देश में ३० समूह कोरोना पर टीका विकसित कर रहे हैं – भारत के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार की जानकारी

नई दिल्ली,  (वृत्तसंस्था) – ”देश में ३० अलग अलग समूह कोरोना पर टीका विकसित करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। आम तौर पर किसी बीमारी का टीका विकसित करने के लिए १० से १५ साल लगते हैं। लेकिन फिलहाल हमारे सामने एक साल में टीका चिकसित करने की चुनौती है। हमारे साथ दुनिया के अन्य देशों में भी ऐसे ही प्रयास जारी है। यह काम मुश्किल और जोख़मभरा होकर, कौनसा टीका असरदार होगा यह अभी बताना मुश्किल है। लेकिन तीन पद्धतियों से देश में यह टीका विकसित करने के लिए ज़ोरदार प्रयास शुरू होकर, यह होड़ तीव्र करने के लिए ‘ड्रग हॅकेथॉन’ आयोजित की जानेवाली है”, ऐसी जानकारी देश के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. के. विजय राघवन ने दी।

”भारत ‘फार्मसी ऑफ द वर्ल्ड’ होकर, हमारे देश में तैयार होनेवालीं दवाइयाँ सारी दुनियाभर में जातीं हैं। देश में इस संकट के दौर में बहुत ही मर्यादित साधन होते हुए, विभिन्न क्षेत्रों की संस्थाएँ एकत्रित आयीं हैं और कोरोनाविरोधी लड़ाई में बहुत अहम भूमिका निभा रहीं हैं। साथ ही, कोरोनाविरोधी लड़ाई में विज्ञान और तंत्रज्ञान की बहुत बड़ी भूमिका होकर, हमारे देश में इसकी व्याप्ति बहुत बड़ी है। सरकारी संस्थाएँ तथा उद्योग इस जंग में एकसाथ आये हैं”, ऐसा नीति आयोग के सदस्य और कोरोनाविरोध की लड़ाई के लिए बनाये गए ‘एमपॉवर्ड ग्रुप’ के अध्यक्ष डॉ. वी. के. पॉल ने कहा है। डॉ. पॉल और वैज्ञानिक सलाहकार डॉ.राघवन ने पत्रकार परिषद संबोधित कर, देश में कोरोना के विरोध में जारी संशोधन की जानकारी दी।

     इस समय डॉ. राघवन ने घोषित किया कि देश में ३० समूह कोरोना टीका विकसित करने के प्रयास कर रहे हैं। साथ ही, इनमें से कुछ लोगों को अक्तूबर तक प्री क्रीनिकल स्टडीज् तक पहुँचने में सफलता प्राप्त हो सकती है, ऐसा विश्वास उन्होंने ज़ाहिर किया। कम समय में टीका विकसित करना है, इसलिए इसपर भारी मात्रा में खर्चा हो रहा है, ऐसा डॉ. राघवन ने कहा। कुछ भारतीय संस्थाएँ स्वतंत्र रूप में कोरोना पर टीका विकसित करने में उलझीं हुईं हैं। वहीं, विदेशी कंपनियों के नेतृत्व में कुछ भारतीय संस्थाओं के क्रयास चालू हैं। साथ ही, भारत के नेतृत्व में कुछ विदेशी संस्थाएँ कोरोना टीका विकसित करने की कोशिश में हैं। इसपर तीन पद्धतियों से काम शुरू है। टीका बीमार व्यक्ति को नहीं दिया जाता, बल्कि स्वस्थ व्यक्ति को दिया जाता है। इसलिए टीके की गुणवत्ता और सुरक्षा के परीक्षण करने पड़ते हैं, ऐसा कहकर संशोधकों के सामने होनेवालीं चुनौतियों का डॉ. राघवन ने सभी को एहसास करा दिया।

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