड़ी अहमियत दी थी। अमरिकी राजदूत के तौर पर मानव अधिकारों के मुद्दे पर हम भारत पर दबाव डालेंगे, ऐसे स्पष्ट संकेत गार्सेटी ने उस सुनवाई के दौरान दिए थे। इसके साथ ही भारत में ‘सिविल सोसायटी’ यानी नागरी अधिकारों के लिए लड़नेवालों को अधिक बल मुहैया कराना हमारे कर्तव्य का हिस्सा होगा, यह दावा गार्सेटी ने किया था। इसे भारतीय माध्यमों ने विशेष अहमियत दी थी। अमरिकी राजदूत के पद पर गार्सेटी भारत पर दबाव डालने का काम करेंगे। अभी से उन्होंने इसका ऐलान किया है, यह कहकर एक समाचार चैनल ने आयोजित किए समारोह में विदेश मंत्री जयशंकर को इस पर सवाल पूछा गया था।

इसके जवाब में विदेश मंत्री जयशंकर ने बड़ी सहज़ता से कहा कि, ‘एरिक गार्सेटी को हम बड़े प्रेम से सब कुछ समझाएंगे।’ इसकी वजह से गार्सेटी के राजदूत पद के कार्यकाल में भारत और अमरीका के राजनीतिक संबंध कैसे रहेंगे, इसकी झलक अभी से दिखाई दे रही है। मानव अधिकार एवं धार्मिक स्वतंत्रता एवं अल्पसंख्यांकों का मुद्दा उठाकर अमरीका यकीनन राजदूत गार्सेटी के ज़रिये भारत पर दबाव डालेगी, यह स्पष्ट दिखाई देने लगा है। लेकिन, उनके इन कोशिशों को कामयाब नहीं होने देंगे, ऐसा विदेश मंत्री जयशंकर के बयान से स्पष्ट हो रहा है।

इसी बीच, अमरीका ने हमेशा भारत पर दबाव डालने के लिए मानव अधिकार, कश्मीर समेत अन्य मुद्दों को मोहरा बनाया था। साथ ही चीन और पाकिस्तान जैसे भारत के पड़ोसी देशों में मानव अधिकार खुलेआम कुचला जा रहे है, इस पर अमरीका अधिक ध्यान देना नहीं चाहती। बल्कि, अमरीका को भारत के लोकतंत्र की अधिक चिंता है और महज़ नाम के लिए बची और लोकतंत्र का अंश भी न होनेवाले चीन पर दबाव डालने के कष्ट अमरीका ने नहीं उठाए। इसका दाखिला देते हुए भारत के प्रति अमरीका की नीति दोगले रवैये की है, इस मुद्दे पर कूटनीतिज्ञ बार-बार ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। साथ ही आपत्ति जताने जैसी कई घटनाएं अमरीका में हो रही हैं, ऐसी चेतावनी भी भारतीय विश्लेषकों ने दी थी।

बायडेन प्रशासन ने भारत के साथ सहयोग के चाहे कितने भी बड़े ऐलान करे, फिर भी इस प्रशासन की भारत विरोधी नीति पहले भी स्पष्ट हुई थी। भारत हमारे लिए काफी अमह है और इसका स्थान दूसरा कोई देश नहीं ले सकता, ऐसा भागीदार देश है, ऐसे बयान अमरिकी नेता, राजनीतिज्ञ एवं सैन्य अधिकारी लगातार कर रहे हैं। लेकिन, इतने अहम देश में हमने पिछले दो सालों से राजदूत नियुक्त क्यों नहीं किया, इसका जवाब बायडेन प्रशासन के पास नहीं है। इस पृष्ठभूमि पर राष्ट्राध्यक्ष बायडेन ने नियुक्त किए अमरीका के नए राजदूत गार्सेटी भारत पर राजनीतिक दबाव डालने की नई कोशिश करेंगे, यह स्पष्ट दिखने लगा है।

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