‘स्कॉर्पिन’ श्रेणी की ‘आयएनएस करंज’ पनडुब्बी नौसेना को सुपूर्द

नई दिल्ली – ‘प्रोजेक्ट-७५’ के तहत नौसेना के लिए निर्माण कीं जानेवालीं ‘स्कॉर्पिन’ श्रेणी की छह पनडुब्बियों में से तीसरी पनडुब्बी ‘आयएनएस करंज’ नौसेना को सुपूर्द की गई। सोमवार को माज़गांव डॉक लिमिटेड (एमडीएल) में संपन्न हुए एक कार्यक्रम में ‘आयएनएस करंज’ का कब्जा नौसेना को दिया गया। ‘स्कॉर्पिन’ श्रेणी की पनडुब्बियाँ ‘हंटर किलर’ के तौर पर जानीं जातीं हैं। युद्धपोत और पनडुब्बी विरोधी युद्ध में फ्रेंच बनावट की ये पनडुब्बियों बहुत ही अहम साबित होतीं हैं। चीन की नौसेना में बड़े पैमाने पर पनडुब्बियाँ होकर, उनकी भारत के सागरी क्षेत्र से नजदीक होनेवाली आवाजाही देश की सुरक्षा के लिए चुनौती मानी जाती है। उस पृष्ठभूमि पर ‘आयएनएस करंज’ बेड़े में शामिल होने से भारत की नौसेना की ताकत अधिक ही बढ़ने वाली है।

scorpion-ins‘आयएनएस करंज’ के सभी सागरी परीक्षण पूर्ण होने के बाद माज़गांव डॉक लिमिटेड (एमडीएल) ने यह पनडुब्बी नौसेना सौंप दी। सन २०१८ में ‘आयएनएस करंज’ का जलावतरण हुआ था। पूरी तरह ‘मेक इन इंडिया’ के तहत ‘आयएनएस करंज’ का निर्माण माज़गाव डॉक में किया गया है । ‘स्कॉर्पिन’ श्रेणी की, भारतीय नौसेना को सुपूर्द की गई यह तीसरी पनडुब्बी होकर, अगले महीने में इस पनडुब्बी का नौसेना में समावेश किया जाएगा।

सन २००५ में भारत ने फ्रान्स की कंपनी मेसर्स नेवल ग्रुप के साथ छह स्कॉर्पिन पनडुब्बियों के लिए समझौता किया था। इनमें से ‘आयएनएस कलवरी’ और ‘आयएनएस खांदेरी’ ये दो पनडुब्बिबियाँ इससे पहले ही भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल हुईं हैं। ‘आयएनएस कलवरी’ सन २०१७ में और ‘आयएनएस खांदेरी’ सन २०१९ में नौसेना के बेड़े में शामिल हुईं थीं। इसी श्रेणी की ‘आयएनएस वेला’ और ‘आयएनएस वागिर’ इन दो पनडुब्बियों के सागरी परीक्षण जारी हैं। ‘आयएनएस वागिर’ का तीन महीने पहले ही जलावतरण हुआ था। साथ ही, इस श्रेणी की छठी पनडुब्बी ‘आयएनएस वागशिर’ का निर्माण जारी है।

‘स्कॉर्पिन’ पनडुब्बियाँ हज़ार फीट की गहराई पर भी बहुत समय तक रह सकतीं हैं। पानी के नीचे ५० दिन तक रहने की क्षमता इन पनडुब्बियों में होकर, वे दुश्मन के रडार को चकमा दे सकती हैं। इस कारण शत्रुओं के प्रदेश में घुसकर उनकी गतिविधियों की जानकारी प्राप्त करने के लिए, शत्रुओं की पनडुब्बियों तथा युद्धपोतों पर निर्णायक हमले करने के लिए ‘स्कॉर्पिन’ पनडुब्बियाँ बहुत ही अहम साबित होनेवालीं हैं ।

पिछले कुछ सालों से चीन अपनी नौसेना के सामर्थ्य में योजनाबद्ध तरीके से वृद्धि कर रहा है। कुछ महीने पहले संपन्न हुई ‘रायसेना डायलॉग’ इस सुरक्षाविषयक परिषद में भारतीय रक्षा बलों के अधिकारियों ने, चीन के इस बढ़ते सामर्थ्य की गंभीर दखल ली थी। खासकर हिंदी महासागर क्षेत्र के नजदीक चीन की पनडुब्बियों और विध्वंंसकों की आवाजाही यह भारत के लिए चिंता की बात साबित हो रही है। चीन के बेड़े में लगभग ८० पनडुब्बियाँ हैं। इस क्षेत्र में भारत को उलझा हुआ रखकर, भारतीय नौसेना के विस्तार और प्रभाव को रोकने के लिए चीन योजनाबद्ध तरीके से कोशिशें कर रहा है। लेकिन चीन की इन गतिविधियों के विरोध में भारत ने अपनी व्यूहरचना बनाई है।

इसके अनुसार भारतीय नौसेना के लिए पनडुब्बियाँ, विध्वंसक और युद्धपोतों का निर्माण किया जा रहा है। भारतीय नौसेना के बेड़े में १७ पनडुब्बियाँ हैं। इनमें तीन न्यूक्लियर पनडुब्बियाँ हैं। इनके अलावा और पांच पनडुब्बियों का निर्माण जारी है। उसी के साथ एसएसएन श्रेणी की छह, एस५ श्रेणी की तीन पनडुब्बियों का निर्माण किया जाने वाला है।

दो साल पहले भारत में रशिया से ‘अकूला’ श्रेणी की एक और पनडुब्बी किराये पर (रेंटल बेसिस) लेने के लिए तीन अरब डॉलर का समझौता किया था। यह पनडुब्बी सन २०२५ तक रशिया द्वारा भारत को सुपूर्द की जाने की संभावना है।

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