‘एर्दोगन’ का तुर्की, यूरोपीय महासंघ का हिस्सा नहीं हो सकता- जर्मन विदेश मंत्री का इशारा

बर्लिन/इस्तांबुल: रेसेप तय्यप एर्दोगन जब तक तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष हैं, तब तक तुर्की यूरोपीय महासंघ का सदस्य कभी भी नहीं बन सकता, ऐसा इशारा जर्मन विदेश मंत्री ने दिया है। जर्मन विदेश मंत्री के इस इशारे पर तुर्की से भी तीव्र प्रतिक्रिया उमटी है, जर्मन मंत्रियों ने अपनी मर्यादा पार की है ऐसा आरोप तुर्की ने किया है। इन आरोप-प्रत्यारोपों की वजह से जर्मनी और तुर्की के बीच तनाव बहुत ज्यादा बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं।

‘तुर्की में आज कल जो गतिविधियां शुरू हैं और जो परिस्थिति है, उस पृष्ठभूमि पर तुर्की कभी भी यूरोपीय महासंघ का सदस्य नहीं बन सकता। यूरोपीय महासंघ को तुर्की सदस्य की तौर पर नहीं चाहिए, यह इसके पीछे कारण नहीं है। बल्कि तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन और उनकी सरकार दिन प्रति दिन यूरोपीय मूल्यों से दूर जा रही है, इस लिए तुर्की यूरोपीय महासंघ का हिस्सा नहीं हो सकता’, ऐसा आक्रामक इशारा जर्मन के विदेश मंत्री सिग्मार गेब्रियल ने दिया है।

जर्मन विदेश मंत्री ने इससे पहले भी बार बार तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष के खिलाफ खुली भूमिका लेकर टीका की है। इस बार उन्हों ने एर्दोगन की नीतियां और महासंघ के सदस्यत्व का सीधा संबंध जोड़कर तुर्की के यूरोप में समावेश पर सवाल खड़ा किया है। पिछले हफ्ते में उन्हों ने तुर्की की जनता लोकतंत्र की समर्थक है और वो एर्दोगन को समर्थन नहीं देगी, ऐसा दावा किया था। जर्मनी और यूरोपीय महासंघ तुर्की पर आर्थिक और व्यापारी प्रतिबन्ध लगाए, इस लिए ग्रेबिअल ने आग्रही भूमिका ली है।

गेब्रिअल ने सीधे राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन को लक्ष्य बनाने की वजह से तुर्की से भी तीव्र प्रतिक्रिया उमटी है। तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कावुसोग्लु ने जर्मन विदेश मंत्री ने अपनी मर्यादा पार करने का आरोप लगाया है। ‘जर्मन मंत्री ने अपनी घोषणा से मर्यादा पार की है। इस प्रकार की लोकप्रिय घोषणाओं से उन्हें कुछ भी फायदा नहीं होगा’, इन शब्दों में कावुसोग्लु ने इशारा दिया है। इसके पहले तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन ने भी जर्मन विदेश मंत्री ने अपनी हैसियत देखकर घोषणा करनी चाहिए, ऐसी उपरोधिक सलाह दी है।

पिछले साल भर से जर्मनी और तुर्की में बार बार झगड़े हो रहे हैं, जिससे दोनों देशों में तनाव दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है। जुलाई २०१३ में तुर्की में राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन का शासन गिराने का असफल प्रयास हुआ था, जर्मन विद्रोह का समर्थन करने वालों को साथ ही विद्रोह में शामिल हुए कुछ तुर्की नागरिकों को सुरक्षा देने का आरोप एर्दोगन की ओर से किया गया था। उसके बाद तुर्की में लिया गया सर्वमत और जर्मनी के कुछ नागरिकों की आतंकवाद के आरोप के नीचे की हुई गिरफ़्तारी इस वजह से दोनों देशों के बीच विवध अधिक बढ़ रहा है।

राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन ने पिछले कुछ महीनों में बार बार जर्मनी को लक्ष्य बनाया है, कुछ दिनों पहले उन्हों ने चांसलर मर्केल के खिलाफ चुनाव का बुलावा दिया था। जर्मनी में रहने वाले सभी तुर्की वंशीय नागरिकों को संबोधित करते हुए, मर्केल और सहकारी पक्षों को वोट न दें, ऐसा इशारा एर्दोगन ने दिया था।

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