‘डीआरडीओ’ द्वारा पनडुब्बियों के ‘एआयपी’ तंत्रज्ञान का परीक्षण

मुंबई – समुद्री सतह के नीचे गहराई में रहने की पनडुब्बियों की क्षमता में बढ़ोतरी करने वाले ‘एअर इंडिपेंडन्ट प्रोपल्शन-एआयपी’ तंत्रज्ञान का परीक्षण ‘ रक्षा संशोधन और विकास संस्था’ ने (डीआरडीओ) किया है। अब तक अमरीका, रशिया, फ्रान्स, ब्रिटन और चीन इन देशों के पास होनेवाला यह ‘एआयपी’ तंत्रज्ञान अब भारत के पास भी आया है। इससे भारतीय पनडुब्बी आ गहरे सागर में अधिक समय तक वास्तविक कर सकती हैं और उनकी आवाज परमाणु पनडुब्बियों से भी कम होने के कारण, उन्हें खोजना दुश्मन के लिए मुश्किल बनेगा। माज़गाव डॉक में बनाई जा रहीं ‘कलावरी’ श्रेणी की अगली पनडुब्बियों में इस तंत्रज्ञान का इस्तेमाल किया जाएगा। रक्षामंत्री राजनाथ सिंग ने इस सफलता के लिए डीआरडीओ को बधाई दी है।

सोमवार रात को मुंबई के नजदीकी सागरी क्षेत्र में ‘एआयपी’ तंत्रज्ञान का आखिरी परीक्षण किया गया। यह परीक्षण सभी निकषों पर सफल साबित हुआ होने की जानकारी अधिकारियों ने दी। यह भारतीय नौसेना के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण बात साबित होनेवाली है। क्योंकि ‘एआयपी’ तंत्रज्ञान के कारण भारतीय नौसेना की पनडुब्बियाँ बहुत समय तक गहरे सागर में वास्तव में कर सकती हैं। भारतीय नौसेना के पास 3 परमाणु पनडुब्बियाँ हैं। वही, नौसेना के बेड़े में डिज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों की संख्या १५ है। इन पनडुब्बियों को प्राणवायु और बैटरी चार्ज करने के लिए कुछ समय बाद समुद्री सतह पर आना ही पड़ता है। लेकिन एआयपी तंत्रज्ञान से लैस होनेवालीं पनडुब्बियाँ बहुत समय तक गहरे सागर में रह सकतीं हैं।

इतना ही नहीं, बल्कि ‘एआयपी’ तंत्रज्ञान से लैस होने वाली पनडुब्बियों की खोज करना दुश्मन के लिए मुश्किल साबित होता है। ‘एआयपी’ के कारण हायड्रोजन और ऑक्सिजन का इस्तेमाल करके बिजली का निर्माण किया जा सकता है और इस प्रक्रिया में कुछ खास आवाज़ भी नहीं होती। इसलिए इन पनडुब्बियों की खोज करना दुश्मन के लिए संभव नहीं होगा, ऐसा डीआरडीओ ने कहा है। इसी कारण भारतीय नौसेना के बेड़े में होनेवालीं पनडुब्बियाँ अगर इस तंत्रज्ञान से लैस हुईं, तो नौसेना की मारक क्षमता भारी मात्रा में बढ़ेगी, ऐसा विश्वास व्यक्त किया जाता है। डीआरडीओ को ‘एआयपी’ तंत्रज्ञान विकसित करने के लिए ‘लार्सन अँड टुब्रो’ और ‘थरमॅक्स’ इन कंपनियों ने सहायता की, ऐसा बताया जाता है।

अपनी पनडुब्बियों को भी ‘एआयपी’ तंत्रज्ञान से लैस बनाने के लिए पाकिस्तान कोशिश कर रहा था। उसके लिए पाकिस्तान ने फ्रान्स के पास वैसी माँग भी की थी । लेकिन फ्रान्स ने पाकिस्तान की यह माँग ठुकराई थी।

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