जागतिक हथियारों के व्यापार में अमरिकी कंपनीयां शीर्ष स्थान पर कायम

तृतीय महायुद्ध, परमाणु सज्ज, रशिया, ब्रिटन, प्रत्युत्तरवॉशिंगटन – क्रिमीया के सीमा पर संघर्ष स्थिति, सीरिया में शुरू युद्ध, येमेन का संघर्ष, पर्शियन खाड़ी में बना तनाव, साउथ चाइना सी का विवाद तथा अन्य कारणों की वजह से दुनिया भर में स्थिति विस्फोटक बनी है| किसी भी विवाद से महायुद्ध भड़कने की आशंका अंतरराष्ट्रीय विश्‍लेषक व्यक्त कर रहे हैं| इसकी वजह से अपने हित संबंध सुरक्षित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े तादाद में शस्त्रास्त्र की खरीदारी शुरू है और अमरिकी कंपनियां शस्त्र व्यापार में अग्रणी पर होते दिखाई दे रहे हैं|

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शस्त्र बिक्री और खरीदारी पर नजर रखने वाले ‘स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट’ (सिप्री) इस अभ्यास गटने इस संदर्भ में रिपोर्ट तैयार किया है| शस्त्र व्यापार में अग्रणी पर होने वाले पहले १० कंपनियों में अमरिका की पांच कंपनियां होकर ब्रिटन, इटली, फ्रान्स और रशिया तथा यूरोपीय महासंघ के कंपनियां है| अमरिका के लॉकहिड मार्टिन, बोइंग और रेथौन यह कंपनियां शस्त्र व्यापार में पहले ३ क्रमांक पर है|

सिप्री की रिपोर्ट के अनुसार पिछले १५ वर्ष में अंतरराष्ट्रीय शस्त्र बिक्री में ४४ प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है| २०१७ वर्ष में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ३९८.२ अरब डॉलर इतनी तादाद में शस्त्र बिक्री हुई है| इनमें लॉकहीड मार्टिन इस अमरिकी कंपनी ने लगभग ४४.९ अरब डॉलर की शस्त्र बिक्री की है| लॉकहिड मार्टिन कंपनी के एफ-३५ इस लड़ाकू विमान के साथ युद्धनौका, हवाई सुरक्षा यंत्रणा और हाइपर मिसाइल की बड़ी मांग थी, ऐसा सिप्री ने अपने रिपोर्ट में कहा है| लॉकहिड की तरह अमरिका के अन्य कंपनियां के साहित्य में अन्य देशों के शस्त्रास्त्र से अधिक मांग होने का दावा सिप्री ने किया है|

अन्य देशों में ब्रिटेन के ‘बीएई’ इस कंपनी के लगभग २२ अरब डॉलर्स के शस्त्रास्त्र की बिक्री होने की बात सिप्री के रिपोर्ट में कही है| तथा रसिया के एस-४०० इस हवाई प्रगत सुरक्षा यंत्रणा की मांग बढ़ने की बात सिप्री ने ध्यान में दिलाई है| भारत औरचीन यह रशियन यंत्रणा के खरीदार है| रशिया ने यह यंत्रणा ईरान और तुर्की को देने के संबंध में भी करार किए हैं| पर अमरिका ने इन दोनों व्यवहार पर आक्षेप लिया था इसकी जानकारी सिप्री ने दी है|

तथा चीन की गश्ती और लड़ाकू विमान गश्ती नौका को पाकिस्तान और अफ्रीकी देशों में बड़ी मांग होने का दावा किया जा रहा है| इन देशों के साथ बड़े करार होने के दावे चीन के माध्यमों ने किए थे| पर अपने रक्षा क्षेत्र के बारे में गोपनीयता रखनेवाले चीन के इन व्यवहारों के बारे में जानकारी उजागर नहीं हो सकी है,यह बात सिप्री ने अपनी रिपोर्ट में कही है|

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