‘भारत माता की जय’ उद्घोष में ‘एसएफएफ’ के शहीद का अंतिम संस्कार

लेह – लद्दाख की प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा पर बारुदी सुरंग के विस्फोट में शहीद हुए भारतीय ‘स्पेशल फ्रंटियर फोर्स’ (एसएफएफ) तिब्बती सैनिक निमा तंजिन के पार्थिव पर सोमवार के दिन अंतिम संस्कार किए गए। २९-३० अगस्त की रात पैन्गॉन्ग त्सो के दक्षिणी क्षेत्र में भारत-चीन के सैनिकों के बीच हुए संघर्ष के दौरान यह विस्फोट हुआ था। कंपनी लीडर निमा तेंजिन के अंतिम संस्कार के लिए हज़ारों की संख्या में तिब्बती नागरिक उपस्थित रहे। ‘भारत माता की जय’, ‘जय तिब्बत’, ‘भारतीय सेना का हमें अभिमान है’ ऐसे नारे भी इस दौरान तिब्बती समुदाय ने लगाए।

bharat-mata-ki-jai‘एसएफएफ’ की विकास बटालियन्स के कंपनी लीडर निमा तेंजिन ५१ वर्ष के थे। बीते ३३ वर्ष ‘एसएफएफ’ में कार्यरत रहकर उन्होंने भारत माता की सेवा की। लद्दाख के चुशूल में हुए बारुदी विस्फोट में निमा तेंजिन शहीद हुए। सोमवार के दिन लेह में उनके पार्थिव पर अंतिम संस्कार किए गए। भारत और तिब्बत के ध्वज में उनका पार्थिव रखा गया था। साथ ही भारत और तिब्बत का राष्ट्रगान करके उन्हें बड़े सम्मान से बिदा किया गया। इस दौरान तिब्बती समुदाय बड़ी मात्रा में उपस्थित रहा। साथ ही वरिष्ठ नेता राम माधव भी इस समय उपस्थित थे।

निमा तेंजिन सिर्फ तिब्बत के ही नहीं बल्कि वे भारत के भी हिरो हैं, वह तिब्बत के लिए जिए और भारत के लिए शहीद हुए, ऐसे भावपूर्ण संदेशों के फलक इस समय लगाए गए थे। भारत माता की जय, जय तिब्बत के नारों ने लेह का परिसर गूँज उठा था। तेंजिन का बलिदान भारत जाया नहीं जाने देगा इन शब्दों में कृतज्ञता व्यक्त की गई है।

पैन्गॉन्ग त्सो के संघर्ष के अवसर पर एसएफए की पहचान सारे विश्‍व को हुई है। वर्ष १९६२ में चीन के साथ हुए युद्ध के बाद वरिष्ठ भारतीय लष्करी अधिकारीयों ने रखे प्रस्ताव पर ‘एसएफएफ’ का गठन हुआ था। भारतीय गुप्तचर यंत्रणा से संबंधित यह लष्करी संगठन ‘सीक्रेट युनिट’ के तौर पर पहचानी जाती है। हिमालयिन सिंह के बोधचिन्ह वाली ‘एसएफएफ’ की सात बटालियन्स कार्यरत हैं और इनमें सात हज़ार सैनिक सक्रिय होने की बात कही जाती है। यह संख्या इससे भी कई अधिक होने का दावा भी किया जा रहा है। ‘एसएफएफ’ में प्रमुखता से तिब्बती शरणार्थी सैनिकों का समावेश है। भारतीय सेना के ‘पैरा स्पेशल फोर्सेस’ के प्रशिक्षण के बाद इन सैनिकों को पहाड़ी युद्ध एवं अधिक कठिन युद्धनीति का प्रशिक्षण दिया जाता है।

bharat-mata-ki-jaiवर्ष १९७१ के बांगलादेश और वर्ष १९९९ के कारगिल युद्ध में ‘एसएफएफ’ के सैनिकों ने पाकिस्तानी सेना के सैनिकों में भगदड़ मचाई थी। साथ ही वर्ष १९८४ के ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार में भी ‘एसएफएफ’ के सैनिकों ने अहम ज़िम्मेदारी निभाई थी। अब एसएफएफ के सैनिक भारत-चीन सीमा पर तैनात हैं और संघर्ष के दौरान उन्होंने चीनी सैनिकों को भगाया है। इनमें से ‘एसएफएफ’ की विकास बटालियन सबसे आक्रामक कमांडोज्‌ के दल के तौर पर पहचानी जाती है। पहाड़ी क्षेत्र के युद्ध में इन कमांडोज्‌ का हाथ पकड़नेवाला कोई भी ना होने की बात विश्‍लेषक कहते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published.