‘आयएनएस करंज’ नौसेना में शामिल

मुंबई – स्कॉर्पियन श्रेणी की ‘आयएनएस करंज’ यह अत्याधुनिक पनडुब्बी भारतीय नौसेना में दाखिल हुई है। नौसेना प्रमुख ऍडमिरल करमबिर सिंग ने बुधवार को सुबह एक कार्यक्रम में औपचारिकतापूर्वक ‘आयएनएस करंज’ का स्वीकार किया। नौसेना के बेड़े में आई यह पनडुब्बी, दुश्मन को चकमा देने की क्षमता होनेवाली अत्यंत घातक पनडुब्बी होने के दावे किए जाते हैं। ‘सायलेंट किलर’ ऐसी पहचान होनेवाली इस पनडुब्बी के समावेश से, भारतीय नौसेना का सामर्थ्य भारी मात्रा में बढ़नेवाला है।

ins-karanj-navyसन २०१८ के जनवरी महीने में इस पनडुब्बी का जलावतरण हुआ था। दो सालों के परीक्षणों के बाद ‘आयएनएस करंज’ भारतीय नौसेना में सहभागी हुई है। फ्रान्स के सहयोग से देश में ही बनाईं जानेवालीं स्कॉर्पियन पनडुब्बियों में ‘आयएसएस करंज’ का समावेश किया जाता है। यह सबसे घातक पनडुब्बी होकर, इसपर नज़र रखना दुश्मन की राडार यंत्रणा के लिए बहुत ही मुश्किल साबित होता है। यहाँ तक कि दुश्मन की सागरी सीमा में भी इस पनडुब्बी को ढूँढना दुश्मन के लिए मुश्किल माना जाता है। ये विशेषताएँ ‘आयएनएस करंज’ की मारक क्षमता को भारी मात्रा में बढ़ानेवालीं हैं।

‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ उपक्रम की सफलता को ‘आयएनएस करंज‘ रेखांकित कर रही है, ऐसा बताकर नौसेना प्रमुख करमबिर सिंग ने उसका स्वागत किया। उसी समय, देश की नौसेना के लिए ४० से भी अधिक युद्धपोत और पनडुब्बियों का निर्माण किया जा रहा होने की जानकारी नौसेना प्रमुख ने दी। इनमें से ४० युद्धपोत और पनडुब्बियों का निर्माण देश में ही किया जा रहा है। माझगाव डॉक लिमिटेड इसके लिए बहुत अहम भूमिका निभा रहा है, ऐसा ऍडमिरल करमबिर सिंग ने आगे कहा।

साथ ही, डीआरडीओ ने विकसित किए ‘एआयपी’ तंत्रज्ञान का उल्लेख करके ऍडमिरल करमबिर सिंग ने यकीन दिलाया कि यह तंत्रज्ञान सन २०२३ तक भारतीय पनडुब्बियों पर बिठाया जाएगा। इससे पनडुब्बियों को गहरे सागर में अधिक समय तक रहना संभव होगा, ऐसा दावा नौसेना प्रमुख ने किया। इस पनडुब्बी का स्वीकार करते समय नौसेना प्रमुख करमबिर सिंग के साथ पूर्व नौसेनाप्रमुख व्ही. एस. शेखावत भी उपस्थित थे।

सन १९७१ के भारत पाकिस्तान युद्ध में सहभागी हुई उस समय की ‘आयएनएस करंज’ का नेतृत्त्व शेखावत ने किया था। पहले और दूसरे विश्व युद्ध में पनडुब्बियों का खास सहभाग नहीं था। लेकिन दूसरे महायुद्ध के पश्चात के समय में, इलेक्ट्रॉनिक क्रांती हुई और पनडुब्बियों में बड़े अभियांत्रिकी बदलाव हुए, इस पर शेखावत ने गौर फरमाया। सागरी क्षेत्र से होनेवाले आक्रमण से अपना बचाव करना बहुत मुश्किल साबित होता है। इसी कारण इस मोरचे पर हमेशा सिद्ध रहने की आवश्यकता है, ऐसा कहकर शेखावत ने पनडुब्बियों का महत्व रेखांकित किया।

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