सर्वोच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला

नई दिल्ली: सहमतिसे होने वाले अप्राकृतिक संबंधों को अपराध नहीं ठहराया जा सकता, ऐसा सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है। इससे पहले भारतीय दंडविधान संहिता की धारा ३७७ के तहत इस तरह के लैंगिक संबंध अपराध ठहराया जाता था। लेकिन यह बात नगरी समानता के विरोध में जाती है, ऐसा कहकर सर्वोच्च न्यायलय ने दो सज्ञान व्यक्तियों के बीच सहमति से होने वाले लैंगिक संबंधों को अवैध नहीं ठहराया जा सकता है, ऐसा फैसले में कहा गया है। लेकिन नाबालिग और जानवरों के साथ लैंगिक संबंध कानूनन जुर्म ही होगा, ऐसा भी न्यायलय ने अपने फैसले में कहा है।

सर्वोच्च न्यायालय, महत्वपूर्ण, फैसला, दंडविधान संहिता, धारा ३७७, भारत, कानूननमुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पाँच सदस्यों के न्यायपीठ ने इस बारे में फैसला घोषित किया है। इस न्यायपीठ में न्यायाधीश आर. एफ. नरिमन, न्यायाधीश ए. एम. खानविलकर, न्यायाधीश डी. वाय. चंद्रचूड और न्यायाधीश इंदु मल्होत्रा का समावेश था। सन २०१३ में सर्वोच्च न्यायालय ने समलिंगी संबंध अपराध है, यह फैसला सुनवाया था। लेकिन गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय ने किए फैसले में इस तरह का लैंगिक संबंध गुनाह नहीं साबित हो सकता है, ऐसा कहा है। दो सज्ञान व्यक्तियों के बीच निजी स्तर पर सहमती से होने वाला लैंगिक संबंध, यह कानूनन अपराध नहीं ठहराया जा सकता है। इस सन्दर्भ में १५८ सालों पहले किया हुआ कानून नागरी समानता के विरोध में जाने वाला है। हर एक को अपनी इच्छा के अनुसार जीने का अधिकार है, ऐसा सर्वोच्च न्यायलय के न्यायपीठ ने अपने फैसले में कहा है।

समलैंगिक संबंध यह मानसिक बीमारी का हिस्सा नहीं है, ऐसा भी सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले में कहा है। दौरान, इस न्यायपीठ के पाँचों ही सदस्यों ने अपना स्वतंत्र फैसला दिया है और इन सभी ने नागरी समानता के खिलाफ जाकर अप्राकृतिक लैंगिक संबंधों को अवैध ठहराया नहीं जा सकता है, ऐसा कहा है। लेकिन नाबालिग और जानवरों के साथ लैंगिक संबंध पहले की तरह ही अपराध ठहराया जाएगा, ऐसा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायपीठ ने अपने फैसले में कहा है।

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