पाकिस्तान कश्मीर की नियंत्रण रेखा पर संघर्ष बंदी का पालन करने के लिए तैयार

नई दिल्ली – लद्दाख की ‘एलएसी’ से चीन के लष्कर ने वापसी करके, अपनी घुसपैठ की गलती सुधारने का उचित निर्णय किया है। भारत के निर्धार के सामने चीन जैसे ताकतवर देश को भी झुकना पड़ा, इसका एहसास होने के बाद पाकिस्तान के पैरों तले की जमीन खिसक गई है। इसी कारण पाकिस्तान ने, कश्मीर की ‘एलओसी’ पर संघर्ष बंदी के पालन की तैयारी दर्शाई है। भारत और पाकिस्तानी लष्कर के ‘डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिटरी ऑपरेशन्स-डीजीएमओ’ के बीच इस मामले में हॉटलाईन पर चर्चा संपन्न हुई। इस चर्चा में, सन २००३ में दोनों देशों के बीच हुई संघर्षबंदी का सटीकता से पालन करने पर सहमति हुई है।

परवेझ मुशर्रफ जब पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे, तब सन २००३ में भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर की नियंत्रण रेखा तथा अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर संघर्ष बंदी का समझौता हुआ था। उसके बाद काफी समय तक नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों के लष्करों की मुठभेड़ नहीं हुई। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में आतंक का नया सत्र शुरू करने के लिए, आतंकियों की घुसपैैैंठ कराने की नीति अपनाई थी। इन घुसपैठी आतंकियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए पाकिस्तान लष्कर द्वारा नियंत्रण रेखा पर जोरदार गोलीबारी की जा रही थी। इसी महीने में केंद्रीय गृहराज्यमंत्री जी. किशन रेड्डी ने लोकसभा में जानकारी देते समय, पिछले तीन सालों की अवधि में पाकिस्तान ने १०,७५२ बार संघर्षबंदी का उल्लंघन किया, ऐसा स्पष्ट किया था।

इस संघर्ष बंदी में सुरक्षाबलों के ७२ जवान शहीद हुए और ७४ नागरिकों की जानें गईं थीं। साथ ही, पिछले तीन सालों में इसमें ३४१ नागरिक ज़ख्मी हुए होने की जानकारी रेड्डी ने दी। इसी कारण बार-बार गोलीबारी करके भारत को उकसाने वाले पाकिस्तान को, नियंत्रण रेखा पर संघर्ष बंदी का पालन करने की आवश्यकता प्रतीत होने लगी है, यह चौंकाने वाली बात साबित होती है। लेकिन पिछले कुछ दिनों के हालातों को मद्देनजर रखते हुए, पाकिस्तान भारत के साथ नए सिरे से चर्चा करने के लिए जानतोड़ कोशिश कर रहा होने की बात सामने आ रही है। कुछ दिन पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने, हम भारत के साथ चर्चा के लिए तैयार होने की दावे किए थे। पाकिस्तान के लष्करप्रमुख ने भी, कश्मीर की समस्या को चर्चा द्वारा सुलझाया जा सकता है, ऐसा प्रस्ताव दिया था।

इसके बाद दोनों देशों के लष्करों के ‘डीजीएमओ’ के बीच हॉटलाईन पर चर्चा होने की और संघर्ष बंदी का पालन करने पर एकमत हुआ होने की खबर आई है। लद्दाख की एलएसी पर घुसपैठ करके भारत को चुनौती देने वाले चीन ने नौं महीनें बाद इस क्षेत्र से लष्करी वापसी की। उसके बदले में चीन को सिवाय मानहानि के कुछ भी नहीं मिला है और भारत ने इसमें कुछ भी नहीं गँवाया है, यह बात सार्वजनिक हुई है। यह सेनावापसी करते समय, चीन ने ब्रिक्स देशों की परिषद भारत में हों, ऐसी उम्मीद ज़ाहिर करके उसे समर्थन दिया था। यदि भारत के साथ युद्ध भड़का, तो चीन पाकिस्तान को समर्थन देगा, इस भ्रामक धारणा पर पाकिस्तान ने अपनी सारी व्यूह रचना की थी। इसी कारण चीन की लष्करी वापसी के कारण पाकिस्तान को बहुत बड़ा झटका लगा था। उसी समय पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था डूबने की कगार पर होकर कम आदेश देने की स्थिति में पहुंच चुका है। भारत के साथ यदि संबंध नहीं सुधरे, तो पाकिस्तान कोई खैर नहीं ऐसा स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है।

ऐसी स्थिति में भारत के साथ चर्चा शुरू करने के लिए पाकिस्तान ने कदम उठाए होकर, ‘डीजीएमओ’ स्तर पर कि यह चर्चा यह उसका पहला कदम माना जाता है। लेकिन ऐसा होने के बावजूद भी भारत की पाकिस्तान विशेष नीति नहीं बदली है, ऐसी घोषणा भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने की है। लेकिन कश्मीर की नियंत्रण रेखा पर संघर्ष बंदी करने पर हुई इस सहमति का स्वागत करते हुए, पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरेशी ने, भारत को पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने की आवश्यकता प्रतीत होने के दावे ठोके हैं। कोरोना की महामारी से आया आर्थिक संकट, अंतर्गत चुनौतियाँ और कश्मीर के संबंध में किए फैसले को मिली असफलता, इनके कारण भारत पाकिस्तान के साथ चर्चा करने के लिए तैयार है, ऐसा झूठ विदेश मंत्री कुरेशी ने पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल पर बका है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.