भावनगर

बचपन में नानीजी से जितनी कहानियाँ सुनी थी, उनकी शुरुआत एक राज्य था और उस राज्य का एक राजा था, इस तरह होती थी। नानीजी की इन कहानियों के कारण राजा और उसका राज्य इन संकल्पनाओं के बारे में मन में उत्सुकता की भावना थी। फिर बढ़ती हुई उम्र के साथ समझ में आ गया कि अतीत में हमारे भारत में इस तरह के कई राज्य और उनके राजा विद्यमान थे। दर असल आज हम भारत के जिन अनेक शहरों को देखते है, उन शहरों का उदय ही राजाओं के राज्य के रूप में हुआ था। इन राज्यों में से कुछ राज्य काल के प्रवाह में डूब गये, वहीं कुछ राज्य इतने विकसीत हो गये कि आज उन्हें शहरों का स्वरूप प्राप्त हो चुका है। ‘भावनगर’ यह एक ऐसा ही शहर है, जो अतीत में एक राजा का राज्य था।

Bhavnagar

भावनगर की स्थापना करनेवाले ‘भावसिंहजी गोहिल’ के नाम से ही इस शहर का नाम भावनगर हुआ। समुद्री तट पर बसा हुआ यह गुजरात राज्य का एक शहर है। गुजरात के जिस प्रदेश में भावनगर बसा है, उस प्रदेश को ‘सौराष्ट्र’ और ‘काठियावाड’ भी कहा जाता है।

अतीत में हमारे भारतवर्ष के कई राजाओं के पास दूरदृष्टी थी। इसीलिए अपने राज्य की राजधानी की स्थापना करते समय वे सुरक्षा, व्यापार तथा भौगोलिकता जैसे कई पहलुओं के बारे में सोचते थे और उसके बाद ही विचारपूर्वक अपनी राजधानी की स्थापना करते थे।

आज का भावनगर शहर यह पुराने समय के भावनगर राज्य की राजधानी है और साथ ही वह उस समय का एक महत्त्वपूर्ण बंदरगाह भी था। इस भावनगर बन्दरगाह में से लगभग २ शतकों(२०० वर्षो) तक अफ्रीका, सिंगापूर,झांजिबार, मोझांबिक और पर्शियन आखात के साथ व्यापार होता रहा।

भावनगर का इतिहास शुरु होता है, सूर्यवंशीय गोहिल राजपूतों से। ये गोहिल राजपूत पहले मारवाड में बस रहे थें। वहाँ के सत्तासंघर्ष के कारण वे गुजरात के तटीय प्रदेश की ओर स्थलान्तरित हो गये। यह समय साधारणत: इसवी १२६० के आसपास का माना जाता है। फिर उन्होंने सेजाकपूर, उमराळा और सिहोर इन तीन स्थानों पर अपनी राजधानीयाँ स्थापित की। इनमें से सिहोर पर इसवी १८२२ -२३ के दौरान आक्रमण किया गया। इस आक्रमण में हो चुके नुकसान के कारण वहाँ के शासकों को उस स्थान की भौगोलिक दुर्बलता का एहसास हो गया और उस समय के शासक ‘भावसिंहजी गोहिल’ ने नयी राजधानी की स्थापना की। यह नयी राजधानी ‘वडवा’ नामक गाँव के पास, सिहोर से २० कि.मी.की दूरी पर स्थित थी और यह राजधानी थी- ‘भावनगर’।

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राजधानी के तौर पर भावनगर का चयन करते समय वहाँ के शासक ने दो प्रमुख बातों को महत्त्वपूर्ण माना था। उनमें से पहली बात यह थी कि दुश्मन के हमले का आसानी से मुकाबला किया जा सके, इस प्रकार की भौगोलिक परिस्थिति और दूसरी बात थी, इस स्थान की समुद्र तट पर बसे होने के कारण व्यापारी बंदरगाह के तौर पर होने वाली उपयुक्तता। स्थापित की गयी इस राजधानी की सुरक्षा के लिए इसके चारों ओर चहारदीवारी का निर्माण किया गया।

यहाँ से होनेवाले व्यापार का, शहर के विकास में काफी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा हैऔर वही से इस छोटे स्थान का विस्तार होने लगा। भावनगर के स्थापनकर्ता ‘भावसिंहजी’ के पोते ने इस राज्य का

काफी विस्तार किया। उन्होंने कई छोटे-ब़़डे गावों, प्रान्तों को अपने राज्य के साथ जो़डकर उसका विस्तार किया। राज्यविस्तार और भावनगर बंदरगाह में से होनेवाला व्यापार इनके कारण इस शहर की काफी तरक्की हुई। अंग्रे़ज़ो के जमाने में भावनगर के वैभव के संदर्भ में अंग्रे़ज़ो के लेखन में उल्लेख प्राप्त होते हैं।

१७ वी सदी के अन्त में भावनगर में एक महत्त्वपूर्ण घटना घटित हुई। आज लोकल ट्रेन यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का एक अविभाज्य अंग बन चुकी है। लेकीन धुआँ छोडते हुई पहली रेलगा़डी जब दौ़ड़ी होगी, उस समय वहाँ पर उपस्थित लोग कितने अचम्भित हो चुके होंगे इस की कल्पना हम कर सकते हैं। आगे चलकर यह रेल हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बननेवाली है, इस बात की कल्पना उस समय किसीने भी नहीं की होगी। १७ वी सदी के अन्त में इसी प्रकार की रेलगाडी भावनगर में दौड़ी थी। इस रेल की विशेषता यह थी की इसका निर्माण पूरी तरह भावनगर राज्य ने किया था। इस घटना का ज़िक्र सर हंटर ने उनके ‘इम्पिरियल गॅझेट’ इस प्रकाशन में किया था।

रेल के साथ साथ डाक (पोस्ट) एवं तार (टेलिग्राम) सेवा का भी आरंभ हुआ। बंदरगाह का नूतनीकरण किया गया, साथ ही कई नयी योजनाओं की भी शुरुआत हुई और अंग्ऱज़ों ने इन बातों पर ग़ौर करके भावनगर को एक महत्त्वपूर्ण एवं विकसित राज्य का दर्जा दिया।

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अंग्रेजों ने भारत पर कब्जा कर लिया और भावनगर एक रियासत के रूप में क़ायम रहा। इसवी १९४७ में जब भारत आ़ज़ाद हो गया, तब पूरे भारतवर्ष में कई रियासतें और रियासतदार भी थे। इन सभी रियासतों को आ़ज़ाद भारत के लोकतन्त्र में शामिल करने का काम सरदार वल्लभभाई पटेलजी के जिम्मे था। उस समय भारत में लगभग इस प्रकार की ५६५ रियासतें थी, ऐसा कहा जाता है। इन सब रियासतों का विलीनीकरण करना यह एक काफी मुश्किल काम था। इस कार्य में कई दिक्कतें थी। लेकिन भावनगर रियासत के उस समय के शासक कृष्णकुमार सिंहजी ने सबसे पहले अपनी रियासत का शासन भारत सरकार व्दारा नियुक्त किये गये प्रतिनिधि को सौंप दिया। इस तरह आ़ज़ाद भारत में विलीन होने वाली पहली रियासत बनी,‘भावनगर’।

भावनगर यह शहर ‘सौराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी’ के रूप में भी जाना जाता है। गुजराती साहित्यक्षेत्र के कई कवियों और लेखकों का तथा कई कलाकारों का भी इस शहर के साथ क़रीबी रिश्ता है।

भावनगर पर जब राजाओं का शासन था, उस समय इस शहर की सुव्यवस्थित रचना की गयी और उसके अनुसार इस शहर में कुछ वास्तुओं का निर्माण किया गया। ‘बार्टन लायब्ररी’ का निर्माण भी इन्ही वास्तुओं के निर्माण के अंतर्गत किया गया। ‘बार्टन लायब्ररी’ गुजरात की सबसे पुरानी लायब्ररी मानी जाती है। ‘निलमबाग’ यह भी इसी दौरान बनायी गयी वास्तु है। इसकी निर्मिती जर्मन वास्तुशास्त्रज्ञ ने राजप्रासाद (राजमहल) के रूप में की थी।

सौराष्ट्र की इस सांस्कृतिक राजधानी के साथ जु़डा है, एक सन्त का नाम। वहाँ के जन मानस पर इन संतकवि के रचनाओं की गहरी छाप आज भी दिखायी देती है। ‘वैष्णव जन तो नेणे कहिये रे, पी़ड परायी जाने रे॥ इस रचना के कर्ता ‘नरसी मेहताजी’ का नाम सौराष्ट्र की इस भूमि के साथ जु़ड़ा हुआ है।

भावनगर ज़िले का ‘तलज’ यह गाँव नरसी मेहताजी का जन्मस्थल माना जाता है। इस प्रदेश में कृष्ण भक्ति की गरिमा बढ़ानेवाले इन संत की कई रचनाएँ आज भी भजन और भक्तिगीतों के माध्यम से प्रचलित है । परमात्मा ने उनके भक्तों के लिए कई बार कई लीलाएँ कीं । कभी उन्होंने किसी के लिए मैला उठाने का काम किया, कभी किसी के घर पानी भरने का काम किया, कभी किसी के साथ गेहूँ पीसने का काम किया, तो कभी किसीके लिए स्वयं ही जहर पी लिया। इन्हीं नरसी मेहताजी के लिए वे ‘शामळिया सेठ’ यानि की साहूकार बन गयें और उन्होंने नरसी मेहताजी की हुंडी सकरवाई।

‘वैष्णव जन’ इस भजन के साथ साथ एक और महात्मा की याद आती है और उनका नाम है, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधीजी। ऐसा कहा जाता है कि कुछ समय तक महात्मा गाँधीजी ने भावनगर में अध्ययन किया था।

‘सरस्वतीचन्द्र’ नाम के उपन्यास की कथा भावनगर और सिहोर इन स्थानों के साथ जु़ड़ी हुई है। इस उपन्यास के कुछ हिस्से को उपन्यासकार ने उनके भावनगर के वास्तव्य के दौरान लिखा था।

अधिकांश भारत बसा हुआ है, गाँवों-देहातों में। अत एव गाँवों-देहातों की महिलाओं और बच्चों का शिक्षित हो जाना यह भारत के विकास का एक महत्वपूर्ण पडाव है। भावनगर के देहाती इलाक़ो की महिलाओं तथा बच्चों की शिक्षा की दृष्टी से कई कोशिशें की गयी है। इस कार्य के लिए कई सेवाभावी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करके इस उपक्रम को गति दी गयी।

भावनगर यह शहर हिरोंपर प्रक्रिया करनेवाले उद्योगों का आश्रय होनेवाला एक प्रमुख शहर है।

यहाँ की बंदरगाह आज भी सुस्थिति में है। अब बंदरगाह में ब़़ड़े बड़े जहा़ज़ों का होना यह तो स्वाभाविक बात है। लेकिन जब ऐसे बड़े ब़़ड़े जहा़ज़ों की कार्यक्षमता नष्ट हो जाती है, तब उनका क्या किया जाता है? ऐसे बड़े जहा़ज़ों को नष्ट कर देनेवाला दुनिया एक बड़ा ‘शिप ब्रेकिंग यार्ड’ ‘अलंग’ में है और यह ‘अलंग’ भावनगर से लगभग ५० कि.मी. की दूरी पर स्थित है।

नानीजी की कहानी के राजा और उनकी प्रजा हमेशा ही सुखचैन से रहते थे। समय की धारा में नगरी के राजा तो नहीं रहें, लेकिन आज उनकी नगरी शान से खड़ी है, एक शहर के रूप में।

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