समय की करवट (भाग ८५) – ‘ब्रेझनेव्ह-कोसिजिन’ कालखंड

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।

इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं।
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‘यह दोनों जर्मनियों का पुनः एक हो जाना, यह युरोपीय महासंघ के माध्यम से युरोप एक होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। सोव्हिएत युनियन के टुकड़े होना यह जर्मनी के एकत्रीकरण से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है; वहीं, भारत तथा चीन का, महासत्ता बनने की दिशा में मार्गक्रमण यह सोव्हिएत युनियन के टुकड़ें होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।’
– हेन्री किसिंजर
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इसमें फिलहाल हम पूर्व एवं पश्चिम ऐसी दोनों जर्मनियों के विभाजन का तथा एकत्रीकरण का अध्ययन कर रहे हैं।

यह अध्ययन करते करते ही सोव्हिएत युनियन के विघटन का अध्ययन भी शुरू हो चुका है। क्योंकि सोव्हिएत युनियन के विघटन की प्रक्रिया में ही जर्मनी के एकीकरण के बीज छिपे हुए हैं, अतः उन दोनों का अलग से अध्ययन नहीं किया जा सकता।

सोविएत युनियन का उदयास्त-४५

१९६० के दशक के मध्य तक, ब्रेझनेव्ह ने सोव्हिएत रशिया के सूत्र अपने हाथ में लेने के बाद, कोल्ड वॉर में सोव्हिएत रणनीति अधिकाधिक आक्रामक होती गयी|

१९६८ में पोलंड में लेबर पार्टी की परिषद को संबोधित करते समय – ‘दुनिया के किसी भी देश में अस्तित्व में होनेवाले समाजवादी/कम्युनिस्ट शासन का त़ख्ता पलटकर वहॉं पूँजिवादी सत्ता लाने की कोशिश यदि किसी भी देश ने की, तो उस ख़ुराफ़ातखोर देश पर आक्रमण करने में सोव्हिएत रशिया ज़रा भी नहीं हिचकिचायेगा’ ऐसे स्पष्ट शब्दों में ब्रेझनेव्ह ने चेतावनी दी थी|

यह चेतावनी, उससे पहले सोव्हिएत रशिया ने १९५६ में हंगेरी पर किये आक्रमण का और उसके बाद १९६८ में झेकोस्लोव्हाकिया पर किये आक्रमण का समर्थन करने के लिए थी| जब इन दो देशों के नागरिक, वहॉं की सोव्हिएतप्रणित कम्युनिस्ट सरकार के शासन से ऊबकर उन्होंने जनतन्त्र के लिए आंदोलन शुरू किया, तब पूर्व युरोप के सोव्हिएतप्रणित ‘ईस्टर्न ब्लॉक’ के अन्य देशों में वह आंदोलन संक्रमित होकर वे देश सोव्हिएत प्रभाव से बाहर ना निकलें, इसके लिए सोव्हिएत रशिया ने यह कदम उठाया था| उसके पीछे, इन सारे देशों के नागरिकों के तथा उन्हें उक़सानेवाले पश्‍चिमी देशों के दिलों में ख़ौंफ़ पैदा हों यह उद्देश्य था| उपरोक्त वाक्य यह सोव्हिएत राष्ट्राध्यक्ष ब्रेझनेव्ह के कुल रवैये का मानो सार ही था, जो ‘ब्रेझनेव्ह प्रणाली’ के नाम से जाना जाने लगा|

यह ‘ब्रेझनेव्ह प्रणाली’ इतनी ‘व्यापक’ थी कि उसमें सोव्हिएतप्रणित ‘ईस्टर्न ब्लॉक’ तथा अन्य सोव्हिएतपरस्त देशों का नेतृत्व सोव्हिएत ने हमेशा के लिए स्वयं के पास रखा था| और तो और, कौनसी बात ‘पूँजीवादी’ है, यह तय करने का हक़ भी सोव्हिएत युनियन के अकेले के ही हाथ में था|

ब्रेझनेव्ह के कार्यकाल में यह कोल्ड वॉर अब क्या गुल खिलायेगा, इसकी चिन्ता दुनिया को लगी थी|

लेकिन अचरज की बात यह है कि कट्टर और चरम कम्युनिस्टों में से एक माने जानेवाले ब्रेझनेव्ह ने ही, कोल्ड वॉर ऐन ज़ोरों पर रहते हुए रसातल को जा चुके अमरीका और सोव्हिएत रशिया के बीच के द्विपक्षीय संबंध सुधारने की प्रक्रिया की गंभीरतापूर्वक शुरुआत की|

क्यों? कट्टर कम्युनिस्ट माने जानेवाले ब्रेझनेव्ह को यह करने की ज़रूरत क्यों महसूस हुई? वही ब्रेझनेव्ह, जिन्होंने ‘क्युबा मिसाईल्स’ क्रायसिस में, केवल अमरीका के सामने सोव्हिएत युनियन की बेइज़्ज़ती हुई इसलिए, ब्रेझनेव्ह की पदोन्नति के प्रवास में तब तक उनकी सहायता किये हुए निकिता ख्रुश्‍चेव्ह को ही सोव्हिएत के अध्यक्षपद से इस्तीफ़ा देने पर मजबूर कर अपने हाथ में सत्ता ली?थी| ऐसे ब्रेझनेव्ह को भला यह कदम उठाना क्यों ज़रूरी प्रतीत हुआ?

क्योंकि अब सोव्हिएत को इस कोल्ड वॉर की आँच लगना चालू हो चुका था|

यह कोल्ड वॉर केवल पूँजीवाद और कम्युनिझम इन दो प्रणालियों का एक-दूसरे के साथ जो जन्मजात बैर है, उसी में से जन्मा था| पूँजीवाद यह मुक्त बाजारपेठ (फ्री-मार्केट) का पुरस्कर्ता; वहीं, कम्युनिझम यह सरकारी स्वामित्व का; दोनों बातें एक-दूसरी का मूलभूत विरोध करनेवालीं|

इस कारण, एक-दूसरी का प्रसार होने से विरुद्ध प्रणालि को रोकना यही इन प्रणालियों का स्थायीभाव था; ज़ाहिर है, यही इन दो प्रणालियों का पुरस्कार करनेवाले जागतिक महासत्ताओं का इस कोल्ड वॉर में प्रमुख उद्देश्य था| सोव्हिएत ने पूर्वी युरोपीय देशों मे, पूर्वी एशियाई देशों में, साथ ही, मध्य अमरीका में अपनी जड़ें फैलाना शुरू किया था| अन्य देशों का रूझान अमरीका की ओर था|

अब इस बैर की शुरुआत होकर २५ से भी अधिक साल बीत गये थे| इतने प्रदीर्घ समय तक दुनिया के कोने कोने में एक-दूसरे के खिलाफ़ सैनिक, हथियार भेजना….इससे अब सोव्हिएत रशिया का दम फूलने लगा था| क्योंकि मूलतः दूसरे विश्‍वयुद्ध के अन्त से यानी सन १९४५ से सातत्यपूर्वक सोव्हिएत नीतियों की, ‘कोल्ड वॉर’ यही केंद्रबिंदु रही थी|

अमरीका के पास इन सभी संसाधनों का खर्चा उठाने के लिए पैसा था, सोव्हिएत के पास वह नहीं था| पहले से ही ‘पश्‍चिमीविद्वेष’ इस एक ही मुद्दे पर उन्होंने ध्यान केंद्रित किया होने के कारण, उस दिशा में केवल लष्करी ताकत को बढ़ाने में ही उन्होंने अपने सारे संसाधन लगा दिए थे|

बुनियादी ढांचागत सुविधाएँ, खेती इन सबमें बढ़तीं समस्याएँ सामने आ रहीं थीं| विकसनशील देशों के लिए आदर्श साबित हुईं उनकीं पंचवार्षिक योजनाएँ शुरू शुरू में हालॉंकि सफल होतीं दिखायी दीं, लेकिन कोल्ड वॉर शुरू होने के बाद उनका महत्त्व कम हुआ था| लेकिन लष्करी संसाधनों का उत्पादन छोड़ दें, तो बाक़ी मामलों में प्रचंड समस्याएँ होने के कारण स्थानिक रशियन जनता में असंतोष बढ़ने लगा था|

अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष निक्सन और सोव्हिएत राष्ट्राध्यक्ष ब्रेझनेव्ह की ऐतिहासिक मॉस्को भेंट| इसके बाद ही दो देशों के बीच के संबंध सुधारने की प्रक्रिया की अधिकृत रूप में शुरुआत हुई|

साथ ही, कम्युनिस्टबंधु चीन भी अब सोव्हिएत से दूर चला जा रहा था और अमरीका चीन को अपने पास खींचने के जानतोड़ प्रयास कर रही है, यह बात फ़रवरी १९७२ के, अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष निक्सन के ऐतिहासिक चीन दौरे से स्पष्ट हुआ ही था|

इन सब बातों को मद्देनज़र रखते हुए ब्रेझनेव्ह ने अमरीका के सामने सशर्त ही सही, लेकिन दोस्ती का हाथ बढ़ाया| दोनों देशों में चर्चाएँ शुरू हुईं| उसीके परिणामस्वरूप सन १९७२ के नवम्बर महीने में निक्सन ने पहली ही बार मॉस्को की भेंट की| अगले साल ब्रेझनेव्ह ने अमरीका का दौरा किया|

इस पूरे दौर में ब्रेझनेव्ह की नीतियों में उनका साथ दे रहे थे सोव्हिएत प्रधानमंत्री अलेक्सी कोसिजिन| ख्रुश्‍चेव्ह के पदत्याग के पश्‍चात् लगभग एक ही समय पर सोव्हिएत के राष्ट्राध्यक्ष तथा प्रधानमंत्री बने इन दोनों ने कोल्ड वॉर कम हों इसलिए ढेर सारीं कोशिशें कीं| सोव्हिएत जनता में निर्माण हुए असंतोष के बारे में पता होनेवाले कोसिजिन ने, हालात सुधरें इस हेतु से संसाधनों के वितरण का विकेंद्रीकरण करने की दिशा में कोशिशें शुरू कीं| लेकिन उसमें कई बातें कम्युनिझम के मूलतत्त्वों से विपरित पायीं जाने के बाद उन्हें विरोध शुरू हुआ| इस कारण उनकी ये कोशिशें नाक़ाम हो गयीं| उसीके साथ, शुरुआती दौर में, उनकी अपनी पटरी जम जाने तक, सभी निर्णय सुप्रीम सोव्हिएत के अन्य सदस्यों के साथ समन्वय से लेनेवाले ब्रेझनेव्ह ने, १९७७ तक चालाक़ी से सोव्हिएत संविधान में मनचाहे बदलाव करवाके सारी सत्ता अपने हाथ में ले ली थी|

लेकिन फिर भी अंतर्गत सोव्हिएत परिस्थिति में कुछ ख़ास फ़र्क़ नहीं हुआ|

इन कारणों से निरुपायित होकर, इन सारी बातों का मूल रहनेवाले ‘कोल्ड वॉर’ को ही समाप्त करने की दिशा में इस जोड़ी ने कदम उठाये|

इन दोनों महासत्ताओं के बीच का परस्परसंदेह का माहौल कम करने के लिए उन्होंने प्रयास किए|

मग़र फिर भी क्या कोल्ड वॉर ख़त्म हुआ?

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