युद्ध रोकनेवाला शस्त्र ( अ वेपन टू एन्ड ऑफ द वॉर)-निकोल टेसला

tesla-death-rayनिकोल टेसला ने अपने जीवनकाल में दो महायुद्धों के साथ ही दुनिया के अनेक विद्रोह, संघर्ष देखे थे। टेसला का मूल स्वभाव एवं नैसर्गिक प्रवृत्ति के अनुसार उन्हें हर किसी की चिन्ता लगी रहती थी और वे स्वातंत्र्य के पुरस्कर्ता थे। लेकिन इस स्वतंत्रता का पुरस्कार केवल उनके अपने देश तक ही सीमित नहीं था, बल्कि हर किसी को अपना जीवन जीने की व्यक्तिगत स्वतंत्रता होनी ही चाहिए, ऐसी डॉ.टेसला की अपनी राय थी। दुनिया के हर मनुष्य को सभी प्रकार के बंधन, गुलामी एवं परावलंबित्व से मुक्त होना चाहिए, यही उनका सपना था। डॉ.टेसला की ह्युमनॉईड रोबो विकसित करने के प्रति मूल प्रेरणा यही थी।

शांति एवं स्वातंत्र्य के प्रति नैसर्गिक आकर्षण होने के कारण डॉ.निकोल टेसलाने युद्ध को हमेशा के लिए रोका जा सके इसके प्रति रास्ता ढूँढ़ना एवं कोई माध्यम हो इसके बारे में कोशिश शुरु कर दी थी। दोनों महायुद्धों के पहले एवं मध्यकाल में भी डॉ.टेसला का उस दिशा में प्रयास चल रहा था। बहुत बड़े पैमाने में होने वाले संहार एवं संघर्ष की व्याप्ति के कारण प्रथम महायुद्ध की घटना के कारण डॉ.टेसला बहुत बुरी तरह से दु:खी थे। इस महायुद्ध के दौरान जर्मनी के ‘यूबोट्स’ ने अटलांटिक में मचा रखे धमाचौकड़ी के कारण सामान्य नागरिकों के जीवन में निर्माण होने वाले खतरे का कारण डॉ.टेसला जान चुके थे। इसीलिए इस अनियंत्रित एवं विनाशकारी ‘यू-बोट्स’ को रोकने के लिए डॉ.टेसला ने अमेरिका के नौदल के समक्ष ‘यू-बोट्स’ की खोज करने वाले रडार बनाने का प्रस्ताव रखा। मात्र डॉ.टेसला के इस प्रस्ताव को अमान्य कर दिया गया। अमेरिकी नौदल के चुनाव समिति के प्रमुख पदपर डॉ.टेसला का द्वेष करनेवाले थॉमस एडिसन थे और उन्होंने ने ही उनके इस प्रस्ताव का जोरदार विरोध किया।  डॉ.टेसला ने अपने प्रस्ताव में उल्लेख किए गए रडार इलेक्ट्रिकल रेज् का उपयोग करनेवाले थे।

१८९२ में डॉ.टेसलाने कार्बन बटन लॅम्प की खोज की थी। इस खोज एवं  ‘एक्स-रे’ पर किए गए प्रयोग ये सभी चीजें उनके ‘पार्टिकल बीम वेपन्स’ के संदर्भ में की गई कार्यों की पार्श्‍वभूमि मानी जा सकती है। उन्होंने कॅथोड रेज का उपयोग शत्रुओं पर अथवा उनके निशाने पर करने के संदर्भ में भी प्रयोग किया था।

डॉ.टेसला ने १८९३ में रूबी लेझर की खोज़ की, इतना ही नही बल्कि उसके प्रात्यक्षिक दिखाकर निष्कर्ष भी प्रसिद्ध किया। इसके पश्‍चात् १९१८ में डॉ.टेसला ने लेझर-समान एक यंत्रणा विकसित की। यह उपकरण अर्थात प्रत्यक्ष रूप में एक दीपक था, जिस में कार्बन, हीरा अथवा रूबी का टुकड़ा रखकर उस पर इलेक्ट्रिकल एनर्जी का निशाना साधा जा सकता था। उसी साल डॉ.टेसला ने इस लेझर समान उपकरण की सहायता से लेझर किरणों को छोडकरके दिखलाया था, जो बिलकुल तीन लाख ८४ हजार किलोमीटर्स की दूरी तक अर्थात सीधे चाँद तक पहुँच गया था, ऐसा माना जाता है।

डॉ.निकोल टेसला ने इस ‘डायरेक्टेड एनर्जी सायन्स’ के विषय पर अपना ध्यान केन्द्रित किया और उससे तैयार होनेवाली सर्वोत्तम बात तो यह है कि, ‘पीस रे(Peace Ray)। प्रसार माध्यमों में इसका ‘डेथ रे’ (Death Ray / Beam) इस तरह से गलत रूप में उल्लेख किया जाता है, परन्तु स्वयं डॉ.टेसला ने इसका उल्लेख ‘टेलिफोर्स’ (Teleforce) इस प्रकार किया है।

डॉ.टेसला ने ‘वन डे ग्राफ’ जनरेटर का अध्ययन करने के पश्‍चात् टेलिफोर्स अर्थात प्रत्यक्ष रूप में ‘चार्ज्ड पार्टिकल बीम प्रोजेक्टर’ की निर्मिती की थी। उन्होंने इस शस्त्र के उपयोग जमीनपर होनेवाले तोपदलों के विरोध में अथवा विमान विरोध में भी किया जा सकेगा, ऐसा कहा था ११ जुलाई, १९३४  के ‘न्यूयॉर्क सन’ एवं ‘न्यूयॉर्क टाईम्स’ इन दोनों दैनिकों में यह बात खुलेआम प्रसिद्ध हुई थी।

इस शस्त्रात्र यंत्रणा के माध्यम से कोई भी देश, हवा के माध्यम से प्रचंड रूप में शक्तिशाली किरणों को छोड़कर, कुल २५० मीलों की दूरी तक शत्रुओं के १० हजार विमानों को नीचे गिरा सकता है, इस प्रकार की क्षमता प्राप्त कर सकता था। डॉ.निकोल टेसला का यह ‘पार्टिकल्स बीन वेपन’ (Particle Beam Weapon) ऑटोमिक अथवा सब ऑटोमिक पार्टिकल्स के ‘हाय एनर्जी बीम’ का उपयोग करके, (लक्ष्यों को साध के) अ‍ॅटोमिक एवं मॉलेक्युलर स्ट्रक्चर उद्ध्वस्त करके, उसका विनाश करने में यशस्वी होता था। डॉ.टेसला का यह शस्त्र केवल नॅनो सेकंड का ५००  वा हिस्सा (2 trillionth of a second) इतने कम समय में लक्ष्य पत अचूक निशाना साध सकता था। इस ‘पीस रे’ के माध्यम से निर्माण होने वाल ‘टेसला शिल्ड’ में आण्विक स्फोट से निकलने वाले गॅमा किरणाँ का उत्सर्जन एवं ‘इलेक्ट्रोमॅग्नेटिक पल्स’ का उसके ऊपर कोई परिणाम नहीं हो सकता था।

‘पार्टिकल बीम वेपन’ विशेष (वस्तुमान) उपयोग में न लाये जाने वाले कणों का उपयोग करके सारी उर्जा एक विशिष्ट दिशा में एवं उसे केन्द्रीत करके उस पर निशाना साधता था। इन चार्ज्ड पार्टिकल्सों को गति एवं दिशा प्रदान करने के लिए इलेक्ट्रोमॅग्नेटिक फील्डस्, तो किरणों के लक्ष्य पर पड़ते समय नियंत्रित रहना चाहिए, इसके लिए इलेक्ट्रोस्टिक लेन्स का उपयोग किया गया था। टी.व्ही. एवं संगणक का उपयोग करने के लिए ‘सी आर टी’ (cathod ray tube) नामक ये पार्टिकल अ‍ॅक्सिलेटर्स के आसान उदाहरण के रूप में हम देख सकते हैं। ये अ‍ॅक्सिलेटर्स चार्ज्ड पार्टिकल्सों को (ईलेक्ट्रॉन्स, पॉसिट्रान्स, प्रोटॉन्स अथवा आयनाईज्ड अ‍ॅटम्स, भी उन्हीं कणों की प्रगत आवृत्तियाँ  हैं) जो लगभग प्रकाश की गति के समान ही गति प्रदान करती हैं और इसके पश्‍चात् वे अपना निशाना लक्ष्य पर साधती हैं। इन कणों में प्रचंड ताकत (कायनेटिक एनर्जी) होती है, निशाने के साथ टकरा जाते ही वह प्रचंड मात्रा में उष्णता निर्माण करती है।

डॉ.निकोल टेसला द्वारा दर्ज किए गए लेखों द्वारा इस बात का पता चलता है कि, इस यंत्रणा में अतिसूक्ष्म टंगस्टन कणों का (पेलेट्स) उपयोग किया गया था, जिसे हाथ व्होल्टेज की सहायता से गति दी जा रही थी। इलेक्ट्रोस्टॅटिक रिपल्जन की सहायता से ये पेलेट्स नली के बाहर से पड़ने पर भी ध्वनि के बिलकुल ४८ गुणा अधिक तीव्रता के साथ प्रवास कर सकते थे।

डॉ.निकोल टेसला ने दावा किया था कि मेरे द्वारा विकसित की गई यह यंत्रणा सक्रिय की गई तो युद्ध छिड़ना असंभव है। यह ‘पीस रे’ हर एक देश के इर्दगिर्द एक अदृश्य संरक्षक कवच को भेद नहीं सकेगा। डॉ.निकोल टेसला द्वारा विकसित की गई यंत्रणा का आक्रमण करने के लिए शस्त्र के रूप में उपयोग में लाया जाना संभव नहीं था। यह यंत्रणा पुराने जमाने के किलों आदि के समान हर एक देश की सीमा पर उर्जा के कुछ बड़ी एवं स्थिर केन्द्र निर्माण करने वाली थी। उन्हें आक्रमण करने के लिए हिलाना संभव था ही नहीं। इसमें केवल एक छोटा सा बदलाव किया गया था; और वह भी केवल युद्ध नौकाओं के लिए ही। युद्धनौका इस ‘पीस रे’ यंत्रणा का उपयोग उनके ऊपर हवाई हमला करनेवाले विमानों को गिराने के लिए कर सकते थे।

‘पीस रे’ में उपयोग में लाये जानेवाले कणों में होने वाली प्रचंड गति उनका विनाश करने की क्षमता का असल में मूल थी। ये प्रचंड गति के साथ आनेवाले कण गिरने के बाद उससे निर्माण होनेवाली उष्णता के कारण कितना भी कठिन पृष्ठभाग क्यों न हो, फिर भी वह सहज ही पिघल जाताथा। इस ‘पीस रे’ के तैयार होने के लिए बड़ी यंत्रणा की ज़रूरत पड़ती थी। फिर भी एक बार यदि उसे तैनात कर दिया जाता था तब २५० मीलों की दूरी पर होनेवाली किसी भी चीज को सहज ही नष्ट कर सकता था। डॉ.निकोल टेसला का यह दावा था कि, इस यंत्रणा के कारण जो दहशत निर्माण होगी, उसी के कारण आनेवाले समय में युद्ध एक असंभव बात बन जायेगा। डॉ.टेसला ने इस‘पीस रे’ का प्रस्ताव अमेरिका, ब्रिटन, फ्रांस, केनडा, रशिया एवं युगोस्लाविया इस प्रकार के प्रमुख देशों के समक्ष प्रस्तुत किया परन्तु इन सभी देशों ने उसे ठुकरा दिया। डॉ.टेसला को पूरा विश्‍वास था कि ‘पीस रे’ के समान शस्त्र के कारण एक-दूसरे के साथ और इसके साथ ही द्वितीय महायुद्ध को रोककर अनेक बेकसूरों के प्राणों को भी बचाया जा सकता है।

आज के समय में डॉ.टेसला के ‘पीस रे’ का उतना ही महत्त्व है क्या? आज की स्थिति में दुनिया के नौ देशोंने अधिकृत धरातल पर अण्वस्त्र सज्ज होने का ऐलान किया है। लेकिन जिस गत के साथ अण्वस्त्र का प्रचार-प्रसार चल रहा है, उसे देखते हुए इन नौ देशों के अलावा और भी कितने देशों के पास अण्वस्त्र मौजूद है इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल है। आज की स्थिति में दुनिया में लगभग ६४ से अधिक देशों में सतत संघर्ष एवं युद्ध चल ही रहा है। और उस में भी शायद जल्द ही महासंहारक युद्ध का भी सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में ही दुनिया की कट्टरपंथी संघटनाओं एवं आंतकवादियों के हाथों ऐसे अण्वस्त्रों के लग जाने का धोखा भी बढ़ गया है। ये अविचारवादी समूहों के लोग सामान्य नागरिकों के विरोध में उसका उपयोग करेंगे ऐसी चिंता भी व्यक्त की जा रही है। इस प्रकार के भयावह धोखे के साये में, डॉ. निकोल टेसला का ‘पीस रे’ यही आज की स्थिति में ‘आण्विक युद्ध’ से बचाने वाला और इसके साथ ही ‘युद्ध को खत्म कर देने वाला शस्त्र’ साबित होगा, इस में कोई शक नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.