भारत में तिब्बतियों के ‘पार्लमेंट इन एक्झाईल’ के लिए मतदान

धर्मशाला – भारत तिब्बत के मुद्दे का इस्तेमाल ना करें, ऐसी चेतावनी कुछ दिन पहले चीन द्वारा दी गयी थी। लेकिन चीन की यह चेतावनी भारत ने ठुकरा दी है। भारत में स्थित धर्मशाला से कार्यरत ‘तिबेटन पार्लमेंट इन-एक्झाईल’ के लिए शनिवार को मतदान संपन्न हुआ। इससे पहले के ‘सेंट्रल तिबेटन ऍडमिनिस्ट्रेशन’ का कार्यकाल ख़त्म होने के कारण चुनाव लिये जा रहे होने की जानकारी सूत्रों ने दी। पिछले ही महीने में अमरीका की संसद ने तिब्बत के लिए स्वतंत्र क़ानून पारित करके चीन को झटका दिया था। उसके बाद भारतस्थित तिब्बतियों ने अपनी संसद के लिए किया यह मतदान चीन को अधिक ही बेचैन करनेवाला साबित होता है।

सन १९६० में पहली बार, भारत में आश्रय लिये तिब्बती नागरिकों ने स्वतंत्र सरकार की स्थापना की थी। उसके बाद हर पाँच साल बाद नयी सरकार के लिए मतदान लिया जा रहा है और इस साल होनेवाला चुनाव, यह १७वाँ चुनाव है। भारत समेत दुनियाभर के विभिन्न देशों में लगभग सवा लाख तिब्बती नागरिकों ने आश्रय लिया होकर, उनमें से ८० हज़ार नागरिकों ने मतदान के लिए अपने नाम दर्ज़ किये हैं। ‘सेंट्रल तिबेटन ऍडमिनिस्ट्रेशन’ के प्रमुख के साथ ४५ लोगों का चयन किया जानेवाला है।

अमरीका ने चीन के खिलाफ़ शुरू की कार्रवाई और भारत-चीन के बीच ‘एलएसी’ पर होनेवाले तनाव की पृष्ठभूमि पर, पिछले कुछ महीनों से तिब्बत का मुद्दा फिर एक बार चर्चा में आया है। अमरीका ने तिब्बत के लिए ‘तिबेटन पॉलिसी ऍण्ड सपोर्ट ऍक्ट २०२०’ नाम से स्वतंत्र क़ानून किया होकर वरिष्ठ अधिकारियों की बतौर ‘समन्वयक’ नियुक्ति की है। अमरीका के इस फ़ैसले पर भारत से सकारात्मक प्रतिक्रिया आयी होकर, भारत को भी अब तिब्बत के बारे में अधिक सक्रिय भूमिका अपनानी होगी, ऐसा सूर अलापा जाने लगा है।

अमरीका और भारत ने तिब्ब्त के मुद्दे पर अपनायी यह भूमिका चीन को चुभ गयी है और चीन ने उसके विरोध में चेतावनियाँ देना शुरू किया है। कुछ ही दिन पहले, भारतस्थित चिनी दूतावास ने, चीन के अंतर्गत मामलों में दख़लअन्दाज़ी करने की कोशिश की, तो उसके द्विपक्षीय संबंधों पर विपरित परिणाम होंगे, ऐसी चेतावनी दी थी। साथ ही, भारत ने तिब्बत यह चीन का अविभाज्य भाग होने की बात मान्य की थी, इसपर भी दूतावास ने ग़ौर फ़रमाया था।

लेकिन चीन की इस चेतावनी को नज़रअन्दाज़ करके भारत ने, तिब्बती नागरिकों की नयी सरकार के लिए सभी प्रकार की सुविधाएँ तथा यंत्रणाएँ उपलब्ध करा दीं हैं। भारत के इस कृति पर चीन से तीव्र प्रतिक्रिया आने की संभावना है। भारत ने हालाँकि इससे पहले, तिब्बत यह चीन का भाग है यह मान्य किया था, लेकिन यदि चीन भारत के साथ हुए समझौतों का और भारत के साथ किये किसी भी वादे का पालन करने के लिए तैयार नहीं है, तो भारत भी तिब्बत के मामले में अपनी भूमिका बदलें, ऐसी माँग राजनयिक कर रहे हैं।

भारत का सार्वभूम भूभाग होनेवाले ‘पाकिस्तानव्याप्त कश्मीर’ (पीओके) में चीन, भारत के विरोध की परवाह किये बिना पाकिस्तान के साथ परियोजना बना रहा है। गलवान वैली में चीन के लष्कर ने क़ायराना हमला करके, भारत के साथ हुए समझौते का उल्लंघन किया था। आनेवाले समय में भी चीन भारत के साथे किये किसी भी समझौते का पालन करनेवाला नहीं है, यह बात ज्येष्ठ राजनयिक तथा विश्‍लेषक ज़ोर देकर कह रहे हैं। ऐसी स्थिति में, भारत ने तिब्बत के बारे में अपनी सौम्य भूमिका बदलने की आवश्यकता होकर, ऐसा किये बिना चीन पर दबाव बढ़ाया नहीं जा सकता, ऐसा तर्क राजनयिकों तथा विश्‍लेषकों ने की इस माँग के पीछे है।

इसी बीच, जिस ‘एलएसी’ का उल्लेख आज तक ‘भारत और चीन की सीमा’ ऐसा किया जाता है, वह दरअसल भारत और तिब्बत की सीमा है। चीन ने तिब्बत का भूभाग निगलकर वह भारत की सीमा तक आ पहुँचा है, यह भारत अधिकृत स्तर पर घोषित करें, ऐसा आवाहन भारतस्थित ‘सेंट्रल तिबेटन ऍडमिनिस्ट्रेशन’ के प्रमुख लॉबसॉंग संगेय ने किया था। भारत के साथ जब चीन का सीमावाद भड़का है, तब तिब्बती नेताओं ने अपनायी यह भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण साबित होती है। तिब्बत के प्रश्‍न पर बहुत संवेदनशीलता दिखानेवाले चीन पर इसका दबाव बढ़ा हुआ दिख रहा है।

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