मानवता दृष्टिकोन

pg12_Dr Teslaसंशोधन करते समय, उसके सुयोग्य उपयोग के बारे में डॉ.टेसला अत्यन्त सर्तक रहते थे। संशोधन का गलत उपयोग न हो इस बात का वे विशेष ध्यान रखते थे। कारण संशोधन द्वारा वैयक्तिक मान-सम्मान अथवा आर्थिक लाभ प्राप्त करना, यह उनका ध्येय कभी भी नहीं था। उनके संशोधन के पीछे मानवजाति का कल्याण यही मूलभूत प्रेरणा थी। इसीलिए डॉ.टेसलाको ‘एक्स रे’ के खोज का श्रेय न मिलने पर भी, वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी की तरह ही ‘एक्स-रे’ का योग्य उपयोग नहीं हुआ और वह गलत हाथों में पड़ गया, तो वह संपूर्ण मानवजाति के लिए धोखादायक साबित हो सकता है, इस बात का अहसास उन्हें हो चुका था। इसीलिए उन्होंने अपने ह्युस्टन स्ट्रीट के प्रयोगशाला में ‘एक्स-रे’ पर अविरत संशोधन शुरु ही रखा।

‘एक्स-रे’ ट्युब्स पर काम करने से निर्माण होने वाले जैविक धोखा दिखाने वाले शास्त्रज्ञों में डॉ.टेसला सबसे आगे थे। ‘एक्स-रे’ ट्युब्स के सतत होने वाले  उपयोग से मानवी शरीर पर कितना धोखादायक परिणाम हो सकता है, यह उन्होंने साबित कर दिखाया।

‘एक्स-रे’ के कारण त्वचा का लाल दिखाई देना, वेदना, सूजन उसी प्रकार बालों का झड़ना एवं नये नाखूनों में बाढ़ इस प्रकार के धोखादायक परिणाम की जानकारी उन्होंने दी थी। ‘एक्स-रे’ पर काम करते समय आँखों में जलन और अचानक होने वाली वेदना इस बात का भी पता उन्होंने किया।

‘एक्स-रे’ ट्युब से सुरक्षित अंतर रखने पर अथवा ‘एक्स-रे’ के सामने खड़ा रहने का समय कम करने पर इस धोखादायक परिणाम को दूर किया जा सकता है। इस प्रकार की राय उन्होंने प्रस्तुत की। उसी समय ‘एक्स-रे’ का सोख लेने वाला एक प्रकार का (शिल्ड) अटकाव तैयार किया जो बिलकुल कम मात्रा में मानवी शरीर में जाने दिया गया, इससे भी इस धोखे को टाला जा सकता था, इस प्रकार का विकल्प डॉ.टेसला ने प्रस्तुत किया। इसके लिए डॉ.टेसला ने स्वयं जमीन से जुड़े रहने वाली अ‍ॅल्युमिनियम के वायर का उपयोग की गई संरक्षक शिल्ड तैयार की। इस शिल्ड में ‘एक्स-रे’ की धोखादायक किरणें सोख लिए जाने के कारण मानवों के लिए वह बिलकुल सुरक्षित हो चुका था। ‘एक्स-रे’ निकालते समय ऐसी कोई वस्तु एवं फोटोग्राफिक प्लेट विशिष्ट  अंतर पर रख दिया जाये और ‘एक्स-रे’ निकालने का समय रखा तो उसकी अत्यन्त उच्च दर्जे की प्रतिमाएँ मिल सकती हैं, यह भी डॉ.टेसला ने कर दिखाया। ‘एक्स-रे’ की खोज करनेवाले विल्यम राँटजेन ने भी डॉ.टेसला के ‘एक्स-रे’ प्रतिमाओं का दर्जा बहुत ही उच्चस्तरीय है इस बात को कबूल किया था। यह पत्र अर्थात एक संशोधनकर्ता ने अपने समकालीन संशोधनकर्ता की मुक्तकंठ से की गई प्रशंसा का ही उदाहरण है।

इससे पहले डॉ.टेसला ने वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी से संबंधित धोखे की जानकारी होते हुए भी स्वयं की अथवा स्वयं को होने वाली वेदनाओं की परवाह न करते हुए सामान्य मानवों के लिए वह सुरक्षित हो इसलिए किए जाने वाले उनके अथक परिश्रम को हमने देखा है। इसी तरह ‘एक्स-रे’ के धोखादायक परिणाम को जानते हुए भी डॉ.टेसला ने केवल मानवजाति को सुरक्षित तौर पर वे उपलब्ध हो और उसका योग्य फायदा वे उठा सके, इसी एक उद्देश्य से ‘एक्स-रे’ पर होने वाले प्रयोग उन्होंने लगातार शुरु ही रखा।

ये करते समय ही, डॉ.टेसला ने ‘एक्स-रे’ के वैद्यकीय क्षेत्र में होने वाले फायदों का भी निदर्शन किया। उस में शरीर में होने वाले हानिकारक घटकों के स्थान का पता चल सके तथा फेफड़े की बीमारी को पहचानना ऐसी सभी बातों का समावेश था। अधिक मज़बूत होने वाले घटक ‘एक्स-रे’ के लिए अपारदर्शी साबित होने वाले निरीक्षण भी डॉ.टेसला ने लिखकर (रजिस्टर कर) रखा है।

डॉ.टेसला ने ‘एक्स-रे’ से निकलने वाले उत्सर्जन का अध्ययन स्वयं तैयार किए गए ‘एक्स-रे’ बल्ब के सहायता से किया था। उन्होंने एक स्पेशल व्हॅक्युम ट्युब के रूप में यह बल्ब तैयार किया था। ‘एक्स-रे’ की निर्मिती होते समय इस ट्युब में से बड़े भारी प्रमाण में उष्णता बाहर निकलती थी। इस उष्णता एवं ‘एक्स-रे’ बल्ब का आवरण पिघलने न पाये इसके लिए टेसला ने हवा के ठंड़े झोके छोड़ने वाली एक कुलिंग सिस्टम तैयार किया। उसी समय सतत तेल का प्रवाह चलता रहेगा, इस प्रकार की योजना बनाकर ट्युब भी ठंड रह सके, इस प्रकार की व्यवस्था का भी निर्माण किया। यह यंत्रणा आज के समय में बड़े इंजिन्स को ठंडक पहुँचाने के लिए (ठंड़ करने के लिए) उपयोग में लायी जाने वाली एवं दुनियाभर में स्वीकार की गई ‘ऑईल कुलिंग सिस्टम’ जैसी थी।

‘एक्स-रे’ के योग्य उपयोग के संबंध में जागृति (लाने के लिए) हो इसके लिए डॉ.टेसला ने ‘एक्स-रे’ एवं उसके जैविक दुष्परिणाम इस विषय पर विविध प्रकार के ज्ञान से संबंधित नियकालिकाओं के माध्यम से लेखों की मालिका शुर की। इसी के साथ अनेक स्थानों पर इस विषय पर महत्त्वपूर्ण व्याख्यान भी दिए। इन में से १८९७ में दिया गया, न्यूयार्क अ‍ॅकॅडमी ऑफ सायन्सेस में होने वाला व्याख्यान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

इस सारे घटना क्रम से इस बात का पता चलता है, कि डॉ.टेसला के समान महानशास्त्रज्ञ के दिल में सामान्य मानवों के प्रति कितनी तड़प थी। आज ‘एक्स-रे’ का उपयोग करते समय विशेष बातों का ध्यान रखा जाना अर्थात डॉ.टेसला द्वारा बिलकुल १०० वर्षों पूर्व (पहले) ‘एक्स-रे’ के संदर्भ में डाला गया नियम ही है ऐसा आज भी अनेक संशोधकों का मानना है।

‘एक्स-रे’ के संशोधन के पश्‍चात् एडिसन के कंपनी ने भी उस पर प्रयोग करना शुरु कर दिया था। इसके लिए उन्होंने ‘एक्स-रे’ बल्ब तैयार करने वाले एवं उसका उपयोग करने वाले क्लरेन्स डॅली की मदद ली थी। मात्र कुछ ही वर्षों में ‘एक्स-रे’ बल्ब के गलत उपयोग के कारण डॅली के दोनों हाथों में गाँठ पड़ गई (फोड़ी हो गई) और उससे सूजन आने लगी। अंत में सूजन बढ़कर त्वचा का कैन्सर हो जाने के कारण, डॅली के दोनों हाथों को काटना पड़ा था।

डॅली एवं एडिसन ने डॉ.टेसला के संशोधन एवं पूर्वसूचना की ओर यदि अनदेखा न किया होता तो शायद इस दुर्घटना को टाला जा सकता था।

१९९८ में डॉ.टेसला के ‘हाय फ्रीक्वेंसी इलेक्ट्रिसिटी’ क्षेत्र का कार्य सर्वोच्च शिखर पर था। उन्होंने इतना उत्तुंग़ कार्य किया था कि इस क्षेत्र में उनके शोध एवं संशोधनों को आज के समय में भी उनके साथ कोई बराबरी नहीं कर सकता है। १८९५ में फिफ्थ अ‍ॅव्हेन्यु की प्रयोगशाला उद्ध्वस्त होने जैसा जबरदस्त धक्का भी उन्हें हताश, नाउम्मीद नहीं कर सका। उन्होंने नये सीरे से ह्युस्टन स्ट्रीटवाली प्रयोगशाला से नवनवीन प्रयोगों की शुरुआत की।
जब डॉ.टेसला हाय फ्रीक्वेंसी पर काम करते थे, तब उनके ध्यान में आया कि इसका उपयोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी का वहन करने के लिए किया जा सकता है।

नायगारा के जलविद्युत प्रकल्प के उत्घाटन के समय पर, सारी दुनिया को डॉ.टेसला के ‘पोलीफेज सिस्टम’ का फायदा  ध्यान में आया। इस यंत्रणा के कारण इतिहास में पहली बार ही बहुत बड़े अंतर पर विद्युतभार संवाहन किया गया था। इस संदर्भ में डॉ.टेसला ने कहा –

‘‘इस क्षेत्र में होनेवाली प्रगति के कारण, वायर्स का उपयोग किए बिना एक स्थान से दूसरे स्थान पर बिजली पहुँचाने का मेरा पसंदीदी स्वप्न साकार होते हुए देखने की नयी निर्माण हुई है।‘’

१८९७  में उन्होंने बिजलीके ‘वायरलेस ट्रान्समिशन सिस्टम’ का पेटंट भी लिया।  डॉ.टेसला का स्वप्न अब और भी व्यापक होते चला था, वे अब अपने एक सीमित घेरे के परे विचार करने लगे थे। वायरलेस एनर्जी केवल छोटे-मोटे अंतरों के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने तक की मर्यादा ही अब वे नहीं चाहते थे। ह्युस्टन स्ट्रीट के प्रयोगशाला में उन्होंने २.४४ मीटर व्यास की कॉईल होन वाली हाय फ्रीक्वेंसी ट्रान्समिटर का उपयोग करके २ से ४ मेगावॅट बिजली की निर्मिती की थी। परन्तु डॉ.टेसला को अब और भी अधिक हाय फ्रीक्वेंसी और बिलकुल १५ मीटर व्यास की कॉईल होने वाले ट्रांसफार्मर चाहिए थे।

उनकी अपनी प्रयोगशाला जहाँ पर वे अपना काम करते थे वह अब इस कार्य के लिए काफी नहीं थी। इसीलिए वे नयी जगह की खोज में थे।

बिलकुल ऐसे ही समय में लोग डॉ.टेसला की मदद करने आगे बढ़े।

एक थे डॉ.टेसला के मित्र एवं पेटंट से संबंधित वकील लिओनार्ड कर्टिस। कर्टिस ने डॉ.टेसला को कोलोरॅडो स्प्रिंग्ज में प्रयोगशाला के लिए जगह ढूँढ़कर देने का एवं उनके संशोधन के लिए ‘एल पॅसो पॉवर कंपनी’ की ओर से विद्युतभार संवाहन की पूरी ज़िम्मेदारी ली। उनकी मदद के लिए आगे आने वाले दूसरे व्यक्ति का नाम था, कर्नल जॉन जेकब अ‍ॅस्टर। अ‍ॅस्टर ने डॉ.टेसला को आर्थिक रुप में ३०  हजार डॉलर्स की सहायता की। कर्नल जॉन अ‍ॅस्टर जर्मनी के उद्योगपति थे। उस समय अमरीका के सबसे धनाढ्य व्यक्ति के रुप में वे जाने जाते थे।

अब डॉ.टेसला कोलोरॅडो स्प्रिंग में प्रवेश करने के लिए सिद्ध हो चुके थे। आने वाले समय में यह स्थान डॉ.टेसला के नये नये संशोधन और उनके आविष्कारों का जन्मस्थल सिद्ध हुआ।

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